किसानों के धरनों पर पहुंचे विधायक कुंडू ने कहा कि किसान की फसल को देश मे कही भी MSP से कम पर खरीद को तुरंत गैर कानूनी घोषित किया जाए।. रोहतक के गांव बहु अकबरपुर, भैणी, लाखनमाजरा के अलावा बरोदा के गांव आहुलाना-मदीना में किसानों द्वारा लगाए गए रोड जाम व धरना स्थलों पर पहुंचे महम के विधायक बलराज कुंडू।
. खेत-खलिहान को पूंजीपतियों के हाथ गिरवी रखने का षडयंत्र रच रही भाजपा सरकार- कुंडू

चंडीगढ़, 25 सितंबर : किसान संगठनों के भारत बन्द का हरियाणा भर में भी व्यापक असर देखने को मिला। हरियाणा की राजनीतिक राजधानी कहे जाने वाले रोहतक जिले के महम विधानसभा क्षेत्र में भी विभिन्न स्थानों पर सड़कें जाम रही और किसानों ने धरने लगाए। निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू गांव बहु अकबरपुर के जलेबी चौंक पर पहुंचे और किसानों को समर्थन दिया। किसानों ने उनको समर्थन पर कुंडू की सराहना करते हुए कहा कि वे लगातार किसान-कमेरे की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके लिए किसान उनके साथ खड़े हैं। इसके बाद बलराज कुंडू लाखनमाजरा, भैणी महाराजपुर और बरोदा हल्के के गांव आहुलाना-मदीना चौंक पर लगाये गए धरने पर भी पहुंचे।

अपने सम्बोधन में बलराज कुंडू ने कहा कि किसान आज सरकार ने तीन काले कानूनों के माध्यम से किसान, खेत-मज़दूर, छोटे दुकानदार, मंडी मज़दूर व कर्मचारियों की आजीविका पर एक क्रूर हमला किया है। किसान-खेत मजदूर के भविष्य को रौंदकर भाजपा सरकार ने उनके भाग्य में बदहाली और बर्बादी लिख दी है। यह किसान, खेत और खलिहान के खिलाफ एक घिनौना षडयंत्र है। आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ भारत बंद के माध्यम से धरना प्रदर्शन कर अपना विरोध जता रहे पर भाजपा सरकार पूरे मुल्क को बरगला रहीं हैं। अन्नदाता किसान की बात सुनना तो दूर, संसद और राज्यसभा तक में भी उनके चुने हुए नुमाईदो की ही आवाज को दबाया जा रहा है और सड़कों पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है।

कुंडू ने कहा कि किसान विरोधी यह तजुर्बा भाजपा शासित बिहार में भाजपा ने साल 2006 में शुरू किया था और अब घुन की तरह पूरे देश की खेती और किसानी को तीन कृषि विरोधी काले कानूनों की शक्ल में निगल रहा है।

बलराज कुंडू ने कहा कि किसान-खेत मजदूर की बुलंद आवाज को बहुमत की गुंडागर्दी से नहीं दबाया जा सकता। केंद्र के काले कानूनों के खिलाफ बलराज कुंडू ने कई सवाल उठाए हैं जो निम्न प्रकार हैं :-

