बात सह गए तो रिश्ते रह गए – बात कह गए तो रिश्ते ढह गए
कुछ कह गए कुछ सह गए, कुछ कहते कहते रह गए – मैं सही तुम गलत के खेला में न जाने कितने रिश्ते ढह गए, सराहनीय विचार
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

बात सह गए तो रिश्ते रह गए – बात कह गए तो रिश्ते ढह गए रिश्तों की बुनियाद आपसी समझ, सहिष्णुता और सामंजस्य पर टिकी होती है। जब हम धैर्य और सहनशीलता से काम लेते हैं, तो रिश्ते मजबूत बने रहते हैं, लेकिन जब हम अहंकार में बहकर कठोर शब्दों का उपयोग करते हैं, तो ये टूटने लगते हैं। यह विचार हमारे समाज के हर पहलू—परिवार, कार्यस्थल, पड़ोस और वैवाहिक जीवन—में लागू होता है।
रिश्तों की महत्ता और भारतीय संस्कृति
1959 में रिलीज़ हुई फिल्म पैगाम के गाने “इंसान को इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा…” को सुनकर हम यह समझ सकते हैं कि रिश्तों में प्रेम, सम्मान और भाईचारे की भावना कितनी आवश्यक है। भारत सदियों से इन मूल्यों का पालन करता आया है, जहां पारिवारिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सहेजने में हमारी संस्कृति अग्रणी रही है।
परिवार और रिश्तों की मौजूदा चुनौतियाँ

आज के दौर में बदलती जीवनशैली के कारण परिवार छोटे हो रहे हैं और विचारों की खाई बढ़ रही है। घर, ऑफिस या व्यापारिक स्थल—हर जगह टकराव और विवाद देखने को मिलते हैं। सास-बहू के मतभेद, पति-पत्नी की बहस, पिता-पुत्र के झगड़े या बॉस-कर्मचारी के बीच तनाव जैसी स्थितियाँ आम हो गई हैं। यह स्पष्ट है कि केवल बाहरी उपायों से रिश्ते नहीं सुधर सकते, बल्कि इसके लिए अपने व्यवहार और आचरण में बदलाव जरूरी है।
रिश्ते निभाने के मंत्र
- सहनशीलता और सहिष्णुता – अगर रिश्ते को बचाना है, तो हमें सहनशील बनना होगा। किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए अहंकार को छोड़कर, नम्रता और प्रेम से काम लेना होगा।
- आत्मनिरीक्षण और सुधार – जब हम स्वयं की गलतियों को पहचानते हैं और उन्हें सुधारते हैं, तो न केवल हमारा व्यक्तित्व निखरता है, बल्कि हमारे संबंध भी मधुर बनते हैं।
- पड़ोसियों से संबंध – पड़ोसी पहला सगा होता है, क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में वही सबसे पहले सहायता के लिए आता है। इसलिए पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
- समय का योगदान – किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए समय देना ज़रूरी है। अपने परिवार और मित्रों के साथ समय बिताएं, उनके सुख-दुख में सहभागी बनें।
- ऑफिस में रिश्तों का संतुलन – कर्मचारी और बॉस के बीच सम्मान और समझदारी का रिश्ता कामकाजी माहौल को सकारात्मक बनाता है, जिससे व्यक्तिगत और पेशेवर विकास दोनों संभव होते हैं।
- वैवाहिक जीवन की मधुरता – पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ा न करें। रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए संवाद और परस्पर सम्मान आवश्यक हैं।
- भावनाओं को समझना – रिश्तों में स्थिरता लाने के लिए हमें खुद को समझना होगा। जब हम अपनी भावनाओं को सही दिशा में नियंत्रित करना सीखेंगे, तभी अपने रिश्तों को भी मजबूत बना पाएंगे।
- दूसरों को स्थान दें – रिश्ते समायोजन और त्याग पर चलते हैं। अगर हम अपने साथी को स्वतंत्रता और प्रेम देंगे, तो रिश्ता और अधिक मजबूत होगा।
निष्कर्ष
“अरावप्युचितं कार्यमातिथ्यं गृहमागते।
छेत्तुः पार्श्वगताच्छायां नोपसंहरते द्रुमः।।”
अर्थात, यदि शत्रु भी घर आए, तो उसका आतिथ्य सत्कार करना चाहिए, जैसे वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। यही भावना रिश्तों को सहेजने में मदद करती है।
इसलिए, आओ हम सभी अपने रिश्तों को मजबूती से निभाने का संकल्प लें। सहनशीलता और प्रेम से परिपूर्ण जीवन ही सच्ची खुशी और संतोष का आधार है।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र