भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज पांचवें दौर की वार्ता असफल हुई। किसान फ्रंट फुट पर हैं और सरकार बैकफुट पर। आज भी किसान नेताओं ने सरकारी लंच नहीं लिया, लंगर का भोजन किया। लगता है कि अब किसान आर-पार के संघर्ष के मूड में हैं और अपनी मांगें मनवाकर ही मानेंगे। पहले किसानों की ओर से मांग थी केवल वार्ता की, फिर एमएसपी की, फिर पराली कानून, बिजली कानून आदि जुड़ते गए और अब उनकी मांग केवल और केवल यह है कि तीनों कानून निरस्त किए जाएं।

किसी समय की एक फिल्म का गीत याद आ रहा है, उसकी पंक्ति थी कि ‘हम मेहनतकश दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, एक खेत नहीं, एक गांव नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे’। वर्तमान में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। दबले-कुचले किसान निकलकर आए हैं, राजनैतिक पार्टियां इनकी शर्तों पर समर्थन दे रही हैं। ये अपने आंदोलन पर किसी राजनैतिक दल को हावी नहीं होने दे रहे और सबसे बड़ी बात यह है कि हरियाणा में तो हम देख रहे हैं कि प्रदेश की जनता आंदोलनकारियों के पूर्णतया: साथ है। हर व्यक्ति चाहता है कि हम किसी न किसी प्रकार आंदोलनकारियों की मदद करें। ऐसा पहले कभी हुआ नहीं। सरकार की ओर से जनता का ध्यान हटाने के लिए हरियाणा सरकार ने पिछड़ों का आरक्षण और लव जेहाद का मुद्दा भी उठाने की कोशिश की। खालिस्तानी और पाकिस्तानी आदि की बातें भी कही गईं। कंगना रानौत जैसे सेलिब्रिटी भी बोले परंतु किसानों पर या जनता पर इसका कोई असर दिखाई होता नहीं दिया।

वर्तमान में दो दिन से हरियाणा सरकार या उसके मंत्रियों की ओर से कोई ब्यान आ नहीं रहे। दो दिन पूर्व कृषि मंत्री जेपी दलाल ने भिवानी में ब्यान दिया था। उनको यूपी के नंबर से कोई जान से मारने की धमकी आई। साथ ही उस पत्रकार को भी धमकी आई, जिसने इस समाचार को प्रमुखता से छापा था। 

उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला तो जबसे आंदोलन आरंभ हुआ है, तब से कुछ बोले ही नहीं हैं, जबकि वह किसान परिवार से ताल्लुक रखने का दम्भ भरते हैं। उनके परदादा ने राजनीति आरंभ की थी, वह किसानों के बड़े खैर-ख्वाह माने जाते थे। आज तो सुनने में यह आया है कि उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में भी उनकी चुप्पी पर और न होने पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि उनके भाई दिग्विजय चौटाला किसानों को संतुष्ट करने के लिए कह रहे हैं कि हम किसानों के साथ हैं और एमएसपी लागू होना चाहिए, लेकिन अब किसान जाग गया है। वह सवाल करता है कि यही बात जब से ये अध्यादेश जारी हुए थे, तब से क्यों नहीं की। जब हरियाणा विधानसभा में ये बिल पास हुआ था तो जजपा के विधायक और उपमुख्यमंत्री उसे समर्थन क्यों कर रहे थे। ऐसी चर्चाएं किसानों में चल रही हैं। यह सब चर्चाएं दुष्यंत चौटाला की लोकप्रियता और आगे की राजनीति के लिए घातक ही सिद्ध होंगी।

हरियाणा में ताऊ देवीलाल और सर छोटूराम का नाम किसानों के मसीहा के रूप में जाना जाता है और सर छोटूराम के नाती चौ. बिरेंद्र सिंह भी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। आज जब उनसे पत्रकारों ने इस बारे में पूछा तो उनका कहना था कि सरकार का काम जनता को कहीं भ्रम है तो उस भ्रम को दूर करने का है तथा सरकार को किसानों के साथ विश्वास कायम करना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि मैं किसान हूं और सदा किसान हित के लिए ही काम करता हूं, पार्टी और राजनीति बाद की बात है। 

इसी प्रकार वर्तमान में भाजपा और जजपा से संबंधित कई विधायक किसानों के साथ होने का दम भर रहे हैं। उनमें वर्तमान में सोमवीर सांगवान और बलराज कुंडू का नाम बहुत चर्चित है। ये किसानों के साथ मोर्चे पर डटे हैं। आज प्रो. रामभगत भी भाजपा छोड़ किसानों के समर्थन में आ गए हैं। इसी प्रकार और कई स्थानों से समाचार मिल रहे हैं कि किसान अपने क्षेत्र के विधायकों को कह रहे हैं कि सरकार का साथ छोड़ दें। खापों ने भी निर्दलीय विधायकों से अपील की है कि सरकार से समर्थन वापिस लेने की। इसी प्रकार के समाचार लगभग हर क्षेत्र से मिल रहे हैं।

कोरोना और ठंड में किसानों के हौसले को सलाम और यह हौसला देश ने जब भी देखा है कि जब कोरोना काल में देश की अर्थव्यवस्था हर क्षेत्र में मुंह के बल गिरी, वहां किसानों ने विपरीत परिस्थितियों में भी अधिक उत्पादन कर देश की अर्थव्यवस्था को संभाला। यह बात हरियाणा सरकार भी समझती है और इस समय यदि किसान की एक फसल भी बर्बाद हो गई तो देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक अवस्था पर कितना अंतर पड़ेगा, यह बहुत बड़ी बात है। इन सब बातों को देखते हुए शायद सरकार जो कुछ झुकी है, कुछ और झुके और किसानों को 9 दिसंबर को समझाने में सफल हो जाए, ऐसा हम चाहते हैं परंतु किसानों की तैयारी और मांग देख ऐसा संभव लगता नहीं।

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