भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

शहर की सफाई और बेहतरी के लिए सबसे अधिक कार्य नगर निगम द्वारा ही कराए जाते हैं और नागरिकों का सीधा वास्ता भी नगर निगम से ही होता है तथा आजकल फिर निगम अपने कार्यों को लेकर चर्चा में चल रहा है।

 वर्तमान में चर्चाएं हैं कि नए चीफ इंजीनियर आने के पश्चात से ठेकेदारों की फाइलें पास नहीं हो रही हैं, जिससे ठेकेदार और पार्षद तो परेशान हैं ही, उनके साथ-साथ जनता भी परेशान है, क्योंकि कहीं न कहीं फाइलों के साथ ही सीधे विकास कार्य जुड़े होते हैं। फाइलें रुकने का मतलब कार्यों में रुकावट।

नगर निगम क्षेत्र में मोटे आंकलन के अनुसार कई हजार पीजी हैं लेकिन आजतक निगम के पास इनका रिकॉर्ड नहीं है। रिकॉर्ड नहीं होने का सीधा-सा मतलब है कि राजस्व भी कम आ रहा है। फायर एनओसी भी नहीं ली जा रही है। पीजी में रहने वाले लोगों की पहचान भी नहीं है। ऐसी अवस्था में अनुमान लगाया जा सकता है कि यह गुरुग्राम के लिए कितना नुकसानदेह हो सकता है। 

बात करें अतिक्रमण की तो जगह-जगह अतिक्रमण फैला हुआ है, जिससे यातायात में रुकावट आती है, जाम भी लगे रहते हैं। सदर बाजार के लिए बार-बार निगम योजनाएं बनाता है। न जानें कितने कर्मचारी इस कार्य में लगे रहते हैं। गत दिनों निगम ने सदर बाजार की दुकानें तक सील की थीं। उस समय गुरुग्राम के विधायक सामने आए थे और उन्होंने बाजार वालों की मदद कर उनकी तरफ से निगम को आश्वस्त किया था कि आने वाले समय में ऐसा नहीं होगा, किंतु हालात जस के तस हैं।

अवैध निर्माणों की बात करें तो वह भी स्थान-स्थान पर हो ही रहे हैं। निगम के दस्ते तोडऩे भी जाते हैं। आजकल आयुध डिपो का 900 मीटर का क्षेत्र अधिक चर्चा में है। उस क्षेत्र में निगम तोडफ़ोड़ कर भी रहा है परंतु निर्माण भी धड़ाधड़ हो ही रहे हैं। गत दिनों गजे सिंह कबलाना की इमारत को तोडऩे का किस्सा बहुत चर्चा में रहा था। अब यह सवाल खड़ा है कि यदि वह इमारत ठीक थी तो उसे तोडऩे क्यों पहुंचे और अगर वह गलत थी तो अब भी वह यथावत स्थिति में क्यों है? इसी प्रकार अनेक सवाल इन अवैध निर्माणों के बारे में हैं। आयुध डिपो के 900 मीटर के दायरे से बाहर भी निर्माण हो रहे हैं, कॉलोनियां बन रही हैं लेकिन कार्यवाही करने की बात निगम की ओर से कही भी जाती है लेकिन जनता में यह विश्वास है कि जो लोग बना रहे हैं, वह सैटिंग कर उसे पूरा करेंगे और बनाएंगे। इस बारे में निगम चुप है।

अब बात करें इंजीनियरिंग विंग की तो आमतौर पर देखा गया है कि जो कार्य होते हैं, वे मानकों के अनुसार नहीं होते। इसके बारे में आम चर्चा है कि सभी काम कमीशन से होते हैं। नीचे से ऊपर तक कमीशन जाता है। अब इस बारे में कह तो क्या सकते हैं जब प्रमाण नहीं परंतु कुछ बातें छनकर सामने आईं कि पिछले दिनों निगम में बिना सडक़ बने डेढ़ करोड़ रूपए से अधिक की पेमेंट हो गई थी। उसके पश्चात निगम कमिश्नर ने कई एक्सइएन और एसडीओ को वर्क सस्पेंड किया था। अर्थात कमिश्नर को इस बात की भनक थी कि कुछ गलत हो रहा है लेकिन अब सब कार्य कर रहे हैं।

बड़ा प्रश्न कि जो लोग अनियमितताओं में संलिप्त पाए गए, जिसके कारण उनका वर्क सस्पेंड किया गया, उन पर क्या कार्यवाही हुई? या कमिश्नर जोकि बहुत अनुभवी हैं, वह इतना बड़ा धोखा खा गए कि काम सही होते हुए भी उन्हें वर्क सस्पेंड कर दिया।

चर्चा है कि यह सब सैटिंग का खेल है।

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