भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज कुरुक्षेत्र में किसान रैली के लिए किसान एकत्र होने लगे तो पुलिस हरकत में आई। शायद किसानों का आना उनकी आशा के अधिक था और उन्हें रोकने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। विपक्ष जो सदा सरकार की नाकामियां ढूंढता है, एक बहुत बड़ा असली मुद्दा मिल गया और सभी विपक्षी दल किसानों के खैरख्वाह बनकर भाजपा पर बरसने लगे।

शुरुआत में सर्वप्रथम निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू किसानों के साथ रैली स्थल पर जाने लगे और वहां ही पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। उन्हीं के साथ कांग्रेस भी हमलावर हुई, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला, कुलदीप बिश्नोई, कुमारी शैलजा आदि सभी नेताओं ने किसानों के समर्थन में सरकार की दमनकारी नीति को जमकर कोसा। ऐसे में इंडियन नेशनल लोकदल के अभय चौटाला भी कहां पीछे रहने वाले थे, उन्होंने भी कोसा।

आज किसानों पर जो बेदर्दी से लाठीचार्ज हुआ, उसे किसी भी मायने में उचित तो नहीं ठहराया जा सकता। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सरकार द्वारा अन्नदाता पर लाठीचार्ज करना मजबूरी थी या इन्हें समझाकर शीर्ष नेता द्वारा रैली स्थल पर जाकर कोई आश्वासन देकर इसे रोका जा सकता था या फिर सरकार यह सोचती थी कि विपक्ष तो है ही नहीं अत: यह रैली-धरने नाम मात्र के होंगे, लोग जुटेंगे नहीं और हम अपने कार्यों में लगे रहेंगे। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि या तो सरकार की गुप्तचर एजेंसियां यह सरकार को बताने में सफल नहीं रहीं या फिर सरकार अपने मद में लापरवाह रही।

इन दो संभावनओं से दिगर एक और भी संभावना है कि सरकार इस प्रकार के आंदोलनों से निपटने में अनुभवहीन है। जो पिछली सरकार में बाबा राम रहीम, जाट आंदोलन आदि में भी दिखाई दिया है और वही कुछ अब दिखाई दे रहा है। अब तो गठबंधन की सरकार है। मुख्यमंत्री कोरोना से अभी पूर्ण स्वस्थ होकर निकले नहीं हैं। अब कमान उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के हाथ थी या गृह मंत्री अनिल विज के हाथ, यह विचारनीय प्रश्न है हमारे लिए भी और सरकार के लिए भी।

दिग्विजय चौटाला का ट्वीट आया है कि लाठीचार्ज की जांच होनी चाहिए। अब वह सरकार में हैं या विपक्ष में। यही बात आने वाले समय की ओर इंगित कर रही है कि इस लाठीचार्ज का ठीकरा दोनों गठबंधन दल एक-दूसरे पर फोडऩे का प्रयास करेंगे।

लगता है आज की घटना सरकार पर बहुत भारी पडऩे वाली है, क्योंकि पहले जो आंदोलन हुए हैं, उनमें 10-5 प्रतिशत लोगों की प्रतिभागिता रही है और वे भी सरकार से संभले नहीं और वर्तमान आंदोलन में तो किसान और व्यापारी शामिल हैं। जिनकी संख्या प्रदेश की 70-75 प्रतिशत से कम नहीं होगी। ऐसी अवस्था में आंदोलन को संभालना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है।

इन सबसे बड़ी बात यह है कि हरियाणा में सरकार मोदी के नाम से बनी, मोदी ही चला रहे हैं, मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की प्रदेश की जनता का ख्याल रखने से पहली प्राथमिकता प्रधानमंत्री मोदी को प्रसन्न रखने की होती है और वर्तमान में तीनों अध्यादेश मोदी सरकार द्वारा लाए गए हैं। अत: सरकार की यह मजबूरी है कि वह किसानों को किसी भी सूरत में ठीक नहीं मान सकती।

इस आंदोलन की गूंज केवल हरियाणा तक रहने वाली नहीं है, जैसा कि पहले कहा कि यह आंदोलन केंद्रीय सरकार के कृषि संबंधी अध्यादेशों को लेकर है और किसान सारे भारत में हैं तथा भारत में उनका महत्व किसी छुपा नहीं। हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज का समाचार जब पूरे देश में जाएगा तो उसका असर तो वहां भी होगा। विशेष रूप से बिहार और एमपी में इसका प्रभाव जाना भाजपा के लिए खतरे की घंटी साबित होने वाला है, क्योंकि शीघ्र ही वहां चुनाव होने वाले हैं।

तात्पर्य यह है कि कह सकते हैं कि हरियाणा में इस सरकार के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी हो गईं, गठबंधन दल भी आपस में विवाद कर सकते हैं और किसानों के पक्ष में परिस्थितियों को देखते हुए सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता भी अन्य पार्टियों की ओर रुख कर सकते हैं।