मुख्यमंत्री की मर्जी चले तो ठीक, नहीं तो लटकाओ

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा दल आजकल बहुत चर्चा में है। लगभग सभी सरकारी कर्मचारियों की यूनियनें असंतुष्ट नजर आ रही हैं। गठबंधन सरकार अब फिर वादों की बौछार करने पर लगी हुई हैं।

हरियाणा भाजपा के अंदर भी आजकल भाजपा के वरिष्ठ नेता जनता की कम, अपने संगठन की चर्चा अधिक करते हैं। अभी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की चर्चाओं के आधार पर बता रहे हैं कि भाजपा सरकार दीवाली को गठित हुई थी और उसमें दो मंत्रियों के बनाने की जगह अब तक बाकी है। वह शायद इसलिए नहीं भरी जा रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री के ऊपर सहयोगी दल जजपा और भाजपा के ही अन्य नेताओं के दबाव के कारण वह अपनी मर्जी से मंत्री नहीं बना पा रहे। इससे मंत्री पद के दावेदार अनेक विधायक अपनी-अपनी लॉबिंग में लगे हुए हैं।

इसी प्रकार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का चयन लगभग पिछले छह महीने से हो नहीं पा रहा है, इससे भाजपा के जिला अध्यक्षों का भी मनोनयन नहीं हो पा रहा है। जो पुराने जिला अध्यक्ष हैं, वह अपने पद को बरकरार रखने के प्रयास में अधिक लगे हुए हैं, हर जिले में जिला अध्यक्ष के लिए अनेक उम्मीदवार हैं, अत: आपस की प्रतिस्पर्धा कटुता का रूप ले रही है। जिससे पार्टी संगठन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जिला अध्यक्ष बनने के दावेदार लॉबिंग में लगे हुए हैं।

अब बात करें चेयरमैनों की तो कुछ चेयरमैनों का तो कार्यकाल समाप्त हो गया है और कुछ बेचारे कोविड की भेंट चढ़ गए हैं। तात्पर्य यह कि जिन चेयरमैनों को हटा दिया गया है, उनकी जगह नया कोई नियुक्त नहीं किया गया है। इससे कमान अधिकारियों के हाथ है और अधिकारी तो मुख्यमंत्री के इशारों पर चलेंगे ही। अभी चंद माह में ही महिला आयोग की चेयरमैन का भी कार्यकाल समाप्त हो रहा है। देखना यह होगा कि उसके लिए क्या नया अध्यक्ष चुना जाएगा या वह भी लटका दिया जाएगा।बात फिर वहीं खड़ी है कि भाजपा के सैकड़ों या यूं कहें कि हजार भी हो सकते हैं, वरिष्ठ भाजपाई अपने-अपने पद की लॉबिंग में लगे हुए हैं।

अभी हाल ही में मार्किट कमेटियों के चेयरमैनों का कार्यकाल समाप्त होने से छह दिन पूर्व उन्हें हटा दिया गया है और वर्तमान में उसके लिए भी अनेक दावेदार लॉबिंग में लग गए हैं। सवाल फिर वही खड़ा है कि यहां भी हाल क्षेत्र के सांसद अपनी पसंद का चेयरमैन चाहेंगे और मुख्यमंत्री अपनी पसंद का और वर्तमान स्थितियों में ऐसा लगता नहीं कि मुख्यमंत्री सब अपनी पसंद का कर पाएंगे। तो संभावना यही है कि यह भी लटकाए जाएंगे।

उपरोक्त स्थितियों को देखकर कुछ भाजपाइयों से बात करने के बाद हम यह संभवना व्यक्त करते हैं कि इस वित्तीय वर्ष में इनको अभी न चुना जाए, इन्हें मार्च 2021 के बाद ही पदों पर आसीन किया जाए। कारण यह भी बताया जा सकता है कि कोविड-19 के कारण वित्तीय कठिनाइयों को देखते हुए सरकार के खर्चे बचाने के लिए यह कार्य लटकाये जा रहे हैं। बात जो भी हो, यह तो तय है कि राजनीति में जब नेता आते हैं, तो अपने विकास की आशाएं लेकर जाते हैं और उसकी शुरुआत संगठन में किसी न किसी प्रकार के पद पाने से ही होती है। अत: वह लोग तो सक्रिय रहेंगे ही लॉबिंग करने में। फिर यह भी तो कोई तय नहीं कि इन सभी को मार्च 2021 में ही पदों पर आसीन किया जाए। यह भी तो संभव है कि मुख्यमंत्री चाहें तब ही इन पदों पर नियुक्तियां कर सकते हैं। अत: भाजपा में अनुमान है कि चलती ही रहेगी लॉबिंग, लॉबिंग, लॉबिंग…।

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