भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम साइबर सिटी के नाम से जाना जाता है। हरियाणा का कमाऊ जिला है और यहां जनता वर्तमान हालात में मायूस है। उसे नहीं लगता कि सरकार और प्रशासन को उसके दुख-सुख की चिंता है।

अनेक नागरिकों से बात हुई। अधिकांश का कहना है कि सरकार में सभी नेता अपनी-अपनी छवि सुधारने में लगे हैं या दूसरे शब्दों में कहें कि अपने आपको स्थापित करने में लगे हैं तो अतिश्योक्ति न होगी। कुछ प्रबुद्ध नागरिकों ने सलीके से इस बात को समझाया भी। उनका सार आपको बताते हैं।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल अनेक समस्याओं से ग्रस्त हैं। एक तो गठबंधन की सरकार, दूसरे प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव, मंत्रियों, संसदीय सचिवों आदि की नियुक्ति और इन सबसे ऊपर कर्मचारियों की संस्थाएं इस समय सरकार से खार खाए लगती हैं। इन समस्याओं से जूझते हुए वह अपनी गत कार्यकाल जैसी स्थिति बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

दूसरी ओर सरकार का सहयोगी जजपा भी अपनी आंतरिक कलह से जूझ रही है। जिस प्रकार अल्पकाल में दुष्यंत चौटाला दस सीट जीतकर अपना वर्चस्व बनाने में कामयाब हुए थे, वह अब खिसकता दिखाई दे रहा है। उनकी पार्टी के लोग अपनी पुरानी पार्टी की ओर रूख करने लगे हैं और इसका प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि उन्होंने अपने संगठन की कार्यकारिणी को भंग कर दिया है, क्योंकि अधिकांश देखा गया है कि कार्यकारिणी जब भंग होती है तब वह उचित कार्य करने में सक्षम नहीं होती। कहने वालों का तो यह भी कहना है कि कार्यकारिणी इसलिए भंग की गई कि इनकी पार्टी का कोई व्यक्ति या पदाधिकारी इनेलो में जाता है तो यह कहते सकते हैं कि वह हमारा पदाधिकारी है ही नहीं। सारांश यह है कि दुष्यंत चौटाला भी अपनी छवि बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इस समय भी सबसे बड़ी समस्या कोरोना है और वर्तमान में सरकार या उसके मंत्री, विधायकों की ओर से कोई बात नहीं हो रही। बातें हो रही हैं तो बरोदा उपचुनाव में माहौल बनाने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाओं की। अर्थात अपनी छवि बनाने और चुनाव जीतने के कार्यक्रम में व्यस्त है।

अब बात करें प्रशासन की तो यह कहने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए कि जब किसी अधिकारी को मुख्यमंत्री का प्रशंसा पत्र प्राप्त है तो वह आत्म मुग्ध हो ही जाएगा और यही स्थिति वर्तमान में गुरुग्राम के अधिकारियों की है। रोज अपनी उपलब्धियों के गुणगान करते हुए उनके वक्तव्य छपते रहते हैं। जनता भी उसे पढ़ती है, सुनती है और कई लोगों को कहते सुना है कि क्यों जले पर नमक छिडकते हैं ये लोग। वास्तविकता यह है कि जनता इस समय अनेक परेशानियों से जूझ रही है। ऐसे में उसे उपलब्धियों के ब्यान नहीं धरातल पर काम चाहिए। वह दिखाई नहीं देता।

अधिकांश जनता का कहना है कि कोरोना के कारण आम मरीज को सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेना दुरूह हो गया है। कोरोना की बात पर कहते हैं कि पहले प्रशासन की ओर से खूब प्रचारित किया गया था कि जहां किसी परिवार में कोरोना का मरीज मिलेगा, तो उसके पूरे घर की जांच होगी, पड़ोसियों की जांच होगी, आसपास के क्षेत्र को सेनेटाइज कराया जाएगा, सभी आसपास वालों को इम्युनिटी बूस्टर दिए जाएंगे लेकिन वास्तविकता में कहीं कुछ है ही नहीं।

जिसके घर में कोरोना का मरीज होता है उसे घर में ही ध्यान रखने को कहा जाता है और कहा जाता है कि डॉक्टर रोज जांच करेंगे लेकिन ऐसा होता नहीं है। मरीज बीमार है, अपने आप ठीक हो जाता है, नौकरी पर जाता है, नौकरी वाला उससे फिटनेस सर्टिफिकेट मांगता है कि मैं ठीक हो गया हूं, कोरोना से मुक्त हो गया है, लेकिन वह उसके पास होता नहीं है। ऐसी स्थितियां बन रही हैं। व्यापारी काम से दुखी, जनता के पास धन का अभाव है, त्यौहार सिर पर हैं, ऐसी स्थिति में जनता मायूस ही नजर आती है, क्योंकि उसकी सुनवाई न प्रशासन में होती, न शासन में होती और उससे भी बड़ी बात यह कि चुनाव के समय अनेक पार्टियों के और आजाद अनेक उम्मीदवार कसमें खा-खाकर कह रहे थे कि हम जनता के सुख-दुख में साथ रहेंगे। वे अब कहीं नजर ही नहीं आ रहे।

ऐसा नहीं है कि हाल-फिलहाल स्थितियों में कुछ सुधार होता नजर आ रहा है। लगता है कि आने वाला समय जनता के लिए और कठिनाइयां लेकर आएगा। आज या कल से बरसात शुरू हो जाएगी, बरसात के बाद अनेक रोग भी मच्छरों से उत्पन्न होते हैं। हर साल डॉक्टरों के लिए यह हैल्दी सीजन कहलाता है। तो ऐसी स्थिति में जनता को स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी परेशान होना पड़ सकता है।

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