महंत लक्ष्मण गिरि बुचावास गौशाला में भव्य भंडारा. भंडारा करना साधु संत समाज की अनादि परंपरा

फतह सिंह उजाला

पटौदी । गऊ और गुरु का स्थान इस ब्रह्मांड में श्रेष्ठ था, है और रहेगा । गऊ की सेवा करना सभी तीर्थों  के दर्शन और भ्रमण से श्रेष्ठ माना गया है । ब्रह्मांड में गऊ और धरती के अलावा जननी को ही माता का दर्जा दिया गया और अनादि काल से गऊ, धरती और जननी को ही माता कह के पुकारा जाता आ रहा है।  आज भी गऊ, धरती और जननी वास्तव में समस्त जीवो की पालनहार है । यह तीनों अलग-अलग प्रकार से सभी जीवो का पालन कर रही है । इस बात को कोई भी नहीं झुठला सकता । यह बात महंत लक्ष्मण गिरी गौशाला बुचावास के संचालक महंत विट्ठल गिरी महाराज ने विभिन्न गांवों और प्रबुद्ध लोगों को आगामी 14 जनवरी मकर सक्रांति के उपलक्ष पर आयोजित बुचावास गौशाला में भंडारे का निमंत्रण देते हुए कही ।

महंत विट्ठल गिरी के जीवन पर अज्ञातवास को प्रस्थान कर चुके महाकाल संस्थान के अधिष्ठाता महामंडलेश्वर ज्योति गिरी के धर्म-कर्म जनकल्याण और समाज हित में किए गए कार्यों की अमिट छाप के साथ-साथ ऐसे कार्यों को अनंत काल तक जारी रखने की मन में बहुत गहरी ललक बनी हुई है । उन्होंने कहा भंडारे का आयोजन करना साधु संत समाज की अनादि काल से चली आ रही एक ऐसी परंपरा है, जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। इस प्रकार के भव्य भंडारे समाज के सहयोग से ही होते आए हैं और होते रहेंगे । उन्होंने कहा वास्तव में भंडारा वही होता है जिसमें सभी वर्गों के लोगों का उनके सामर्थ्य के अनुसार सहयोग हो । यह सहयोग विभिन्न प्रकार से हो सकता है ।

प्रकांड विद्वान साधु-संतों की भी यही सोच रही है कि उनके द्वारा किए जाने वाले भंडारे में कोई ना कोई ब्रह्म ज्ञानी किसी भी रूप में अवश्य पहुंचे । लेकिन ऐसे ब्रह्म ज्ञानी को पहचान करना असंभव और दुर्लभ कार्य है । अनादि काल से यह भी मान्यता रही है कि किसी भी भंडारे में परमपिता परमात्मा और महादेव की कृपा से कोई भी ब्रह्म ज्ञानी साधु संत भंडारे को ग्रहण कर ले तो , यह बात निश्चित है कि जिन भी लोगों का भंडारे में किसी भी तरह से सहयोग हो और जिस स्थान पर यह भंडारा आयोजित किया जाए वहां पर महादेव की असीम अनुकंपा और कृपा बनी रहती है । भारतीय सनातन संस्कृति में कहा भी गया है कि अन्न के दान से श्रेष्ठ कोई भी दान नहीं है ।

उन्होंने कहा अपने गुरु के प्रति समर्पित शिष्य का यह दायित्व बनता है कि गुरु के द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन पर चलते हुए गुरु के द्वारा जनहित और समाज हित में किए गए कार्यों को करते रहना चाहिए । विट्ठल गिरी महाराज ने कहा कि गऊ की सेवा करना इस ब्रह्मांड के सभी तीर्थ किए जाने से अधिक पुण्य का फल प्रदान कर सकता है । गौरतलब है कि अज्ञातवास को प्रस्थान कर चुके महामंडलेश्वर ज्योति गिरी के शिष्य रहे महंत लक्ष्मण गिरी के एक सड़क दुर्घटना में  देहावसान के बाद दक्षिणी हरियाणा के गांव बुचावास में ही इसी बाल साधु की याद में बेबस ,लाचार ,अपंग, अंधे गोधन की गौशाला की स्थापना की गई । यहां पर सैकड़ों की संख्या में आज भी अपंग, दुर्घटनाग्रस्त, तेजाब डालें, अंधे अन्य रोगों से पीड़ित गोधन की गऊ प्रेमियों के सहयोग से निस्वार्थ सेवा की जा रही है । 14 जनवरी मकर सक्रांति के उपलक्ष पर महंत विट्ठल गिरी महाराज ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति में मकर सक्रांति एक अलग ही महत्व है । मकर सक्रांति को हर घर, गांव, शहर में सभी लोग सनातनी परंपरा के अनुयाई मकर सक्रांति के त्योहार को मनाते आ रहे हैं। 

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