भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हरियाणा में चुनाव संपन्न हुए, भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला और कांग्रेस को अप्रत्याशित हार लेकिन अब दोनों ही पार्टियों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा।

पहले भाजपा की बात करें तो भाजपा को 48 सीटें मिली, तीन निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दे दिया लेकिन पार्टी डरी हुई है। इसका प्रमाण देखने को मिलता है कि मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह से पहले सूत्रों से समाचार मिला कि समारोह 12 तारीख को दशहरे पर हो रहा है। फिर 15 तारीख के समाचार आए और अब 17 तारीख के आए हैं। भाजपा के चाणक्य अमित शाह मुख्यमंत्री का नाम पहले घोषित कर चुके थे लेकिन फिर भाजपा में से लगातार अनिल विज, राव इंद्रजीत सिंह आदि से मुख्यमंत्री पद की मांग उठी। इसके बारे में अनेक प्रकार की चर्चाएं जनता में व्याप्त हैं। सच्चाई क्या है, यह तो भाजपा के चाणक्य ही जानें, पत्रकार तो चर्चाओं और अनुमान के सहारे ही लिखता है।

आज की बात करें तो आज प्रात: भाजपा के अनेक वरिष्ठ नेताओं की फिर बैठक हुई 17 तारीख को शपथ ग्रहण समारोह के लिए लेकिन अब तक जो भाजपा छोटी-छोटी घटनाओं के प्रेस नोट तुरंत जारी करती रहती है, उसकी तरफ से इस बैठक के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। यह अपने आपमें संदेह पैदा करती है कि कहीं कुछ गड़बड़ है।

16 तारीख को भाजपा के विधायक दल की बैठक है, जिसमें विधायक दल के नेता का चुना जाना है। विधायक दल के नेता का चुनाव मतलब मुख्यमंत्री का चुनना। यह अपने आपमें हास्यास्पद है। जब भाजपा के चाणक्य अमित शाह जनसभाओं में घोषित कर चुके है कि हमारे आगामी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी होंगे फिर इसमें गृहमंत्री अमित शाह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित होना अपने आपमें प्रश्न चिन्ह खड़े करता है। मेरी याद में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि विधायक दल का नेता चुने जाने के कार्यक्रम इतने वरिष्ठ पर्यवेक्षक उपस्थित हों।

अब जनता में चर्चाएं हैं कि ये पर्यवेक्षक इसलिए नहीं बुलाए गए कि विधायक दल का नेता तय करना है अपितु इसलिए बुलाए गए हैं कि जो पार्टी के वरिष्ठ नेता असंतुष्ट नजर आते हैं और अपनी-अपनी मांगों को लेकर कभी सार्वजनिक तो कभी दबे-छिपे शब्दों में जाहिर करते रहते हैं, उन्हें शांत करने के लिए आ रहे हैं। वैसे भी कहा जाता है कि राजनीति में जो दिखता है, वह होता नहीं और जो होता है, वह दिखता नहीं।

इधर इवीएम फिर चर्चा का विषय बनी हुई है और इस बार कांग्रेस पार्टी ही नहीं, अपितु भाजपा और जनता भी चर्चा कर रह है कि इवीएम का कुछ खेला हुआ तो जरूर है। सच्चाई क्या है, यह हम नहीं कहते लेकिन यह जरूर है कि अनेक सीटों पर दोबारा गिनती के लिए चुनाव आयोग को शिकायत की हुई है और यदि चुनाव आयोग इनकी दोबारा गिनती करता है और इनमें आधी में भी निर्णय में परिवर्तन आ गया तो यह बहुमत की सरकार धराशाई हो जाएगी।

कांग्रेस हाईकमान ने 18 अक्टूबर को चंडीगढ़ में कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग बुलाई

अब बात करें कांग्रेस की तो कांग्रेस में इस हार के पश्चात से बड़ी अजीब सी स्थिति हो गई है। 2004 से जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस को अपने अनुसार चला रहे थे, अब उन्हीं के ऊपर कांग्रेस हाईकमान नाराज नजर आ रहा है। दीपक बाबरिया हर बार अपना इस्तीफा देने की बात कर रहे हैं, कारण वह अपना स्वास्थ बता रहे हैं। इसी प्रकार प्रदेश अध्यक्ष उदयभान के ऊपर भी तलवारें खिंची हुई हैं। भूपेंद्र हुड्डा की ओर से कोई भसी ब्यान आने बंद हो गए हैं।

ऐसे में सूत्रों से सूचना प्राप्त हुई है कि 17 अक्टूबर को शपथ ग्रहण समारोह के अगले दिन ही कांग्रेस हाईकमान ने भी एक बैठक बुलाई है। यह बैठक चंडीगढ़ में बुलाने का आदेश हुआ है। सूत्रों से जानकारी के अनुसार इस बैठक में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, अजय माकन और प्रताप सिंह बाजवा ऑब्जर्वर के तौर पर उपस्थित रहेंगे।

चर्चाएं यह भी चल रही हैं कि उदयभान तो प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ेंगे ही साथ ही भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा भी विपक्ष के नेता का पद छोड़ेंगे। नहीं छोड़ेंगे तो इन पर छोडऩे का दबाव बनाया जाएगा। चर्चा यह है कि चौधरी भजन लाल के ज्येष्ठ पुत्र चंद्रमोहन को विपक्ष का नेता बनाया जाएगा। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार सांसद कुमारी शैलजा संभालेंगी। अब होता क्या है, वह समय के गर्भ में है।

बातें तो बहुत थीं लेकिन कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं बाता। केवल सवाल ही सवाल नजर आते हैं कि भाजपा द्वारा तो 17 तारीख को शपथ ग्रहण समारोह को शक्ति प्रदर्शन जो मनाया जा रहा है, उसमें भाजपा कितना सफल होती है और कांग्रेस के किस प्रकार भूपेंद्र सिंह हुड्डा का वर्चस्व समाप्त होने के बाद उन्हें कैसे किनारे किया जाएगा? खैर आगे फिर कभी।

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