उमेश जोशी

बरोदा उपचुनाव ने नई करवट ली है।  अचानक तो नहीं, संभावनाओं के अनुरूप ही नए समीकरण बने हैं। तेज़ी से बदलती परिस्थितियों के कारण कमज़ोर होती बीजेपी नए समीकरणों में और बोदी दिख रही है। कुछ महीने पहले उपचुनाव में विजय के लिए बीजेपी ने जो दावे किए थे उनका दम कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। 

 बीजेपी और साझीदार जेजेपी के नेता हर मंच से यह याद दिलाना नहीं भूलते थे कि दोनों मिलकर बरोदा उपचुनाव लड़ेंगे। इसमें कोई ताज्जुब की बात भी नहीं थी। दोनों दल मिल कर सरकार चला रहे हैं तो राजनीतिक नैतिकता के अनुसार चुनाव भी मिलकर ही लड़ना चाहिए। थोड़ी-सी भी राजनीतिक सूझ वाला व्यक्ति इस राजनीतिक नैतिकता को समझता है।  फिर भी इसे बार बार दोहराया गया जिसकी ज़रूरत ही नहीं थी।  

बीजेपी और जेजेपी में नए नए इश्क का ही असर कहेंगे कि जेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला बरोदा उपचुनाव के लिए जून में ही कार्यकर्ताओं से मिलने निकल पड़े थे। 24 जून को गोहाना में कार्यकर्ताओं से बरोदा उपचुनाव को लेकर ख़ासी चर्चा की थी। बीजेपी से ज़्यादा जेजेपी को चिंता थी। 

जब चुनाव आया तो जेजेपी ने चुपके से किनारा कर लिया। जेजेपी की चिंता खोखली साबित हुई। बीजेपी उम्मीदवार योगेश्वर दत्त ने 16 अक्तूबर को पर्चा भरा उस दिन दुष्यंत चौटाला या उनका कोई विधायक साथ नहीं दिखाई दिया। चुनाव कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर भी जेजेपी का कोई नेता नहीं था। क्या ऐसे ही साथ चुनाव लड़ा जाता है? पार्टी के इस रुख से तो ऐसा लग रहा है कि जेजेपी का मतदाता भी बीजेपी को वोट नहीं देगा। वो कहाँ जाएगा, यह कहना मुमकिन नहीं है लेकिन बीजेपी की ओर जाने के आसार नगण्य हैं।

 निर्दलीय उम्मीदवार कपूर नरवाल ने आज नामांकन वापस लेकर काँग्रेस को समर्थन देने का एलान किया है। तकनीकी तौर पर कपूर नरवाल आज भी बीजेपी के सदस्य हैं। पार्टी ने उन्हें निष्कासित नहीं किया है। कपूर नरवाल को समर्थन दे रहे थे मेहम के विधायक बलराज कुंडू। कभी बीजेपी में होते थे। 2019 में विधानसभा का टिकट नहीं मिला तो लड़ लिए निर्दलीय और जीत गए। आज बीजेपी के धुर विरोधी हैं। कपूर नरवाल और बलराज कुंडू की केमिस्ट्री मिलती है इसलिए कुंडू भी कपूर के समर्थन में काम कर रहे थे।

अब कपूर काँग्रेस के साथ आ गए तो कुंडू भी स्वतः कांग्रेस को मिल गए। एक के साथ एक फ्री की कोई स्कीम तो नहीं थी फिर भी काँग्रेस को भाग्य से एक के साथ एक फ्री मिल गया। अब कपूर और कुंडू दोनों काँग्रेस के कारवाँ में हैं। दोनों का मकसद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का गरूर तोड़ना है। दरअसल, खट्टर अपनी उपलब्धियों पर चुनाव जीतना चाहते हैं। पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन खट्टर को मोदी के नाम के बजाय अपनी उपलब्धियों पर अधिक भरोसा है। कुंडू और कपूर काँग्रेस की आड़ में खट्टर को आईना दिखा कर असलियत से रूबरू कराना चाहते हैं।   

कुंडू बहुत पहले एलान कर चुके थे कि वे ऐसे उम्मीदवार के पक्ष में काम करेंगे जो बीजेपी को हरा सके। खट्टर से कुंडू की नाराजगी का विशेष कारण है। कुंडू ने बीजेपी में घनघोर भ्रष्टाचार पर कई बार आवाज़ उठाई है। स्वच्छ प्रशासन के दावे पर छवि चमकाने वाले मुख्यमंत्री को सबूतों के साथ भ्रष्टाचार की शिकायत की लेकिन वो खामोश रहे। कुंडू इसी बात से खफा हैं। कुंडू इस सीट को हराने में मदद कर यह साबित करना चाहते हैं कि जनता खट्टर के दावों की असलियत समझ गई है।   

किसान सरकार से पहले से ही नाराज़ है इसलिए अधिकतर किसान मजबूती से काँग्रेस के साथ खड़े हैं। किसान भी इस चुनाव में बीजेपी को झटका देकर अपनी नाराजगी का इज़हार करना चाहता है। अब स्वाभाविक तौर पर चार ‘क’ काँग्रेस, कपूर, कुंडू और किसान एक घर में बैठ गए हैं। बीजेपी की कुंडली में बैठे सारे ग्रहों को चार ‘क’ वक्र दृष्टि से देख रहे हैं इसलिए बीजेपी की नैया हिचकोले ले रही है और बीजेपी के नेता हैरान, परेशान हैं।   

error: Content is protected !!