चंडीगढ़: हरियाणा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज का इतिहास अभी भी सरकारी उपेक्षा का शिकार है। देश की आजादी में हरियाणा के 5,000 से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा है। इनमें से लगभग 3,000 सेनानी नेताजी की आजाद हिंद फौज से जुड़े थे। उन्होंने ब्रिटिश सेना से बगावत कर आजादी की लड़ाई लड़ी। कई सेनानियों को इस कारण जेलों में यातनाएं सहनी पड़ीं, लेकिन उनकी वीरगाथाएं सरकारी फाइलों में बंद होकर रह गईं। 

48 सालों से  पूर्व की प्रदेश सरकारों की अनदेखी के चलते नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास आज तक नहीं  बन पाया। स्वतंत्रता सेनानी परिजनों का कहना है की। पूर्व की प्रदेश सरकारों की अनदेखी के चलते के आजाद हिंद फौज के सेनानियों की ओर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। 8 दिसंबर 1977 को निदेशक हरियाणा राज्य अभिलेखागार चंडीगढ़ ने प्रदेश के आजाद हिंद फौज के सेनानियों को इतिहास बनाने के लिए पत्र लिखकर जीवन संबंधी सूचना भेजने के लिए कहा था।

पत्र में लिखा गया था की हरियाणा राज्य अभिलेखागार चंडीगढ़ आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास बनाएगी। आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानियों को सूचना पत्र के साथ एक प्रति भी भेजी थी, जिसमें एक फोटो भी भेजने के लिए कहा गया। 1977 के बाद से साल के अर्से में दर्जनों बार सेनानी परिवारों से फोटो व उनका इतिहास मांग चुके है। लेकिन आज तक कोई भी इतिहास नही बन पाया।

देश की आजादी की लड़ाई में हरियाणा से 5 हजार से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया था, जिसमें अधिकतर सेनानी इस इतिहास के इंतजार में स्वर्ग सिधार गए है। प्रदेश में इस समय 5 स्वतंत्रता सेनानी व 230 उनकी विधवा आज जिंदा है, वे भी इस इतिहास को देखना चाहते है।

पूर्व की सरकारों की अनदेखी के चलते स्वतंत्रता सेनानी के परिवार नाराज है। प्रदेश में भाजपा की नायाब सिंह सैनी की सरकार से स्वतंत्रता सेनानी परिवारों की मांग है कि जल्द ही स्वतंत्रता सेनानियों व आइएनए का इतिहास बनाया जाए। उत्तराधिकारियों को पंजाब की तर्ज पर नौकरियों में दो प्रतिशत आरक्षण दिया जाए व प्रदेश में स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारियों को सम्मान पेंशन दी जाए।

इतिहास की अनदेखी का लंबा सिलसिला

हरियाणा के गठन के बाद 1977 में सरकार ने अभिलेखागार विभाग को निर्देश दिया था कि वह स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का पूरा लेखा-जोखा तैयार करे। इसके तहत सेनानियों से उनके संघर्ष और योगदान की जानकारी मांगी गई थी। परंतु आज तक इस कार्य को पूरा नहीं किया जा सका।

अभिलेखागार विभाग ने एक डम्मी ड्राफ्ट बुक तैयार कर काम खत्म मान लिया। लेकिन न तो इसे प्रकाशित किया गया और न ही सेनानियों के योगदान को सम्मानजनक तरीके से प्रस्तुत किया गया। इस दौरान कई सेनानी और उनके परिवार न्याय की उम्मीद में अपनी जिंदगी पूरी कर चुके हैं।

जेलों की यातनाओं से इतिहास की फाइलों तक

नेताजी की आजाद हिंद फौज में शामिल इन सेनानियों ने ब्रिटिश सेना से बगावत कर आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। कई सेनानियों को लंबे समय तक जेलों में यातनाएं झेलनी पड़ीं। इनकी वीरता और बलिदान को भारतीय इतिहास में दर्ज करना तो दूर, सरकार ने इसे संरक्षित करने की ओर भी कोई गंभीर कदम नहीं उठाया।

परिजनों की अपील:  इतिहास का सम्मान हो

आजाद हिंद फौज के इन सेनानियों के परिजनों ने राज्य सरकार से मांग की है कि उनके पूर्वजों के योगदान को मान्यता दी जाए। परिजनों का कहना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी फौज के इतिहास को जीवंत बनाना न केवल उनके पूर्वजों का सम्मान होगा, बल्कि यह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगा।

मुख्यमंत्री नायब सैनी से मांग

 मास्टर सुरेंदर जागलाल, एडवोकेट दीपक गोयत, सुरेंद्र डूडी, ओमप्रकाश ढांडा, राजेश, सतीश  व अन्य परिजनों ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी से मुलाकात का समय मांगा है। उनकी मांग है कि आजाद हिंद फौज के इतिहास को प्राथमिकता के आधार पर प्रकाशित किया जाए और मुख्यमंत्री स्वयं इसका विमोचन करें।

सरकार की जिम्मेदारी और भविष्य की उम्मीद

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी पर यह जिम्मेदारी है कि वे इस उपेक्षित इतिहास को उजागर करें। आजाद हिंद फौज के सेनानियों का इतिहास न केवल हरियाणा बल्कि पूरे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक अभिन्न हिस्सा है। इसे संरक्षित और प्रकाशित करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।

निष्कर्ष:

48 वर्षों की अनदेखी के बाद भी आजाद हिंद फौज के सेनानियों के परिजन उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनके पूर्वजों के बलिदान को सही स्थान मिलेगा। अब यह देखना होगा कि क्या वर्तमान सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाकर इन नायकों को उनका हक दिला पाती है।

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