हार के खौफ से निकाय चुनाव से भागी भाजपा सरकार:  कुमारी सैलजा

08 नगर निगम, चार नगर परिषद व 21 नगर पालिकाओं के चुनाव लंबित

कई जगह लोग चार साल से चुनाव के इंतजार में, सरकार बना रही बहाने

चंडीगढ़, 29 अगस्त। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सिरसा से लोकसभा सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा सरकार की राजनीतिक जमीन खिसक चुकी है, इस बात का सरकार में बैठे लोगों को पहले ही आभास हो गया था। इसलिए ही हार के डर से शहरी निकायों के चुनाव कराने से भाजपा सरकार बचती रही है। 8 नगर निगम, चार नगर परिषद व 21 नगर पालिका के निवासी चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनते ही शहरी निकायों के लंबित चुनाव कराए जाएंगे।

मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि प्रदेश में 11 नगर निगमों में से सिर्फ 3 पंचकूला, अंबाला शहर व सोनीपत को ही इस समय जनता के चुने नुमाइंदे चला रहे हैं। अस्तित्व में आने के बाद से मानेसर नगर निगम के चुनाव आज तक नहीं करवाए गए हैं। गुड़गांव व फरीदाबाद नगर निगम का कार्यकाल खत्म हुए अरसा बीत चुका है। जबकि, हिसार, पानीपत, रोहतक, यमुनानगर, करनाल नगर निगम का कार्यकाल दिसंबर महीने में खत्म हो चुका है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नगर परिषद अंबाला, थानेसर, सिरसा, नगर पालिका कालांवाली, सिवानी, आदमपुर, बराड़ा, रादौर, बवानी खेड़ा, लोहारू, जाखल मंडी, फर्रूखनगर, नारनौंद, बेरी, जुलाना, पूंडरी, कलायत, नीलोखेड़ी, अटेली मंडी, कनीना, तावड़ू, हथीन, कलानौर, खरखौदा, आदि के चुनाव सालों से पेंडिंग पड़े हुए हैं। इनमें से कितनी ही जगह तो वार्डबंदी का काम अभी भी अधूरा पड़ा हुआ है।

कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा सरकार जनप्रतिधियों की बजाए अफसरों के मार्फत ही शहरों व गांवों की छोटी सरकार चलाने का कुचक्र चलाए हुए है। इससे पहले पंचायतों के चुनाव 21 माह की देरी से कराए गए। चुनाव के बाद भी ई-टेंडरिंग के बहाने ग्राम पंचायतों के अधिकार छीनने का षड्यंत्र रचा गया। जबकि, जनता के चुने हुए नुमाइंदों का हाउस न होने की वजह से नगर निगमों, नगर परिषदों, नगर पालिका एरिया में विकास कार्य प्रभावित होते हैं। निकायों का बजट तक फाइनल नहीं हो पाता। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अधिकारी अपने हिसाब से शहर में काम कराते हैं, जबकि पार्षद व्यक्तिगत दिलचस्पी लेकर अपने-अपने इलाके की जरूरत के मुताबिक कार्य करवाते हैं। सही मायनों में पार्षदों के बिना किसी भी शहर के विकास का सही खाका खींचा ही नहीं जा सकता। पार्षदों तक आम लोगों की पहुंच भी आसान होती है, इसलिए वे इनकी डिमांड भी इन बैठक में बखूबी रखते हैं। हाउस न होने पर अधिकारियों के हाथ में पावर होती है और वे बिना किसी जनभागीदारी के कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने सत्ता के विकेंद्रीकरण का सपना देखा था, राजीव गांधी पंचायती राज और नगर पालिका विधेयक के सूत्रधार थे। उन्होंने लोक अदालतों के माध्यम से त्वरित न्याय दिलाने के प्रयासों को भी प्रमुखता से बढ़ावा दिया, उन्होंने ही पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देकर सत्ता के विकेंद्रीकरण का सपना देखा था। राजीव जी यह मानते थे कि सरकार में सहभागिता से अथाह ऊर्जा उत्पन्न होगी और यह समाज के वंचित एवं कमजोर वर्गों की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव करेगी।

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