ओलम्पियन योगेश्वर दत्त के नेतृत्व में प्राकृतिक खेती के गुर सीखने गुरुकुल पहुंचे कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी

राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा- प्राकृतिक खेती से ही बचेंगे जल,जंगल, जमीन और जीव।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 11 जुलाई : गुजरात के राज्यपाल और देश- विदेश में प्राकृतिक खेती मुहिम के प्रबल प्रचारक आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती आज की जरूरत है क्योंकि प्राकृतिक खेती करके ही जल, जंगल, जमीन और जीव को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लगातार रासायनिक खेती करने से देश के कई प्रदेशों में जहां भूमिगत जलस्तर लगातार घटता जा रहा है वहीं जमीन भी बंजर हो रही है। राज्यपालश्री आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पहलवान पदम्श्री योगेश्वर दत्त के नेतृत्व में गुरुकुल मंे पधारे 70 महानुभावों के एक डेलीगेशन को सम्बोधित कर रहे है जिसमें 23 नामचीन खिलाडियों के अलावा विभिन्न ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि और किसान बंधु शामिल रहे। खिलाडियों में ओलम्पिक मेडलिस्ट, द्रोणाचार्य अवार्डी, ध्यानचंद अवार्डी, अर्जुन अवार्डी, भारत केसरी, हिन्द केसरी, एशियन और राष्ट्रमंडल खेलों के पदक विजेता भी शामिल रहे। गुरुकुल पहुंचने पर राज्यपाल के ओएसडी डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार जी व प्रधान राजकुमार गर्ग ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर विख्यात समाजसेवी डॉ. सम्पूर्ण सिंह, निदेशक बिग्रेडियर डॉ. प्रवीण कुमार, विख्यात कृषि वैज्ञानिक पदम्श्री डॉ. हरिओम, प्राचार्य सूबे प्रताप, रामनिवास आर्य भी मौजूद रहे।

आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती में एक देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से 30 एकड़ भूमि पर खेती की जाती है और किसान को किसी भी प्रकार का कोई पेस्टीसाइड, यूरिया, डीएपी आदि खेत में डालने की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने स्पष्ट किया कि कई लोगों को भ्रम है कि प्राकृतिक खेती और जैविक खेती एक ही है मगर ये दोनों एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत है। जैविक खेती तो रासायनिक खेती से भी नुकसानदायक है। गुरुकुल के फार्म का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यहां पर पिछले 10 वर्षों से विशुद्ध प्राकृतिक खेती की जा रही है, एक बूंद भी यूरिया या किसी प्रकार का पेस्टीसाइड खेतों में नहीं डाला गया। देशी गाय के गोबर से बने जीवामृत और घनजीवामृत के प्रयोग से ही फसलों का उत्पादन रासायनिक और जैविक खेती करने वाले किसानों की तुलना में डेढ़ गुणा से भी अधिक है। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में उनके नेतृत्व में 3 लाख से अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया, इसी प्रकार गुजरात में 10 लाख किसान प्राकृतिक खेती कर बिना खाद, केमिकल के अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। आचार्यश्री ने कहा कि यदि हमें कैंसर, हार्ट अटैक जैसी बीमारियों से छुटकारा पाना है और आने वाली पीढ़ी को विरासत के रूप में पानी और शुद्ध पर्यावरण देना है तो सभी को प्राकृतिक खेती को अपनाना ही होगा, इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।

इस दौरान आचार्य ने सभी अतिथियों को गुरुकुल की अत्याधुनिक गोशाला, एनडीए विंग, विद्यालय भवन सहित विभिन्न प्रकल्पों का भ्रमण कराया। उन्होंने जीवामृत एवं घनजीवामृत निर्माण केन्द्र पर अतिथियों को प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले विभिन्न घटकों की विस्तृत जानकारी दी। तत्पश्चात अतिथियों का काफिला गुरुकुल के फार्म पर पहुंचा। यहां आचार्यश्री ने अतिथियांे को उस भूमि के बारे में बताया जिसे कृषि वैज्ञानिकों ने बंजर घोषित कर दिया था मगर जीवामृत व घनजीवामृत के प्रयोग से आज उसमें फसलें लहलहा रही हैं। आचार्य ने कहा कि बंजर भूमि को पुनः उपजाऊ बनाने का यह करिश्मा केवल प्राकृतिक खेती में है। फार्म पर एक साथ कई फसलें लेने का मॉडल अतिथियों को बहुत भाया, सेब, केला, अमरूद, लीची और आम के बाग को देख सभी आश्चर्यचकित हुए। अंत में गुरुकुल कुरुक्षेत्र की ओर से आचार्यश्री ने पधारे हुए सभी महानुभावों को स्मृति- चिह्न देकर सम्मानित किया।

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