  1. अगर अनाज मंडी-सब्जी मंडी व्यवस्था यानि एपीएमसी पूरी तरह से खत्म हो जाएगी, तो कृषि उपज खरीद प्रणाली भी पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) कैसे मिलेगा, कहां मिलेगा और कौन देगा? क्या FCI साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेत से एमएसपी पर उनकी फसल की खरीद कर सकती है? अगर बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा किसान की फसल को एमएसपी पर खरीदने की गारंटी कौन देगा ? एमएसपी पर फसल न खरीदने की क्या सजा होगी ? सरकार इनमें से किसी बात का जवाब नहीं दे रही।इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा-जनता दल शासित बिहार है। साल 2006 में APMC ACT यानि अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। बिहार से किसान की उपज को बिचौलिए औने-पौने दामों पर खरीदकर छत्तीसगढ़-पंजाब-हरियाणा में बेच देते हैं। अब पूरे देश में ही खेत खलिहान को खत्म करने का भाजपा षडयंत्र किया गया है।
  2. तीनों कानूनों में न्यूनतम समर्थन मूल्य’ यानि MSP शब्द की चर्चा तक नहीं है। अगर, भाजपा सरकार के मन में बेईमानी नहीं है तो वह इन कानूनों में MSP की गारंटी क्यों नहीं देते ? कानून में ऐसा क्यों नहीं लिखते कि किसान को MSP देना अनिवार्य है तथा उससे कम खरीद करने पर सरकार नुकसान की भरपाई करेगी और दोषी को सजा देगी। कारण साफ है कि सरकार खेत और खलिहान को मुट्ठीभर पूंजीपतियों की ड्योढ़ी का दास बनाना चाहती है।
  3. मोदी सरकार का दावा कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु वास्तविक सत्य क्या है ? कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 88 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता या बेच सकता।
  4. मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, दुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेखर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी। बिहार इसका एक उदाहरण है।
  5. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इन काले कानूनों की आड़ में मोदी सरकार असल में ‘शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े और सालाना 80,000 से 1 लाख करोड़ की बचत हो। इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान किसान-मजदूर पर पड़ेगा।
  6. तीन काले कानूनों के माध्यम से किसान को ‘ ठेका प्रथा में फंसाकर उसे अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा। क्या दो से पांच एकड़ भूमि का मालिक गरीब किसान बड़ी बड़ी कंपनियों के साथ फसल की खरीद फरोख्त का कॉन्ट्रैक्ट बनाने समझने व साईन करने में सक्षम है ? साफ तौर से इसका जवाब नहीं में है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून की सबसे बड़ी खामी तो यही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी देना अनिवार्य नहीं। जब मंडी व्यवस्था खत्म होगी तो किसान केवल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग पर निर्भर हो जाएगा और बड़ी कंपनियां किसान के खेत में उसकी फसल की मनमर्जी की कीमत निर्धारित करेंगी। यह नई जमींदारी प्रथा नहीं तो क्या है ? यही नहीं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से विवाद के समय गरीब किसान को बड़ी कंपनियों के साथ अदालत व अफसरशाही के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है। ऐसे में ताकतवर बड़ी कंपनियां स्वाभाविक तौर से अफसरशाही पर असर इस्तेमाल कर तथा कानूनी पेचीदगियों में किसान को उलझाकर उसकी रोजी रोटी पर आक्रमण करेंगी तथा मुनाफा कमाएंगी।
  7. कृषि उत्पाद, खाने की चीजों व फल-फूल-सब्जियों की स्टॉक लिमिट को पूरी तरह से हटाकर आखिरकार न किसान को फायदा होगा और न ही उपभोक्ता को। बस चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मुट्ठी भर लोगों को फायदा होगा शायद यह पहली सरकार है जिसने एसेंशियल कमोडिटीज़ कानून (आवश्यक वस्तु कानून) में संशोधन कर यह लिख दिया कि जब तक कीमतों में 100 प्रतिशत बढ़ोत्तरी न हो जाय, कि 100 रु. प्रतिकिलो की चीज़ 200 रु. प्रतिकिल्पे न हो जाय, तब तक सरकार दखलंदाजी नहीं कर सकती। इसका सीधा नुकसान गरीब आदमी और आम जनमानस को होगा।
  8. कृषि विरोधी काले कानूनों में न तो खेत मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण का कोई प्रावधान है और न ही जमीन जोतने वाले बंटाईदारों या मुजारों के अधिकारों का संरक्षण। ऐसा लगता है मानो इन सभी को खत्म करने के लिए अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।
  9. अगर सरकारी खरीद और न्यूनतम समर्थन मूल्य दोनों ही खत्म हो गए तो राशन की दुकानों पर मिलने वाला गरीब के लिए अनाज अपने आप खत्म हो जाएगा। असल में भाजपा किसान की उपज की खरीद व गरीब तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था को ही पूरी तरह खत्म कर देना चाहती है।
10. यह तीनों काले कानून संघीय ढांचे पर सीधे सीधे हमला हैं। खेती व मंडियां, संविधान के सातवें शेड्यूल में राज्य अधिकारों के क्षेत्र में आते हैं लेकिन केंद्र सरकार ने राज्यों से राय करना भी उचित नहीं समझा। खेती के संरक्षण और प्रोत्साहन स्वाभाविक तौर से प्रांतों का विषय है परंतु उनकी कोई राय नहीं ली गई, उल्टा खेत खलिहान व गांव की तरक्की के लिए लगाई गयी मार्केट फीस व ग्रामीण विकास फंड को ही खत्म कर दिया गया है। यह सीधे तौर पर संविधान के विरुद्ध है।

बलराज कुंडू ने कहा कि महामारी की आड़ में किसानों की आपदा’ को मुट्ठीभर ‘पूंजीपतियों के अवसर’ में बदलने की भाजपा की केंद्र सरकार की साजिश को देश का अन्नदाता किसान व मजदूर कभी नहीं भूलेगा। सरकार व उसके मददगार हर राजनीतिक दल की सात पुश्तों को इस किसान विरोधी दुष्कृत्य के परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कांग्रेस देश के किसान व खेत मजदूर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तब तक निर्णायक लड़ाई लड़ेगी जब तक इन काले कानूनों को खत्म नहीं कर देंगे।
बलराज कुंडू ने बरोदा उपचुनाव का भी जिक्र किया और किसानों को आह्वान करते हुए बोले कि बरोदा से पूरे प्रदेश में जबरदस्त सन्देश जाएगा और बरोदा में हार के बाद प्रदेश की खट्टर सरकार भी चलती बनेगी।

error: Content is protected !!