राव बीरेंद्र सिंह की पसंदीदा सीट पर राव इंद्रजीत की साख दांव पर,अटेली में आरती राव की राह आसान नहीं

बाहरी प्रत्याशी से नाराज हुए भाजपा नेता-वर्कर

राव के सामने अपना वर्चस्व बचाए रखने की चुनौती

राव बीरेंद्र सिंह के समय से ही अहीरवाल की राजनीति दो धारा में एक धारा-एंटी राव और दूसरी प्रो राव

अशोक कुमार कौशिक 

दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल में वर्चस्व की जंग एक बार फिर अपने चरम पर पहुंचती दिखाई दे रही है। केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने बीजेपी की लिस्ट में आधा दर्जन से अधिक को टिकट दिलाकर अपना लोहा मनवाया है। अटेली के मौजूदा विधायक सीताराम यादव की टिकट पर कैंची चलाने के साथ ही अपनी बेटी आरती राव को चुनावी रण में उतारकर राव इंद्रजीत ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। जबकि जजपा ने पूर्व मंत्री और भाजपा नेता राव नरबीर सिंह की भतीजी आयुषी यादव को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने अभी अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। इनेलो बसपा गठबंधन से ठाकुर अतरलाल मैदान में हैं।

हालांकि अटेली में आरती राव को बाहरी बताने का दौर शुरू हो गया है। वहीं टिकट कटने से पार्टी से इस्तीफे के साथ ही निर्दलीय भी ताल ठोकने का ऐलान शुरू हो गया है। रामपुरा हाउस से जुड़े लोगों की कार्यप्रणाली से स्थानीय लोग नाराज बताए जाते हैं और लोगों में चर्चा है कि इसका खामियाजा कहीं आरती राव को न भुगतना पड़ जाए। हालांकि आरती राव करीब डेढ़ माह पहले ही सार्वजनिक मंच पर अपने अटेली से चुनाव लड़ने का ऐलान कर बीजेपी नेतृत्व को चुनौती दे चुकीं थीं।

रामपुरा हाउस से जुड़े लोग अटेली में लंबे समय से सक्रिय हैं। लेकिन उनकी कार्यप्रणाली से स्थानीय लोग खासे नाराज हैं। इसी के चलते जैसे ही आरती राव ने अटेली से चुनाव लड़ने का शंखनाद किया, वैसे ही उनका विरोध शुरू हो गया था। चुनाव घोषणा से पूर्व व बाद में भी लोगों ने पंचायत कर निर्णय लिया था कि वह बाहरी प्रत्याशी बर्दाश्त नहीं करेंगे। अहीर राजा राव बीरेंद्र सिंह के समय से ही अहीरवाल की राजनीति दो धारा में बंटकर रामपुरा हाउस के इर्द-गिर्द ही रही। एक धारा-एंटी राव और दूसरी प्रो राव। दोनों धाराएं जीवंत रही, लेकिन चौधर के नारे के कारण राव परिवार का तिलिस्म बरकरार था और बरकरार है।

नाराज दावेदारों की लंबी सूची

अटेली से मौजूदा विधायक सीताराम यादव, पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव, जसवंत सिंह बब्लू, नरेश यादव, सुनील राव, कुलदीप यादव सहित आधा दर्जन से अधिक नेता आरती राव को टिकट देने से खासे नाराज हैं। कुछ पार्टी छोड़ रहे हैं, तो कुछ अब घर पर बैठने का मन बना रहे हैं। हालांकि सीताराम यादव खुद को बीजेपी का सिपाही बताते हुए साथ देने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि उनके समर्थक व आम लोग कितने सक्रिय रहते हैं। 

राजनीति में प्रवेश

आरती एक ऐसे परिवार से आती हैं जिसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि है। राव इंद्रजीत राव तुला राम के वंशज हैं, जो अहीरवाल क्षेत्र के पूर्व राजा थे। इस क्षेत्र में हरियाणा के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, गुड़गांव भिवानी, दादरी, नूंह, झज्जर और राजस्थान अलवर के कुछ हिस्से शामिल हैं । आरती के दादा बीरेंद्र सिंह हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री रहे और 1967 में सत्ता में थे।

आरती को जानने वालों के अनुसार, उसे बचपन से ही स्कीट शूटिंग में रुचि थी। उसने 1999 में प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया और 2001 और 2012 में विश्व शूटिंग कप के फाइनल में भाग लिया। उसके पास चार एशियाई चैम्पियनशिप पदक भी हैं। 45 वर्षीय आरती हरियाणा पैरा स्पोर्ट्स एसोसिएशन की वर्तमान अध्यक्ष हैं।

आरती का राजनीति में आना इसलिए हुआ क्योंकि उनके दादा की खराब सेहत के कारण अनुपस्थिति ने एक खालीपन पैदा कर दिया था। “मेरे अंदर आत्मविश्वास की कमी थी और बिना तैयारी के बोलना चुनौतीपूर्ण था। उन्होंने कहा 2014 में मैं बेहतर हो गई।” 

2017 में उन्होंने पेशेवर शूटिंग छोड़ दी और दक्षिण हरियाणा की राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश की। अतीत की अपनी सभी रैलियों में वे दक्षिण हरियाणा की सांस्कृतिक एकता के बारे में बात करती रही हैं। “अगर हम दक्षिण हरियाणा के लोगों को एकजुट कर सकें, तो यह क्षेत्र एक ताकत बन जाएगा। यहां तक ​​कि इस लोकसभा में भी, हरियाणा में भाजपा को मिली पांच सीटों में से तीन सीटें इसी क्षेत्र से हैं। लेकिन हमें अपना वाजिब हिस्सा नहीं मिला।” 

प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दो प्रमुख नेताओं के साथ मरोड़ शब्द जुड़ा हुआ है। चौ. बंसीलाल जहां अनुशासन तोड़ने वालों की मरोड़ निकालने के लिए प्रसिद्ध रहे वहीं राव बिरेंद्र सिंह के साथ चौधर की मरोड़ और गर्दन टेढ़ी का जुमला जुड़ा था। अहीरवाल की चौधर के नाम पर राव ने बड़ा रुतबा हासिल किया था। उन्हें गर्दन सीधी करने की भी कई बार चुनौती मिली, लेकिन झटके खाकर भी राव की गर्दन और चौधर की मरोड़ कायम रही। राव बेजोड़ थे, क्योंकि चौधर के नाम पर उनके साथ अहीरवाल का बड़ा वर्ग दलीय राजनीति से ऊपर उठकर खड़ा था।

सीएम की पद की रेस से बाहर

विरोधियों को पस्त करने के लिए राव ने कभी दक्षिण हरियाणा तो कभी अहीरवाल की चौधर के लिए संघर्ष का नारा दिया। राव के बड़े बेटे केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह व उनकी बेटी आरती का स्टाइल तो पूरी तरह अपने पिता व दादा पर है। हालांकि इस बार राव इंद्रजीत सिंह ने भाजपा के अनुशासन के डंडे के आगे खुद को मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर रखा है, मगर कुछ महीने पूर्व तक इंद्रजीत की भाषा भी अहीरवाल में चौधर लाने यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के नारे पर केंद्रित थी। 

यह था ताकत का नमूना

वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में राव अपनी विशाल हरियाणा पार्टी से महेंद्रगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। उस दौर में प्रदेश की 9 में से 7 सीटें कांग्रेस ने व एक भारतीय जनसंघ ने जीती थी। कांग्रेस की लहर के बावजूद राव अपनी ही पार्टी से जीत दर्ज करने में कामयाब हुए थे। हालांकि उनकी जीत का अंतर महज 1899 वोट रहा था।

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