यूपी की चार पार्टियां मैदान में, मायावती चंद्रशेखर, अखिलेश जयंत हरियाणा में बचा पाएंगे ये अपनी शाख हरियाणा में दलित मतदाता रहेगा किसके साथ? मायावती ने घोषित की चार सीटे, अटेली से अतरलाल पर जताया विश्वास अशोक कुमार कौशिक हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम जोर पकड़ता जा रहा है। हरियाणा के चुनावी रण में यूपी की 3 पार्टियां ताल ठोकने के लिए तैयार है, वहीं जयंत चौधरी मैदान से बाहर है। इनमें चंद्रशेखर की नई नवेली पार्टी आजाद समाज पार्टी भी है, लेकिन जाटलैंड में जयंत चौधरी का चुनाव नहीं लड़ना सुर्खियों में है। एनडीए में आने के बाद से ही जयंत यूपी छोड़ अन्य राज्यों से दूरी बनाने में लगे हैं। यूपी की ये पार्टियां हरियाणा चुनाव में चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ-साथ मायावती की बहुजन समाज पार्टी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी भी हरियाणा में चुनाव लड़ने जा रही है। बीएसपी ने जहां इंडियन नेशनल लोक दल के साथ गठबंधन किया है। वहीं समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना चाहती है। हालांकि, सपा को कांग्रेस ने अभी साथ लड़ने की हरी झंडी नहीं दी है। सपा गुरुग्राम और फरीदाबाद के अहिर बेल्ट में ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार उतारना चाहती है। वहीं बीएसपी की नजर दलितों बाहुल्य सीटों पर हैं। पहले जयंत की पार्टी ने लोकसभा में राजस्थान से उम्मीदवार नहीं उतारा और अब विधानसभा में हरियाणा से लड़ने को तैयार नहीं है। वो भी तब, जब जयंत ने रालोद को क्षेत्रीय पार्टी बनाने का लक्ष्य रख रखा है। 2023 में रालोद से क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा छीन गया था। 2023 के बाद हरियाणा में आरएलडी निष्क्रिय 2023 तक हरियाणा में राष्ट्रीय लोकदल जमीन पर थोड़ी-बहुत एक्टिव थी, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक बलवीर ग्रेवाल के निधन के बाद पार्टी यहां पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई। हरियाणा में इसके बाद न तो आरएलडी ने नई टीम नियुक्त की और न ही कोई प्रयास किए। लोकसभा चुनाव दौरान जयंत चौधरी हरियाणा में कुछ जगहों पर जरूर गए, लेकिन वहां पर सिर्फ बीजेपी के उम्मीदवारों के प्रचार करने के लिए. जयंत के केंद्र में मंत्री बनने के बाद आरएलडी यूपी, हरियाणा और राजस्थान में संगठन विस्तार की तैयारी में थी, लेकिन हरियाणा में जल्द ही चुनाव की घोषणा ने पार्टी की अरमानों पर पानी फेर दिया। जयंत हाल ही में जननायक जनता पार्टी के अजय सिंह चौटाला से मिले थे। इसकी तस्वीर भी वायरल हुई थी और कहा जा रहा था कि वे चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन जयंत ने अब तक इसकी कोई घोषणा नहीं की है। पिछले 10 सालों से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी जीत की हैट्रिक लगाने के मूड में है तो कांग्रेस अपना एक दशक लंबा वनवास खत्म करना चाह रही है। तो वहीं राज्यस्तरीय दल अपने प्रदर्शन के स्तर को काफी हद तक सुधारना चाहते हैं। इसके लिए ये दल जाट और दलित पॉलिटिक्स के जरिए अपनी चुनावी वैतरणी को पार करना चाहते हैं, खासकर दलित वोटर्स के जरिए। इस बार हरियाणा में दलित मतदाता किसकी और अपना रुझान करेंगे इस पर राजनीतिक मंथन हो रहा है। कांग्रेस, जजपा व इनेलो दलित वोटरों को अपनी ओर खींचने का भरसक प्रयास कर रही है। दिल्ली से सटे इस संपन्न राज्य में एक अक्टूबर को वोटिंग करायी जानी है। जून में आए लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश में दलित-जाट की राजनीति फिर से तेज हो गई है। लोकसभा चुनावों 2019 में सभी 10 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार महज 5 सीटें ही जीत सकी, शेष 5 सीटें कांग्रेस के खाते में चली गईं। राज्य में अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व 2 संसदीय सीटें (अंबाला और सिरसा) भी कांग्रेस के कब्जे में चली गईं। इस तरह से एससी के लिए रिजर्व 17 विधानसभा क्षेत्रों में से 13 सीटें कांग्रेस के खाते में आ गईं। लोकसभा में कांग्रेस को जमकर मिला वोट लोकसभा के चुनाव परिणाम बताते हैं कि इस बार जाटों और अनुसूचित जाति के वोटर्स ने