आगामी विधानसभा में भाजपा राज्यसभा टिकट के जरिये जातीय संतुलन साधने निकली

महिला चेहरे पर खेल सकती है दांव, जाट या एससी वर्ग में किसको साधेगी?

क्या किरण भी कुलदीप की तरह हो सकती है दौड़ से बाहर?

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में खाली हुई राज्यसभा सीट पर भाजपा महिला चेहरे पर दांव खेल सकती है। अगर भाजपा 4 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए जातीय संतुलन साधने निकली तो फिर यह महिला एससी वर्ग से हो सकती है। वैसे कुलदीप बिश्नोई ने भी अभी आस नहीं छोड़ी है, वह वह भाजपा शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में है।

भाजपा में फिलहाल 3 महिला नेता राज्यसभा सीट की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। इनमें एक जाट चेहरा और 2 एससी वर्ग से हैं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक फिलहाल इन चेहरों में सबसे टॉप पर बंतो कटारिया का नाम चल रहा है। बंतो कटारिया अंबाला के सांसद रहे रतन लाल कटारिया की पत्नी हैं। दूसरे नंबर पर सुनीता दुग्गल हैं। सुनीता सिरसा से सांसद रह चुकी हैं। तीसरे नंबर पर कांग्रेस से भाजपा में आईं भिवानी के तोशाम की विधायक किरण चौधरी हैं।

बंतो कटारिया

बंतो कटारिया एससी चेहरा हैं। उनके पति रतन लाल कटारिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोस्त रह चुके हैं। इसी वजह से उन्हें इस लोकसभा चुनाव में अंबाला रिजर्व सीट से टिकट भी मिला। हालांकि वे कांग्रेस के विधायक वरूण मुलाना से चुनाव हार गईं। पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर भी बंतो कटारिया को राज्यसभा भेजे जाने के हक में बताए जा रहे हैं। खासकर भाजपा जिस तरह से 30 सीटों वाले जीटी रोड बेल्ट को साधने में जुटी है, उसमें इसी बेल्ट में आते जिले अंबाला की बंतो कटारिया फिट बैठती हैं।

सुनीता दुग्गल

सुनीता सिरसा से सांसद थी। इसके बावजूद इखढ ने उनकी टिकट काटकर आप से आए पूर्व कांग्रेसी अशोक तंवर को टिकट दे दी। हालांकि वह कुमारी सैलजा के खिलाफ हार गए। हालांकि दुग्गल ने इस दौरान कोई बगावती तेवर नहीं दिखाए। सुनीता को इसका फायदा मिल सकता है। हालांकि उनकी दावेदारी में कुछ पेंच भी हैं। जिनमें सिरसा-फतेहाबाद एरिया से पहले ही जाट चेहरे सुभाष बराला को राज्यसभा भेजा गया है। खट्टर से भी उनके सियासी रिश्ते ठीक नहीं बताए जाते। इतना जरूर है कि बंतो कटारिया के बजाय कोई दूसरी महिला एससी चेहरे की जरूरत हो तो सुनीता दुग्गल को फायदा मिल सकता है।

किरण चौधरी

किरण पूर्व सीएम चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधू हैं। उन्हें भी केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर का करीबी माना जाता है। उन्होंने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा जॉइन की। हालांकि इसके बदले उन्हें बीजेपी से अभी कुछ मिला नहीं है। ऐसे में अगर जाट महिला चेहरे को राज्यसभा भेजना हो तो किरण हो सकती हैं। हालांकि अगर किरण विधानसभा लड़ेंगी तो उनकी बेटी श्रुति चौधरी भी इसकी दावेदार हैं। किरण चौधरी का एक प्लस पॉइंट यह भी है कि वे भिवानी एरिया से आती हैं। इस एरिया में बीजेपी की तरफ से अभी तक कोई बड़ी नियुक्ति नहीं दी गई हैं। किरण चौधरी के जरिए भाजपा भिवानी के साथ लगते दक्षिणी हरियाणा को भी साध सकती है।

कुलदीप बिश्नोई भी हैं रेस में?

कुलदीप बिश्नोई हिसार लोकसभा सीट से टिकट न मिलने से नाराज थे। पार्टी उन्हें राज्यसभा भेजकर उनकी इस नाराजगी को दूर कर सकती है। बिश्नोई परिवार का कोई भी सदस्य पिछले 16 साल के लंबे अरसे से किसी भी दल में किसी बड़े पद पर आसानी नहीं हुआ है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी उन्हें भी मौका दे सकती है। बता दें कि लोकसभा चुनाव में आदमपुर से बीजेपी प्रत्याशी रणजीत चौटाला को हार का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव से पहले कुलदीप बिश्नोई को उम्मीद थी कि पार्टी की ओर से उन्हें कोई ब़ड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। ऐसा नहीं होने पर बीजेपी हिसार से उन्हें लोकसभा में भी प्रत्याशी बनाकर भेज सकती थी, लेकिन इन दोनों में से ही कुछ भी नहीं हुआ, जिसके चलते वह भीतर खाते बीजेपी से नाराज दिखाई दिए। लेकिन वह राज्यसभा टिकट के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क बनाए हुए है।

भाजपा ने जाटों को साधने के लिए प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया को बना दिया। ओबीसी को साधने के लिए नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया वहीं पंजाबी मत ऑन पर पकड़ बनाए रखने के लिए केंद्र में मनोहर लाल खट्टर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। ब्राह्मण मतदाताओं को लगाने के लिए मोहनलाल बडोली को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। 

भाजपा की गैर जाटों को साधने की रणनीति के कारण लोकसभा चुनाव में जाटों के साथ-साथ दलित वर्ग ने भी कांग्रेस का साथ दिया और भाजपा ने अंबाला व सिरसा की दोनों सीटे गवां दी। अब प्रदेश में भाजपा के पास एससी मतदाताओं को लुभाने के लिए राज्य सभा की सीट बची है जिसके आधार पर वह हरियाणा विधानसभा में दलित वर्ग के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है।

हरियाणा में उठापटक के आसार, क्या है राज्यसभा चुनाव का गणित

हरियाणा में रोहतक लोकसभा सीट से हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र हुड्डा ने लोकसभा चुनाव जीता था। इस वजह से उन्हें राज्यसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी है। अब यहां पर राज्यसभा के लिए चुनाव होंगे। लेकिन सबसे अधिक 41 विधायक भाजपा के पास हैं, जबकि कांग्रेस के पास 28 विधायक हैं, जेजेपी के पास 10 संख्याबल है। जबकि तीन सीटें खाली हैं और अन्य पर गोपाल कांडा और निर्दलीयों का कब्जा है। ऐसे में कांग्रेस के पास संख्याबल कम है और उसे अपने प्रत्याशी की हार का डर है। तभी हुड्डा ने प्रत्याशी देने से इंकार कर दिया है।

कुल मिलाकर हरियाणा में राज्यसभा के इस उपचुनाव में हर विधायक पर नजर होगी। राज्य में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में विधायकों के पाला बदलने से इनकार नहीं किया जा सकता।

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