·        कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री द्वारा लोकसभा में किसानों का उपहास निंदनीय – दीपेन्द्र हुड्डा

·        सरकार ने आज तक एक भी शहीद किसान परिवारों में रोजगार या नौकरी नहीं दी – दीपेन्द्र हुड्डा

·        किसान आंदोलन के दौरान 9 दिसंबर2021 को किसान संगठनों और सरकार के बीच जो समझौता हुआ उसे अब तक पूरा नहीं किया गया – दीपेन्द्र हुड्डा

चंडीगढ़, 30 जुलाई। सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आज लोकसभा के प्रश्नकाल में सरकार से सवाल किया कि किसान आंदोलन में जान कुर्बान करने वाले 750 किसानों के परिवार में से कितने परिवारों को रोजगार दिया गया? उन्होंने कहा कि MSP गारंटी और 3 कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से ज्यादा समय तक किसान आंदोलन चला और 750 किसानों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी। अधिकतर किसान हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के थे। जब किसान संगठनों और सरकार के बीच समझौता हुआ तो शहीद किसान परिवारों की मदद करने पर भी सहमति हुई थी। लेकिन आज तक सरकार ने एक भी शहीद किसान परिवारों में रोजगार या नौकरी नहीं दी। लोकसभा में सांसद दीपेन्द्र हुड्डा के सवाल पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उपहास उड़ाते हुए कहा कि ‘‘गये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास’’। कृषि मंत्री इतने पर ही नहीं रुके, वे सवाल का सीधा जवाब देने की बजाय गोलमोल जवाब देते हुए एमएसपी की लिस्ट पढ़ने लगे। इसके बाद पूरा विपक्ष एकजुट होकर कृषि मंत्री के रवैये का विरोध करने लगा और भारी शोरगुल के बीच प्रश्नकाल की कार्यवाही समाप्त कर दी गई।

दीपेन्द्र हुड्डा ने संसद में सरकार के रवैये पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बीजेपी सरकार ने देश के किसान के साथ एक बार नहीं बार-बार धोखा किया है। एक साल तक चले किसान आंदोलन के दौरान कुंडली बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और देश के हर कोने से किसानों ने एक साल तक संघर्ष किया और इस सरकार ने 750 किसानों की बलि ली। भाजपा सरकार ने किसानों पर लाठियाँ बरसाई, आँसू गैस के गोले दागे, कंटीले तारों से उनका रास्ता रोका गया, यातनाएं दी गई और देशद्रोही, आतंकवादी तक कह कर उनको अपमानित किया गया। आखिरकार 3 काले कृषि कानून रद्द करने के बाद 9 दिसंबर, 2021 को किसान संगठनों और सरकार के बीच आंदोलन में अपनी जान की कुर्बानी देने वाले 750 किसानों के परिवारों को रोजगार देने, MSP कमेटी गठित करने और किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने का जो समझौता हुआ उससे भी अब तक लागू नहीं किया गया है। उलटे सरकार द्वारा गठित MSP कमेटी में भी किसान संगठनों को कोई तवज्जो नहीं दी गई। इस कमेटी में कई नाम ऐसे डाल दिए जो किसानों के खिलाफ बयानबाजी करते थे और तीनों कृषि कानूनों की वकालत करते थे। कुल मिलाकर सरकार अपने समझौते से ही मुकर गयी। जिन मांगों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच सहमति बनी थी उनको पूरा करने में सरकार कोई रूचि नहीं दिखा रही है। सरकार द्वारा किए गये विश्वासघात से देश भर के किसानों में रोष है।

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