कांग्रेस को जमकर वोट दिया। ऐसे में विधानसभा चुनाव में इनकी अहमियत बढ़ गई है। इसी को देखते हुए कभी राज्य में बेहद मजबूत माने जाने वाले चौटाला परिवार से निकले 2 राजनीतिक दलों में खासा उत्साह दिख रहा है। चुनाव में अच्छे परिणाम के लिए इन्हें दलित चेहरे की तलाश है जो उन्हें मायावती और चंद्रशेखर आजाद के रूप में दिखती है। यही वजह है कि जाट परिवार की अगुआई वाली आईएनएलडी और जननायक जनता पार्टी बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर रहे हैं। दलितों की पार्टी कही जाने वाली मायावती की बसपा ने आईएनएलडी मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। तो वहीं उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर सुर्खियों में आए चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि क्या ये गठबंधन कांग्रेस का खेल बिगाड़ पाएगा, जो 10 साल बाद सत्ता में वापसी की संभावना तलाश रही है। इनेलो के साथ बीएसपी मैदान में उतरेगी बीजेपी और कांग्रेस के इतर इंडियन नेशनल लोकदल और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। दोनों दलों ने पिछले महीने जुलाई में अभय चौटाला को गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बनाया है। दोनों के बीच तीसरी बार गठबंधन हुआ है। प्रदेश की 90 सदस्यीय विधानसभा में आईएनएलडी 53 तो बहुजन समाज पार्टी 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। मायावती और चौटाला परिवार के बीच यह पहला गठबंधन नहीं है। साल 1996 में दोनों ने पहली बार लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया था। आईएनएलडी ने 7 तो बसपा ने 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव में गठबंधन को खासा फायदा भी हुआ था और प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों में से 5 सीटों पर कब्जा जमा लिया। चुनाव में मायावती की बसपा को एक तो आईएनएलडी के खाते में लोकसभा की 4 सीटें आई थीं। गठबंधन के 22 साल बाद दोनों दलों ने फिर गठबंधन करने का मूड बनाया। क्या कांग्रेस के वोट इनेलो बीएसपी को मिलेंगे अभय चौटाला की पार्टी आईएनएलडी ने अप्रैल 2018 में अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों के लिए मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन किया, लेकिन इस बीच चौटाला परिवार में अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गया। अक्टूबर 2018 में पार्टी टूट गई। दुष्यंत चौटाला पार्टी से अलग हो गए और फिर दिसंबर में नई पार्टी जननायक जनता पार्टी का ऐलान कर दिया। आईएनएलडी में विभाजन के बाद और 2019 के जींद उपचुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए बसपा ने गठबंधन को खत्म कर दिया। हरियाणा चुनाव में दलित और जाट समुदाय के वोटर्स अहम माने जाते हैं। इनके वोट चुनाव परिणाम बदलने में सक्षम होते हैं। हालिया लोकसभा में चुनाव में इन वोटर्स ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किया। अब आईएनएलडी-बसपा गठबंधन की कोशिश है कि उनके वोट अपने पक्ष में ट्रांसफर किए जाएं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को महज 1.28 फीसदी वोट मिले तो आईएनएलडी के खाते में 1.74 फीसदी वोट गए। इस तरह से दोनों के वोट शेयर मिला दिए जाएं तो यह 3.02 फीसदी बैठता है। कैसा रहा इनेलो बसपा का प्रदर्शन इसी तरह 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो बसपा को 4.21 फीसदी वोट मिले थे तो आईएनएलडी के खाते में 2.44 फीसदी वोट आए थे। जबकि साल 2014 के चुनाव में बसपा का वोट शेयर 4.4 फीसदी हुआ करता था तो आईएनएलडी को 24.1 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि इस दौरान पार्टी में विभाजन नहीं हुआ था। 2018 में पार्टी में टूट पड़ने के बाद आईएनएलडी लगातार कमजोर होती चली गई। वहीं चौटाला परिवार में खटास आने बाद दिसंबर 2018 में दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी के नाम से नई पार्टी का ऐलान किया। