विधानसभा चुनाव से पहले बसपा का माइक्रो प्लान, सेक्टर प्रभारियों को मिला आदेश 

गठबंधन को लेकर बिदकता रहा है हाथी, इनेलो के साथ तीसरी बार गठबंधन?

बसपा इनलो गठबंधन क्या जाट दलित वोटो में सेंघ लगा पाएगा? दोनों दलों पर आस्तित्व का संकट

अशोक कुमार कौशिक 

बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी के साथ अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। खासकर उत्तर प्रदेश में संगठन को मजबूत करने की दिशा में काम शुरू कर दिया गया है। जिला कमेटियों को नए सिरे से गठित करते हुए उसमें दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों को स्थान दिया जा रहा है। बसपा सुप्रीमो के निर्देश सेक्टर प्रभारियों द्वारा जिला कमेटियों को गठित कर उन्हें सक्रिय करने का निर्देश दिया गया है। 

पीडीए के काट की तैयारी

समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में पीडीए (पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यकों) के सहारे यूपी में सर्वाधिक सीटें जीती है। यूपी में हमेशा यह जातियां निर्णायक साबित होती रही हैं। बसपा का जनाधार खिसक रहा है। खासकर लोकसभा चुनाव में उससे दलित मतदाता छिटकते हुए दिखाई दिए हैं। मायावती ने इसीलिए जिला कमेटियों को नए सिरे से गठित करने का निर्देश दिया है और इसमें खासकर दलित, पिछड़ों और मुस्लिमों को हिस्सेदारी बढ़ाने को कहा है।

आकाश संभालेंगे प्रचार की कमान

मायावती के उत्तराधिकारी व राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर आकाश आनंद विधानसभा उपचुनाव में प्रचार की कमाल संभालने जा रहे हैं। उच्च स्तर पर इसको लेकर सहमति बन गई है। विधानसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवार तय करते समय विधानसभावार उनके कार्यक्रम भी तय किए जाएंगे। इसको लेकर कोआर्डिनेटरों को निर्देश दे दिया गया है। बसपा सुप्रीमो विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना होने के साथ ही उम्मीदवारों की घोषणा करना शुरू कर देगी।

हरियाणा में इनेलो के साथ

हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव में बसपा पांचवीं बार गठबंधन पर चुनाव लड़ने जा रही है। इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला ने शनिवार को नई दिल्ली में बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ मुलाकात कर उन्हें हरियाणा में चुनावी गठजो़ड़ के लिए तैयार कर लिया। 

गठबंधन पर बिदकता रहा हाथी

वैसे हरियाणा के सियासी इतिहास को देखें तो इनेलो के अलावा बसपा ने जो भी गठबंधन किए वह कभी सफल नहीं हो पाए। साल 1998 के लोकसभा चुनाव में इनेलो के साथ हुए गठबंधन को छोड़कर राज्य में जितने भी गठबंधन हुए, वह कभी सिरे नहीं चढ़ पाए। 

बसपा सुप्रीमो मायावती का हाथी समय-समय पर बिदकता रहा, जिसका फायदा न तो बसपा को मिल पाया और न ही उसके साथ गठबंधन करने वाले राजनीतिक दल को कोई लाभ मिला। ऐसा इसलिए हुआ कि बसपा सुप्रीमो ने हरियाणा को राजनीतिक रूप से कभी अपने एजेंडे में प्राथमिकता पर रखा ही नहीं। 

मायावती गठबंधन करती रही और भूलती रही, पांचवी बार गठबंधन करेगी बसपा

बहुजन समाज पार्टी इस बार राज्य में पांचवीं बार गठबंधन करने जा रही है। प्रदेश में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने प्रस्तावित हैं। ऐसे गठबंधन हर बार चुनाव के आसपास होते हैं। इस बार बसपा और इनेलो के गठबंधन की घोषणा 11 जुलाई को चंडीगढ़ में होगी, जिसमें दोनों दलों के नेता संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मिलकर चुनाव लड़ने की रूपरेखा तैयार करेंगे।

