उमेश जोशी

किसानों को किसी राजनीतिक समर्थन या संरक्षण की ज़रूरत नहीं है फिर भी राजनेता किसानों को परोक्ष समर्थन देकर उनके चहेते बनने कोशिश कर रहे हैं। अच्छी बात है कि किसानों ने अपने आन्दोलन पर राजनीतिक साया नहीं पड़ने दिया। नेताओं ने जब भी मंच साझा करने की कोशिश की उन्हें हर बार रोका गया। राजनीति से दूर रख कर ही आंदोलन विवादों से दूर रह सका है। ज़रा-सी भी परछाई इस आंदोलन पर पड़ जाती तो सत्तारूढ़ बीजेपी पूरे आंदोलन की हवा निकाल देती।

 नेताओं को बेचैनी इस बात की है कि दुनिया का सबसे बड़ा आंदोलन चल रहा है और वे उसमें भागीदारी निभा कर अपनी राजनीति नहीं चमका पा रहे हैं। सभी पार्टियों के नेता चाहते हैं कि इस ऐतिहासिक आंदोलन रूपी यज्ञ में वो भी अपनी आहूति डालें लेकिन किसी भी पार्टी को एक भी आहूति डालने की अनुमति नहीं है।    

ऐतिहासिक आंदोलन से दूर रह कर भी इतिहास में नाम दर्ज करवाने की जुगत में भी कई नेता लगे हुए हैं। ताज़ा और ज्वलंत उदाहरण इनेलो के एकमात्र विधायक अभय चौटाला का है। अभय चौटाला ने किसान आंदोलन के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर न सिर्फ इतिहास में नाम दर्ज करवा लिया बल्कि किसानों की आंखों के तारे बन गए। किसान इस समर्थन को कभी नहीं भूलेंगे। इतना ही नहीं किसानों की अगली पीढ़ी भी इसे देख रही है  इसलिए अभय चौटाला की अगली पीढ़ी को भी इस त्याग और समर्थन का लाभ मिलेगा। 

 अभय चौटाला ने त्यागपत्र के पैंतरे से कई निशाने लगाए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और काँग्रेस के कद्दावर नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर भारी नैतिक दबाव बना दिया है। मुख्यमंत्री हितों का राग आलापने वाली काँग्रेस से ऐसे ही समर्थन की उम्मीदें किसानों में जगा दी हैं। किसान सबसे पहले हुड्डा से ही उम्मीद कर सकते हैं। यह भी सच है कि इस्तीफा देने से काले कानून वापस नहीं होंगे लेकिन किसानों के पक्ष में जोरदार माहौल बनाने में मदद अवश्य मिलती है। इस तरह के समर्थन से किसानों का मनोबल मजबूत होता है। 

 विधानसभा से इस्तीफा देने से अभय चौटाला और उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला में अनायास तुलना होने लगी है। एक तरफ दुष्यंत चौटाला सरकार से समर्थन वापस नहीं ले रहे हैं और सत्ता सुख भोगने के लिए किसान हितों की सरासर अनदेखी कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अभय चौटाला विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर किसानों के साथ एकजुटता का संदेश दे रहे हैं। अभय चौटाला ने यह साबित करने की कोशिश की है कि किसान हितों पर वे अपनी विधायकी खुशी खुशी न्यौछावर कर सकते हैं। 

अभय चौटाला ने एक ही झटके में यह भी साबित कर दिया कि किसानों के मसीहा माने जाने वाले जननायक ताऊ देवीलाल की विरासत की असली हकदार पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल है, ना कि जननायक जनता पार्टी। किसानों के इतने बड़े आंदोलन में जननायक जनता पार्टी की कोई सकारात्मक भूमिका ना होने से पार्टी नाम के साथ जुड़े ‘जननायक’ पर कई प्रश्न चिह्न लग गए हैं। 

 इंडियन नेशनल लोकदल से टूट कर जेजेपी से जुड़े कार्यकताओं की आंखें भी खुली हैं। मूलतः किसानों के संरक्षण से पनप रही दोनों पार्टियों जेजेपी और इनेलो के कार्यकर्ताओं को यह भेद समझ आने लगा है कि ताऊ देवीलाल के सिद्धांतों का पालन कौन कर रहा है। अभय चौटाला इस स्थिति का आकलन कर अब अपने पुराने कार्यकर्ताओं की घर वापसी के लिए मुहिम भी शुरू करेंगे। इस बाबत वे एलान भी कर चुके हैं।

अभय चौटाला के इस्तीफे से ऐलनाबाद सीट खाली हो गई है। छह महीने के भीतर उपचुनाव होगा। अभय चौटाला दुबारा जीत कर आ जाएंगे क्योंकि ऐलनाबाद चौटाला परिवार की परम्परागत सीट है। इस सीट पर सन् 2000 से 2019 तक छह बार चुनाव हुआ है जिसमें हर बार चौटाला परिवार को जीत मिली है। वैसे भी किसानों के ‘हितैषी’ कहीं से भी चुनाव लड़ेंगे, किसान उसे जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे। 

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