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में जेजेपी को करीब 5 फीसदी वोट मिले, लेकिन कोई सीट हासिल नहीं हुई। दुष्यंत की पार्टी चंद्रशेखर के भरोसे फिर अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और 87 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 10 सीटों पर कब्जा जमाकर सभी को चौंका दिया। पार्टी को कुल पड़े वोटों में से 14.80% वोट मिले। बीजेपी मामूली अंतर से सरकार बनाने से रह गई तो उसे दुष्यंत चौटाला को साथ लेना पड़ा। दुष्यंत मनोहर लाल खट्टर की सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाए गए। अब दुष्यंत और बीजेपी की राहें अलग हो चुकी हैं। दुष्यंत चौटाला राज्य में नया राजनीतिक समीकरण बनाने की कवायद में जुटे हैं। ऐसे में उन्हें युवा दलित चेहरा चंद्रशेखर आजाद के साथ आने से फायदा मिलता दिख रहा है। जाट और दलित के वोटों के अलावा युवा मतदाताओं पर फोकस दुष्यंत चौटाला और चंद्रशेखर आजाद दोनों ने जाट और दलित जाति के वोटों के अलावा युवा वोटरों पर भी फोकस किया है। 26 साल की उम्र में लोकसभा चुनाव जीतने और 31 साल की उम्र में हरियाणा के उपमुख्यमंत्री बने दुष्यंत चौटाला ने गठबंधन के वक्त भी युवाओं को संबोधित किया। वहीं, चंद्रशेखर आजाद ने दलित वर्ग के युवाओं को जोड़ने के लिए भीम आर्मी भी बनाया हुआ है। यूपी की नगीना लोकसभा सीट से डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से उनकी जीत के पीछे युवाओं का सपोर्ट बताया जाता है। दुष्यंत चौटाला के सामने चाचा अभय चौटाला की सबसे बड़ी चुनौती हरियाणा की राजनीति में किसान मतदाताओं का भी अच्छा-खासा दखल माना जाता है। इस मामले में नए गठबंधन को मशक्कत करनी पड़ सकती है। क्योंकि किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा में दुष्यंत चौटाला को बड़े पैमाने पर किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा था। वहीं, उनके चाचा और इनेलो प्रमुख अभय चौटाला ने किसानों के समर्थन में विधानसभा से इस्तीफा देकर अपने इमेज को मजबूत कर लिया था। इसके अलावा अभय चौटाला ने बीते महीने दलितों की बड़ी नेता मायावती की बसपा के साथ गठबंधन किया था। चौटाला परिवार और मायावती के बीच पहली बार साल 1996 में लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन हुआ था। चंद्रशेखर के सामने मायावती और बसपा से पार पाने का बड़ा चैलेंज हरियाणा में सभी 36 बिरादरी की राजनीति की बात करने वाले दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी अपने चाचा अभय चौटाला की पार्टी इनेलो से ही निकली इनेलो प्रमुख अजय चौटाला जाट समुदाय से आते हैं। इसलिए जाट मतदाताओं का भरोसा किस पार्टी को मिलेगा ये फिलहाल तय नहीं है। वहीं, हरियाणा में अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व 17 विधानसभा सीटों पर मायावती की बसपा के सामने चंद्रशेखर दलित वोटबैंक पर कितना असर दिखा पाएंगे? क्योंकि हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में बसपा को 4.21 फीसदी वोट मिले थे। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से भी करना होगा दो-दो हाथ इसके अलावा चौटाला परिवार के दोनों सियासी दलों और गठबंधनों के सामने राष्ट्रीय पार्टी भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे प्रतिद्वंदी से मुकाबला की चुनौती है। भाजपा जहां दस साल से हरियाणा में सत्ता में है। वहीं, उससे पहले कांग्रेस की सत्ता में रहने का लंबा इतिहास है। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बताते हैं कि जाटों और अनुसूचित जाति के वोटर्स ने कांग्रेस को जमकर वोट दिया। इस बीच आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल का गृह राज्य होने की वजह से हरियाणा में उनकी पैठ बनने के आसार भी हैं। भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल हरियाणा की सभा में बहू होने की भावुक अपील कर चुकी हैं। हाल में लोकसभा चुनाव में जाट-दलित का साथ कांग्रेस को मिला था और 5 सीटों पर कब्जा भी जमा लिया था। अब देखना होगा कि आम चुनाव में कांग्रेस के साथ खड़े दिखने वाला जाट-दलित समाज प्रदेश में चंद महीने बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में किसका साथ देता है। Post navigation विस चुनाव को देखकर वायदों और घोषणाओं को पूरा करने का दावा कर रही है भाजपा सरकार: कुमारी सैलजा जय शाह के आईसीसी अध्यक्ष चुने जाने पर वैद्य किशन वशिष्ठ ने लड्डू बांटे