साल 2018 में भी इनेलो और बसपा का गठबंधन हुआ था। तब इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला ने बसपा अध्यक्ष मायावती की कलाई पर राखी बांधकर गठबंधन की मजबूती का संकल्प लिया था, लेकिन कुछ समय बाद गठबंधन टूट गया और अब करीब छह साल बाद दोनों भाई-बहन के राजनीतिक रिश्ते फिर से परवान चढ़ते दिखाई दे रहे हैं।

इनेलो मूल रूप से हरियाणा की ही पार्टी है जबकि बसपा का मुख्य जनाधार उत्तर प्रदेश में है। लेकिन हरियाणा में इनेलो और उत्तर प्रदेश में बसपा बेहद कमजोर हो चुकी है और इनके राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।

लेकिन सवाल यह है कि क्या हरियाणा के मतदाता इस चुनावी गठबंधन को वोट देंगे? यह गठबंधन बीजेपी और कांग्रेस में से किसका खेल बिगाड़ेगा?

बसपा के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर संकट

2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बसपा और इनेलो दोनों के सामने ही इस बात का संकट है कि वे अपना राजनीतिक आधार कैसे बनाए रखें। दोनों ही दलों को एक भी सीट नहीं मिली है और वोट प्रतिशत भी काफी कम रहा है। स्वतंत्र रूप से इन दोनों दलों का अब राज्य में कोई जनाधार नहीं रह गया है। बसपा 1997 में राष्ट्रीय पार्टी बनी थी लेकिन लोकसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिली है और उसका वोट शेयर 2% के आसपास रहा है, ऐसे में वह अपना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो सकती है। इसलिए विधानसभा चुनाव में इनेलो व बसपा मिलकर भाजपा तथा कांग्रेस के विरुद्ध तीसरा मोर्चा खड़ा करने की संभावनाओं पर आगे बढ़ रहे हैं।

राजनीतिक दल मिले वोट (प्रतिशत में)

इनेलो 0.04

बसपा 2.04

हरियाणा में इनेलो और बसपा का पहले भी चुनावी गठबंधन था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बसपा ने गठबंधन तोड़ दिया था और तब उसने लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।

हरियाणा में पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में बसपा, इनेलो को मिले वोट

राजनीतिक दल  बसपा को मिले वोट (प्रतिशत में) इनेलो को मिले वोट (प्रतिशत में)

2005 विधानसभा चुनाव 3.22  26.77

2009 विधानसभा चुनाव 6.73  25.79

2014 विधानसभा चुनाव 4.37  24.11

2019 विधानसभा चुनाव 4.14  2.44

इससे पहले इन दलों से हो चुका है गठबंधन

हरियाणा में 1998 में जब बसपा व इनेलो के बीच गठजोड़ हुआ था, तब अंबाला लोकसभा सीट से बसपा के अमन नागरा चुनाव जीते थे। तब के बाद विधानसभा चुनाव में कभी-कभी बसपा के इक्का-दुक्का उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं, मगर वे सभी हमेशा सत्ता पक्ष के पाले में बैठे दिखाई दिए।

इन जीते हुए उम्मीदवारों ने कभी बसपा के हाथी को राज्य में पोषित नहीं होने दिया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा व हजकां (कुलदीप बिश्नोई) के बीच गठबंधन हुआ था, मगर तब बसपा नेताओं के फोन नहीं उठाने वाले कुलदीप बिश्नोई को गठबंधन की टूट के रूप में इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ा था।

2018 में चौटाला परिवार में अंदरुनी खींचतान के बाद ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला अपने दोनों बेटों दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला के साथ इनेलो से अलग हो गए थे और उन्होंने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन किया था। जेजेपी ने सबसे ज्यादा नुकसान इनेलो का ही किया और 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक ही सीट जीत सकी थी। जबकि 2014 में उसने विधानसभा की 19 सीटें जीती थी।

