उमेश जोशी

जुलाना से बीजेपी की टिकट पर 2019 के चुनाव में धूल चाटने वाले परमिंदर सिंह ढुल बीजेपी को झटका देने के लिए सुनहरी अवसर की तलाश में थे। वो अवसर आज आया और बीजेपी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए पार्टी छोड़ी है। यह भी अपील की है कि किसानों के साथ खड़े होने का अवसर आ गया है इसलिए सभी उनकी मदद के लिए आगे आएं।  

यह वही परमिंदर सिंह ढुल हैं जिन्होंने इनेलो की टिकट पर 2009 और 2014 में भारी मतों से जीत का रिकॉर्ड बनाया था। ढुल 2019 में हार के बाद ऐसा सुनहरी अवसर खोज रहे थे जब करीब सवा साल पहले बीजेपी जॉइन करने की गलती सुधार सकें। उनकी यह भी मंशा रही होगी कि गलती सुधारते समय बीजेपी को धीरे से जोरदार झटका भी लग जाए तो बीजेपी में जाने की गलती का अपराध बोध कम होगा।    

किसानों की बीजेपी से छक कर नाराजगी और बरोदा उपचुनाव में बीजेपी की साख की परीक्षा; बीजेपी से पिंड छुड़ाने के लिए परमिंदर सिंह ढुल के पास इससे बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता था। ढुल को यह ज्ञान मिल चुका था कि दो बार रिकॉर्ड मतों से जीतने के बाद बीजेपी में जाकर चुनाव हार गया जबकि वही चुनाव क्षेत्र है और वही मतदाता। इसका मतलब है कि बीजेपी में भविष्य नहीं है। ज्ञान मिलने के बाद ज्ञानी ढुल कोई ऐसा अवसर खोज रहे थे कि सम्मानजनक ढंग से मरा सांप गले से निकाल दिया जाए। ढुल ने किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों की आड़ में इस्तीफा देकर किसानों के सच्चे मित्र के रूप में छवि बना ली। यही किसान 2024 में ढुल  राजनीतिक भविष्य तय करेंगे, यह बात ढुल बखूबी जानते हैं। तीन कृषि कानूनों की आड़ तो पिछले महीने भी थी लेकिन तब बीजेपी को उतना बड़ा झटका नहीं लगता जो अब बरोदा उपचुनाव के समय लगा है। 

30 सितंबर 2020 को यानी महज 20 दिन पहले रादौर के पूर्व विधायक श्याम सिंह राणा ने भी किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बीजेपी से इस्तीफा दिया था। उनका इस्तीफा उतना चर्चा में नहीं रहा, जितना परमिंदर सिंह ढुल का है। वजह साफ है, ढुल का इस्तीफा ऐसे समय आया है जब उपचुनाव के लिए बीजेपी संघर्ष कर रही है; पार्टी में एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रही है। यूँ कहें कि राणा के मुकाबले ढुल अधिक चतुर निकले।  

 बीजेपी अपनी रणनीति में भी बुरी तरह फ्लॉप रही है। एक तरफ मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ बार बार दावा कर रहे हैं कि हाल में आए तीन कृषि कानून किसान विरोधी नहीं हैं। यह भी कह रहे हैं कि मंत्री और पार्टी के नेता किसानों के बीच जाएंगे और उन्हें समझाएंगे कि ये कानून उनके हित में है; वे विरोधियों के बहकावे में ना आएं। बीजेपी इस अभियान की शुरुआत अपने अपने घर से करती और अपने नेताओं के गले अपनी बात उतारती तो आज परमिंदर सिंह ढुल  ढुलमुल नहीं होते और पार्टी के साथ मजबूती से खड़े होते। 

आज एक ढुल के साथ दूसरे ढुल ने भी हिम्मत दिखाई और आत्मा की आवाज़ पर अपनी साख बचाई। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता रविन्द्र सिंह ढुल ने भी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को खुला पत्र लिख कर पार्टी का दामन छोड़ा है। रविन्द्र सिंह ढुल ने पत्र में पीड़ा व्यक्त करते हुए सवालिया लहजे में लिखा है कि तीन कृषि कानून राज्यों से सलाह के बिना देश की जनता पर क्यों थोपे गए? इसका उत्तर बीजेपी के पास नहीं है। अब मेरी आत्मा नहीं मानती है कि मैं संगठन की सेवा करूँ। मैं पार्टी का सदस्य बाद में हूँ, एक किसान पुत्र पहले। इसलिए मेरे लिए किसान हित सर्वोपरि हैं और पार्टी के किसी पद अथवा सम्मान से ऊपर हैं। ऐसे में तुरंत प्रभाव से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश मीडिया पेनलिस्ट के पद से इस्तीफा देता हूँ।   

 इससे पहले रादौर के पूर्व विधायक  श्याम सिंह राणा इस्तीफा दे चुके हैं; सरकार में साझीदार पार्टी जेजेपी के बरवाला विधायक कृषि कानूनों को लेकर सरकार के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए निगम का चेयरमैन पद ठुकरा चुके हैं; टोहाना से जेजेपी के विधायक देवेंद्र सिंह बबली  विद्रोही तेवर दिखाते हुए सभी को खरी खरी सुना रहे हैं। विधानसभा में बैठने वाले सभी नेताओं को बहरूपिया तक कह दिया है। इन हालात में बीजेपी और जेजेपी के आका पहले ही मुसीबत में फंसे हुए थे। आज परमिंदर सिंह ढुल और रविन्द्र सिंह ढुल के इस्तीफे से बीजेपी के खिलाफ हवा का झोंका तेज़ हुआ है। जनता में सीधे संदेश गया है कि इनके अपने नेता खुद मान रहे हैं कि तीन कृषि कानून सचमुच किसान विरोधी हैं। अब बीजेपी की किसी दलील का जनता पर असर नहीं होगा।

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