चण्डीगढ़, सतीश भारद्वाज: देश में 1 जुलाई से लागू हुए तीन कानूनो में जहां नई धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, वहीं अन्य बदलाव भी होने शुरू हो रहें हैं। वही हरियाणा में अब किसी भी आरोपी को कोर्ट में पेशी के वक्त पुलिस हथकड़ी लगा कर पेश कर सकेगी। इसके लिए नए लागू कानून में पुलिस को यह पावर दी गई है। जिसमें 12 तरह के अपराधियों को पुलिस अपने स्तर पर ही हथकड़ी पहना सकती है। पुलिस पहले कोर्ट से परमिशन लेती थी।

वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बारे में प्रदेश के डीजीपी शत्रुजीत कपूर की तरफ से सभी जिलों चिट्‌ठी भेजी गई है। जिसपर सभी जिला मुख्यालयों पर फील्ड में तैनात पुलिस कर्मियों को इस बारे में ट्रेनिंग देने के लिए कहा गया है। बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने CM नायब सैनी की अगुआई वाली हरियाणा सरकार को मार्च महीने तक 3 नए कानून लागू करने का टाइम दिया है।

डीजीपी द्वारा भेजी गई चिट्ठी में बताया गया है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 43(3) में अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए पुलिस अधिकारियों की तरफ से हथकड़ी का इस्तेमाल करने का प्रावधान है। इसके लिए DGP की तरफ से दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।

किस अपराध में आरोपीयों को लगाई जा सकती है हथकड़ी…

डीजीपी द्वारा जारी पत्र के अनुसार बताया गया है कि पुलिस अधिकारी किसी को गिरफ्तार करते वक्त या कोर्ट में पेश करते समय हथकड़ी लगा सकता है, अगर वह कोई अपराध बार–बार कर चुका है या आदतन अपराधी है या फिर हिरासत से बार बार फरार हो चुका है।

वहीं इसके अलावा,अपराध की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए 11 अपराधों के आरोपी को हथकड़ी लगाई जा सकती है। इसमें ऑर्गेनाइज्ड क्राइम यानी संगठित अपराध से लेकर आतंकवाद, नशा, हथियार और गोला–बारूद, रेप, मर्डर, एसिड अटैक, बच्चों के विरोध यौन अपराध से लेकर राज्य के खिलाफ अपराध तक शामिल हैं।

जानें, पहले हथकड़ी को लेकर क्या थे नियम

सुप्रीम कोर्ट ने 1980 में प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली सरकार मामले में फैसला सुनाते हुए हथकड़ी के इस्तेमाल को अनुच्छेद 21 के तहत असंवैधानिक करार दिया था। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि यदि किसी कैदी को हथकड़ी लगाने की जरूरत महसूस होती है तो उसका कारण दर्ज करना होगा और मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी।

1860 में IPC की जगह BNS ने ली, तब बदला कानून

बता दें कि 1860 में बनी IPC की जगह भारतीय न्याय संहिता, CrPC की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य संहिता ने ले ली है। इन तीनों नए कानूनों को लाने का खास मकसद अंग्रेजों के जमाने में भारतीयों को सजा देने के लिए बनाए पुराने कानूनों को हटा आज की जरूरत के मुताबिक कानून लागू करना रहा है।
इन तीनों कानूनों के लागू होने के बाद क्रिमिनल लॉ में काफी कुछ बदल गया है। जैसे अब देशभर में कही भी जीरो एफआएआर दर्ज होने लगी है। वहीं कुछ मामलों में पुलिस को आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अपने सीनियर से मंजूरी नहीं लेनी पड़ेगी।

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