मई 2018 के बाद इनेलो से हुआ गठबंधन भी ज्यादा दिन नहीं चला। फिर साल 2019 में बसपा के साथ भाजपा के पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी ने गठबंधन किया, जो चुनाव के बाद टूट गया। 

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई होने जा रही है। लेकिन इनेलो, बसपा, जेजेपी, आम आदमी पार्टी भी कुछ सीटें हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।

45% है जाट और दलित समुदाय की आबादी

हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी 22 से 25% के बीच है और दलित समुदाय की आबादी 20% के आसपास है। ऐसे में इनेलो और बसपा के एक मंच पर आने से क्या प्रदेश के अंदर जाट और दलित मतदाता इस गठबंधन का साथ देंगे? इनेलो को जाट और बसपा को दलित मतदाताओं के समर्थन वाली पार्टी माना जाता है।

कांग्रेस ने जाट और दलित समीकरण को ध्यान में रखते हुए ही पूर्व मुख्यमंत्री और जाट बिरादरी से आने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फ्रंट फुट पर रखा है जबकि प्रदेश कांग्रेस की कमान चौधरी उदयभान सिंह के पास है। कुमारी सैलजा के रूप में भी कांग्रेस के पास एक बड़ा दलित चेहरा मौजूद है जबकि बीजेपी मूल रूप से गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे चल रही है। 75% आबादी वाले इस वोट बैंक में दलित समुदाय भी शामिल है। ऐसे में बीजेपी को भी इनेलो-बसपा गठबंधन से नुकसान होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

बीजेपी ने 2014 में हरियाणा में सरकार बनाने के बाद पहले मनोहर लाल खट्टर और फिर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है हालांकि उसने पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े जाट नेता रहे बंसीलाल की बहू किरण चौधरी को अपने साथ जोड़कर, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को राज्यसभा का सदस्य और ओमप्रकाश धनखड़ को राष्ट्रीय सचिव बनाकर यह संदेश दिया है कि वह इस ताकतवर समुदाय से दूरी नहीं रखना चाहती। बीजेपी के पास दलित चेहरे के रूप में राज्य सभा सदस्य कृष्ण लाल पंवार हैं।

कांग्रेस को होगा नुकसान?

सीएसडीएस-लोकनीति के द्वारा कराए गए पोस्ट पोल सर्वे से पता चलता है कि हरियाणा में इस बार दलित समुदाय के मतदाताओं में से हर तीन में से दो ने कांग्रेस को वोट दिया है जबकि हर तीन में से दो जाट मतदाताओं ने भी कांग्रेस को वोट दिया है। ऐसे में जाट और दलित मतदाताओं का रुख लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर दिखाई दिया है। लेकिन अगर बसपा और इनेलो इन वर्गों के मतदाताओं को कुछ हद तक साथ लाने में कामयाब रहे तो इससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।

जेजेपी में बगावत से है इनेलो को उम्मीद

लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भी इनेलो को उम्मीद है कि वह विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें जीत सकती है तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह जेजेपी में हो रही बगावत है। जेजेपी के 10 में से छह विधायक बगावत के रास्ते पर हैं और पिछले कुछ महीनों में कई नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं।

इनेलो को उम्मीद है कि जेजेपी में हुई बगावत का उसे फायदा मिलेगा और बसपा के साथ गठबंधन करने से कुछ हद तक दलित मतदाता भी उसके साथ आएंगे और ऐसे में वह खुद को हरियाणा की राजनीति में फिर से जिंदा कर सकेगी।

इनेलो की कोशिश कुछ और राजनीतिक दलों को अपने साथ जोड़ने की है। ऐसी चर्चा है कि आगे इस गठबंधन में निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू की पार्टी हरियाणा जन सेवक पार्टी (हजपा) और आम आदमी पार्टी भी आ सकते हैं।

अब देखने वाली बात यह होगी कि बसपा व इनेलो का यह गठबंधन राज्य में किस तरह का राजनीतिक गुल खिलाता है।

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