भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

सर्वप्रथम तो मैं सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं दूंगा और भगवान से प्रार्थना करूंगा कि नववर्ष आपके जीवन में खुशियों की सौगात लाए।

गत वर्ष लगभग सारा कोरोना की मार में निकल गया और अंतिम माह में कोरोना पर किसान आंदोलन भारी पड़ा। किसान आंदोलन के कारण ही हरियाणा सरकार को निकाय चुनावों में मुंह की खानी पड़ी। अकसर यह देखा जाता है कि सत्तारूढ़ पार्टी ही निकाय चुनाव में विजय प्राप्त करती है परंतु वर्तमान में अंबाला और सोनीपत तो हार गई, एक पंचकूला और रेवाड़ी मामलू अंतर से जीत पाई, जबकि सांपला, धारूहेड़ा व उकलाना नगरपालिकाओं के परिणाम भाजपा को शर्मसार करने के लिए काफी हैं। ऐसे में आने वर्ष में किसान आंदोलन के कारण भाजपा सरकार को लगता है अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

नववर्ष में किसान आंदोलन के नेताओं से केंद्र सरकार की चार तारीख को बातचीत का समय रखा गया है। सरकार की ओर से प्रचारित किया जा रहा है कि हमने चार में से दो मांगें मान ली हैं। एक तो पराली के बारे में है और एक बिजली बिल के बारे में है लेकिन किसानों की तरफ से कहा जा रहा है कि हमारी मुख्य मांग तो केवल और केवल तीनों कानूनों को वापिस लेना और एमएसपी की गारंटी देना है।

स्वराज पार्टी के योगेंद्र यादव ने कहा कि कहावत है हाथी निकल गया, पूंछ रह गई लेकिन यहां तो उलटा हुआ पूंछ निकल गई हाथी अभी बाकी है। उनका कहना है कि सरकार के रवैये में जरूर फर्क आया है लेकिन नीति में फर्क अभी भी नहीं आया। सरकार ने किसान नेताओं पर यह  भार डालने की कोशिश की कि कृषि कानून तो वापिस होंगे नहीं, क्योंकि इसके लिए बहुत लंबी प्रक्रिया है, आप (किसान नेता) यह बताएं कि हम इनमें क्या संशोधन कर सकते हैं। एमएसपी के बारे में भी सरकार का कहना है कि जितनी एमएसपी हम दे रहे हैं, उतनी की गारंटी ही हम ले सकते हैं लेकिन अधिक की नहीं। उन्होंने बताया कि बहुत से स्थानों पर तो अब भी एमएसपी पर फसल नहीं खरीदी जा रही। हां, एक अंतर अवश्य आया कि आज जो किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकालनी थी, वह रद्द कर दी।

तात्पर्य यह है कि किसानों को अब भी यह विश्वास नहीं है कि चार जनवरी को हमारा कोई हल निकल पाएगा। हां, एक बात अवश्य है कि अब किसान भी शायद यह समझने लगे हैं कि संवाद से ही समस्या का हल निकलेगा और सरकार भी यह समझने लगी है कि अब हठ से काम नहीं चलेगा, प्यार से कोई रणनीति बनाकर इस समस्या का हल निकाला जाएगा।

वर्तमान में स्थिति यह है कि न तो किसानों को सरकार पर विश्वास है और न ही सरकार की शैली बदली है। अब भी इनके कुछ मंत्री यह कह रहे हैं कि यह बिल किसानों के लाभ के हैं और किसानों को विपक्ष द्वारा बरगलाया जा रहा है। ऐसे में चार जनवरी को भी इस आंदोलन के समाप्त होने की आशा कम ही है। परंतु फिर भी देश और जनता की चिंता को देखते हुए हम तो यही चाहेंगे कि हल निकले।

वैसे 30 तारीख को हुई वार्ता में कुछ बातें सुखद भी निकलकर आईं। मंत्रियों ने किसान नेताओं के साथ बैठकर लंगर छका और साथ ही सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि हम सारे आंदोलन की तारीफ करते हैं कि इतना समय होने पर इतनी ठंड में भी अनुशासन बनाए रखा लेकिन आज समाचार मिले हैं कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर पुलिस द्वारा किसानों पर लाठीचार्ज हुआ। तात्पर्य यह है कि आखिर इतनी सर्दी में इतने समय से बैठे हुए किसानों का धैर्य कब जवाब दे जाए, कहा नहीं जा सकता और जब धैय जवाब देता है तो भीड़ नेताओं की बात सुनने से भी इंकार कर देती है।

अब हरियाणा की बात करें तो हरियाणा के मुख्यमंत्री कहते हैं कि यदि एमएसपी समाप्त हुआ तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। दूसरी तरफ उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पहले ही कह चुके हैं कि यदि किसानों के साथ अन्याय हुआ तो मैं त्याग पत्र दे दूंगा।

इन बातों से एक बात तो समझ में आई कि मुख्यमंत्री अब तक कह रहे थे कि हरियाणा का किसान खुश है कृषि कानून किसान के लाभ के लिए हैं और विपक्ष किसानों को बरगला रहा है। अब वह यह मानने लगे हैं कि किसान आंदोलन में हरियाणा के किसान भी शामिल हैं और हरियाणा का किसान भी कृषि कानूनों को गलत मानता है। इसका आभास शायद मुख्यमंत्री को निकाय चुनावों में हुई हार के बाद हुआ है।

निकाय चुनावों के परिणामों के पश्चात भाजपा के किसी शीर्ष नेता का ब्यान आया नहीं है। न तो प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का और न ही उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का। हां, मुख्यमंत्री आज संवाददाता सम्मेलन में यह जरूर कह रहे थे कि  विपक्ष को निगम चुनावों के नतीजों से जवाब जरूर मिल गया होगा। अब यह समझ नहीं आता कि मुख्यमंत्री किस पैमाने से विपक्ष को निकाय चुनावों में जवाब मिलने की बात कर रहे हैं।

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