-कमलेश भारतीय

इस कंपकंपाती सर्दी में किसान की अग्निपरीक्षा जारी है । पिछले पचास दिन के आसपास से किसान दिल्ली की हर सीमा पर घेरा डाले या किसानों की भाषा में पड़ाव डाले बैठे हुए हैं । और सिर्फ दस किलोमीटर की दूरी पर बैठी सरकार न तो इसे देख पा रही है और न सुन पा रही है किसानों की आवाज । ऊपर से सबसे बड़ी बात कि बार बार मीटिंग पर बुलाने के बावजूद अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ी और एक भी मांग नहीं मानी । दूसरी ओर किसान संगठन भी तीनों कृषि कानून वापस लेने पर अड़े हैं । बीच के किसी रास्ते के लिए तैयार नहीं । इस तरह एक प्रकार से डेडलाॅक है बातचीत में । आठ नौ दौर की मीटिंग्स के बावजूद समस्या वहीं की वहीं खड़ी है । ऊपर से सर्दी बढ़ती जा रही है और किसान दम तोड़ रहे हैं । इनकी गिनती भी बढ़ती जा रही है । यह बहुत चिंता का विषय है । यानी तारीख पे तारीख और नहीं कोई अंत इस सबका ।

इस बीच किसान ट्रैक्टर मार्च भी निकाल चुके और तेइस व छब्बीस जनवरी को भी ट्रैक्टर परेड निकालने की चेतावनी दे चुके । यानी किसान गणतंत्र पर अपनी ही परेड प्रदर्शित करेंगे ।
किसान आंदोलन का शिकार होना पड़ा राजनेताओं को । इनकी रैलियां या बैठकों के समय काले झंडे दिखाकर प्रदर्शन किये जा रहे हैं । बैठक के लिए पहुंचने के लिए बनाये हेलीपैड तक क्षतिग्रस्त किये जा रहे हैं और इस तरह सारी राजनीतिक गतिविधियां ठप्प कर दी गयी हैं । कुछ विधायक हरियाणा सरकार का समर्थन वापस ले चुके हैं तो कुछ सरकारी पद छोड़ कर अपने गुस्से का इजहार कर चुके हैं । इस तरह हरियाणा सरकार धीरे धीरे दवाब में आ चुकी है । क्या होगा या हो सकता है राम जाने ।

किसान आंदोलन नये पड़ाव में प्रवेश कर रहा है और सरकार इसकी चिंता नहीं कर रही । यह बहुत गंभीर और नाजुक मामला है । सारे काम छोड़ कर सबसे पहले किसानों को सुनना और उनका मुद्दा हल करना चाहिए प्राथमिकता के आधार पर ।

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