मोक्षाश्रम की जरूरत क्यों ?

-कमलेश भारतीय

हमारा देश ऐसा जिसके श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन माता पिता को बहंगी में बिठा कर पवित्र धामों की यात्रा करवाई । आज भी जब बात चलती है और कोई आशीष निकलती है तो यह कि श्रवण कुमार जैसे बेटे हों । पर अब तक ओर कलयुग आ गया । श्रवण कुमार तो पौराणिक कथाओं का पात्र रह गया । कितने ऐसे समाचार पढ़ने को मिल जाते है जब माता पिता को जिम्मेदार बच्चे घर से निकाल देते हैं । कभी पंचकूला का केस पढ़ा था । वह बाप सीधी पुलिस स्टेशन पहुंच गया और मकान खाली करवा कर अपनी बेटी को दे दिया ।

आज हिसार का मामला सामने आया है कि अस्सी वर्षीय सास को बिस्तर समेत घर से बाहर फेंक दिया कलयुगी बहू ने । पुलिस तक बात गयी । भला हुआ कि किसी ने वीडियो बना लिया था । इसलिए गवाही मिल गयी । अब बहूरानी जेल में है । सासु बता रही है कि कितने जुल्म सहती रही । कमरे में बंद रखती थी और रोटी भी मुश्किल से खाने को मिलती थी । सही सज़ा और सही सबक सीख दूसरी बहुओं को भी ।

हिसार में ही एक हमारी पंकज संधीर जी हैं । समाजसेवी । मोक्षाश्रम यानी वृद्धाश्रम की संचालिका । उनका इंटरव्यू करवाने सिटी चैनल के शशि नायर के साथ घर गया । उन्होंने बहुत अच्छी बात कही कि हम तो ऐसी संस्कृति से हैं कि वृद्धाश्रम की कल्पना भी नहीं कर सकते लेकिन यह विचार विदेश से हमारे देश में आया लेकिन अब जरूरी हो गये वृद्धाश्रम । हमारे नये समाज का यह घिनौना चेहरा है जिसे स्वीकार करना पड़ा और मोक्षाश्रम बनाना पड़ा जिसमें इनको जीवन मिला और देने की कोशिश रहती है ।

जो कुछ बहूरानी ने किया वह हमारे समाज का नया चेहरा ही तो है । मैंने कहानी लिखी थी सन् 2003 में अपनी मां के निधन के बाद-दरवाजा कौन खोलेगा ? तब उस समय के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसका विमोचन करने से पहले पूछा कि क्या लिखा है ? मैंने बताया कि नये समाज में की जो हालत है उस पर लिखी है उनके निधन के बाद । समझ आया कि मांएं किस हाल में हैं । मांएं सब बच्चों के लिए घर का दरवाजा खुला रखती हैं । दौड़ी आतीं हैं दरवाजा खोलने लेकिन जब बच्चे बड़े होते हैं तो वही मांएं समस्या जैसी लगने लगती हैं।

बचपन में हर बच्चा जिद्द में कहता है कि मां मेरी लेकिन बड़े होने पर हर बच्चा कहता है कि मां तेरी । सवाल उठता है कि आखिर मां के लिए दरवाजा कौन खोलेगा ? सभी बच्चे दरवाजे बंद कर लेंगे तो मोक्षाश्रम की मां पंकज ही दरवाजा खोलेगी । फिर उसका खर्च कौन उठायेगा ? संस्था ही समाज से पैसा इकट्ठा करती है । ऐसी ही एक लघुकथा किसी की पढ़ी थी कि एक हाई ऑफिशियल वृद्धाश्रम में विजिट के लिए आता है । खूब फल मिठाई लेकर । लेकिन एक वृद्धा है जो सबके पीछे छिपी रहती है । सामने नहीं आती कि वीडियो में चेहरा न आ जाये । हाई आॅफिशियल के जाने के बाद प्रबंधक उस वृद्धा से पूछते हैं कि मां , आप आगे आकर फल मिठाई लेने क्यों नहीं आईं?

मां का जवाब -फिर मेरा वह ऑफिशियल बेटा क्या मुंह दिखाने लायक रहता ? यह है हमारा नया चेहरा । मां अपना चेहरा छिपाने की कोशिश कर रही है लेकिन जब बहूरानी ने ही घर से बाहर फेंक दिया और किसी ने वीडियो बना दिया तो उस में उसका क्या कसूर ?

इसमें मां का क्या कसूर ? मां ने तो बेटे की प्रेमिका की खुशी के लिए अपना कलेजा भी निकाल कर बेटे को दे दिया था पर बेटा ही राह में फिसल जाता है तो मां के कलेजे से आवाज आयी कि कहीं चोट तो नहीं लगी बेटा? मां बाप का ऋण उतार नहीं सकते पर कोशिश तो करो ।

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