भिवानी/मुकेश वत्स

 केंद्र सरकार ने हालिया समय में तीन कृषि अध्यादेश लागू किए हैं एवं डीजल के दामों में बेतहाशा वृद्धि की है जो कि किसान विरोधी हैं। कोरोना महामारी के दौरान कृषि क्षेत्र/किसान की मेहनत के कारण ही देश की अर्थव्यवस्था का पहिया घूम रहा है ऐसी महामारी में जब देश की संसद भी बंद है। उस समय का फायदा उठाकर केंद्र सरकार अलोकतांत्रिक तरीके से बिना किसानों की सलाह मशविरा करे ये कृषि अध्यादेश ले के आई  है। इन आदेशों के कारण किसानों के भविष्य एवं खाद्य सुरक्षा पर गंभीर संकट मण्डराने लगा है। यह बात भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम  सिंह चढूनी ने कार्यकत्र्ताओं व किसानों की बैठक को संबोधित करते हुए कही।

बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए प्रदेशाध्यक्ष चढूनी ने कहा कि भाजपा-जजपा ने सत्ता में आने से पहले किसानों से स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का वायदा किया था लेकिन सत्ता में आने के बाद गठबंधन सरकार ने किसानों की कमर तोडऩे का काम किया। उन्होंने कहा कि सरकार ने एसंसल कमोडिटी एक्ट 1955 में बदलाव करके आलू, प्याज, दलहन, तिलहन आदि भण्डारण पर लगी रोक को हटा लिया है। इसे किसानों को नहीं बल्कि बड़ी कंपनियों को ही फायदा होगा। सरकार कान्ट्रेक्ट खेती को बढ़ावा दे रही है। इस के चलते किसान अपनी ही जमीन पर कंपनियों के मजदूर बन जाएंगे और किसानी का अपना वजूद खत्म हो जाएगा।

उन्होंने सरकार से तीनों कृषि विरोधी अध्यादेशों को तुरंत वापिस लेने तथा डीजल की कीमतों को घटाने की सरकार से मांग की है। अगर सरकार ने उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो भारतीय किसान यूनियन अन्य किसान संगठनों व किसानों के साथ मिलकर 20 जुलाई को अपने-अपने ट्रैक्टरों पर काले झण्डे लगाकर विरोध जाएगी।

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