-प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में निर्णायक जीत हासिल की: पंकज डावर

-पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी की जयंती पर कांग्रेस भवन में उन्हें दी गई श्रद्धांजलि

गुरुग्राम। मंगलवार को कमान सराय स्थित कांग्रेस भवन में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी जी की जयंती पर कांग्रेस नेताओं, कार्यकर्ताओं ने वरिष्ठ नेता पंकज डावर के नेतृत्व में उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस अवसर पर कांग्रेस नेता सूबे सिंह यादव,हरकेश प्रधान,सुभाष सपरा,पवन चौधरी,प्रदीप दहिया,महेश वशिष्ठ, रविराज उजीनवाल,मनोज आहूजा,सुनीता तोमर, खेमचंद किरार, ओमप्रकाश खरेरा, राम दास,अमित बोहत,दीपक सिंह समेत काफी कार्यकर्ताओं ने पूर्व प्रधानमंत्री को याद किया।

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंकज डावर ने कहा कि इंदिरा गांधी जी ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आईं और स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं। 1950 के दशक में वे अपने पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैर सरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके साथ सेवा में रहीं। पिता की मृत्यु के बाद वर्ष 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।

पंकज डावर ने कहा कि लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। इंदिरा गांधी जी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों को परास्त किया। उनकी देश में आर्थिक नीतियों और उत्पादकता को बढ़ावा देने से देश आर्थिक रूप से मजबूत हुआ। वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध में भी एक निर्णायक जीत हासिल की। पंडित जवाहर लाल नेहरू एवं कमला नेहरू की इकलौती संतान इंदिरा गांधी जी के जन्म के समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में पंडित जवाहरलाल नेहरू का प्रवेश स्वतन्त्रता आन्दोलन में हुआ।

पंकज डावर के मुताबिक सन् 1936 में उनकी मां कमला नेहरू का बीमारी के चलते निधन हो गया था। इंदिरा जी तब मात्र 18 वर्ष की थीं। अपने बचपन में उन पर दुखों का पहाड़ टूटा था। वर्ष 1930 दशक के अन्तिम चरण में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय इंग्लैंड के सोमरविल्ले कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान वे लन्दन में स्वतंत्रता के प्रति कट्टर समर्थक भारतीय लीग की सदस्य बनीं। देश की आजादी के लिए उन्होंने पूरी निष्ठा से काम किया। 1934-35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इन्दिरा जी ने शान्ति निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाए गए विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही उन्हें प्रियदर्शिनी नाम दिया था।

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