आंदोलन के 35वें दिन और सातवें दौर की हुई बैठक. अपनी बारी सरकार ने खेली, अब किसानों की बारी. ना कोई आ हारेगा ना कोई जीतेगा, जीतेगा हिंदुस्तान फतह सिंह उजाला केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए 3 नए कृषि कानूनों के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले विभिन्न किसान संगठनों का धरना और प्रदर्शन 35वें दिन भी जारी रहा। केंद्र सरकार की चिट्ठी मिलने के बाद आंदोलन के 35वें दिन, 40 किसान संगठन केंद्र सरकार से बातचीत के लिए पहुंचे । हालांकि इससे पहले केंद्र सरकार के द्वारा चिट्ठी भेजी गई और उसके जवाब में आंदोलनकारी किसान संगठनों के द्वारा अपना एजेंडा भी साफ कर दिया गया था। देश सहित दुनिया भर की नजरें सहित जिज्ञासा इसी बात पर थी कि दोनों पक्षों में पूरी तरह से सहमति बन जाएगी ? लेकिन जिस प्रकार से सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के द्वारा अंतिम समय तक एक रणनीति के तहत अपनी-अपनी बात कही गई और बयान जारी किए गए , उसे देखते हुए यही महसूस किया जा रहा था कि सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच कृषि कानूनों को लागू किए जाने तथा वापस लिए जाने के मामले में पूरी तरह से सहमति अथवा समाधान नहीं हो सकेगा और हुआ भी ऐसा ही । सबसे बड़ी राहत की बात यही रही पीएम मोदी के कहे मुताबिक केंद्र सरकार ने बड़ा दिल दिखाते हुए आंदोलनकारी किसानों की 4 में से 2 मांगों पर लिखित में अपनी सहमति देने की पुष्टि कर दी। इसका सीधा सा गणित यही है कि 2020 में किसान आंदोलन का फैसला अधिक 50-50 हुआ है । अब वर्ष 2021 में 4 जनवरी सोमवार को एक बार फिर किसान और सरकार आमने-सामने होंगे। तब तक आंदोलनकारी किसानों के कहे के मुताबिक उनका आंदोलन और धरना जैसे अभी तक बिना किसी हंगामे के शांतिपूर्ण तरीके से सौहार्दपूर्ण माहौल में चल रहा है , दिल्ली के चारों तरफ किसानों का धरना प्रदर्शन ,आंदोलन वैसे ही चलता रहेगा । हालांकि बुधवार की बातचीत और इस बातचीत में केंद्र सरकार के द्वारा पराली जलाने पर जुर्माना तथा बिजली अध्यादेश को वापस लेने की लिखित में आश्वासन दिया जाने का भरोसा दिया गया। किसान संगठनों की चार प्रमुख मांगों में से यह भी दो प्रमुख मांगे शामिल रही है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण और पहली मांग संयुक्त किसान मोर्चा और इसके सहयोगी किसान संगठनों और उसके प्रतिनिधियों की एमएसपी कानून को लेकर है । आंदोलनकारी किसान संगठनों की सबसे महत्वपूर्ण मांग यही है कि केंद्र सरकार एमएसपी पर लिखित में गारंटी दे। वही अभी भी आंदोलनकारी किसान अपनी अटल मांग कि केंद्र सरकार नए कृषि कानूनों को वापस लें अथवा रद्द करें, इसी मुद्दे को लेकर अपना धरना प्रदर्शन दिल्ली के चारों तरफ हाड जमा देने वाली ठंड में भी जारी रखे हुए हैं । इसी बीच किसान नेताओं के द्वारा यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार 35 दिन में भी किसानों के द्वारा कहीं जा रही कृृषि कानूनों के मुद्दे पर बात को नहीं समझ पाई तो आगे भी कुछ नहीं हो सकता ? जानकारों के मुताबिक बुधवार की बैठक के बाद किसान नेताओं के द्वारा इस प्रकार की बात कहना अथवा बयान जारी करना केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसानों की रणनीति का एक हिस्सा हो सकता है। कृषी कानूनों को वापस लेने अथवा रद्द किए जाने की मांग को लेकर किसानों के 35 दिन के आंदोलन के दौरान विभिन्न कारणों से 40 से अधिक किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ गई । किसान आंदोलन में इस कुर्बानी की भरपाई किसी के लिए भी संभव नहीं है । यह तो देश के अन्नदाता की हिम्मत, दृढ़ निश्चय, अटल इरादे अटल इरादे सहित हाड तोड़ का परिणाम है कि भयंकर शीतलहर और बर्फीली रातों में भी खुले आसमान के नीचे दिल्ली के चारों तरफ अपना डेरा जमाए हुए हैं । बुधवार को किसान और सरकार के बीच हुई बातचीत पर गहराई से मंथन किया जाए तो किसान संगठनों के द्वारा केंद्र सरकार के पाले में डाली गई 4 गेंद में से 2 गेंद केंद्र सरकार ने सहर्ष अपने पाले में वापस ही रख ली है । अब मामला कथित रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी और कृषि कानून को वापस लेने की मांग का लटका रह गया है ? केंद्र सरकार के द्वारा किसानों के साथ बैठक के बाद यह बात कही गई है कि किसानों के द्वारा चार प्रस्ताव रखे गए थे , जिनमें से 2 पर सहमति बन गई है । अब जो भी दो मांगे बाकी रह गई , उसके लिए दोनों पक्ष केंद्र सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि नए वर्ष के पहले सोमवार 4 जनवरी को एक बार फिर से आमने-सामने होंगे । इस बात से इंकार नहीं की इस दौरान जो भी समय मिलेगा केंद्र सरकार और सरकार के रणनीतिकार तथा आंदोलनकारी किसान संगठनों और इनके पदाधिकारी बाकी बची 2 मांगों को अपने अपने हिसाब से टालने और मनवाने के लिए गहराई से मंथन कर अपनी-अपनी रणनीति पर विचार कर अमल में लाए जाने के लिए पूरी तैयारी भी करेंगे। अब देखना यही है की वर्ष 2021 में पहला सोमवार किसान और सरकार के बीच चली आ रही तकरार का कैसा और किस प्रकार का समाधान वाला ऐतिहासिक दिन साबित होगा। Post navigation किसान आंदोलन के समर्थन में युवाओं ने शुरू किया #YuvaWithKisan फास्टैग (FASTag) की डेडलाइन को लेकर राहत