स्व.पंडित मांगेराम शर्मा, संस्थापक चेयरमैन विश्व ब्राह्मण संघ -सन्मार्ग द्वारा लिखित लेख ……… पाठकों के लिए प्रेषित है जो हमें इस पुण्य दिवस पर हमें प्रेरणा देता है

स्व.पंडित मांगे राम शर्मा संस्थापक चेयरमैन “सन्मार्ग” वर्ल्ड ब्राह्मण फैडरेशन

ऋचीक ऋषि के आत्मज जमदग्नि सात्विक वृति के थे।पिता के देवलोक जाने पर जमदग्नि इक्ष्वाकु वंश की राजकन्या रेणुका के साथ विवाह करके निर्मल और सांस्कृतिक जीवन बिताने लगे। इनके पांच पुत्र हुए। उनमें सबसे छोटे थे परशुराम। परशुराम का जन्म वैशाख शुक्लतृतिया का हुआ था। वो सर्वशास्त्र संपन्न थे। उनकी नसों में जगद्विजयी अग्रिपूर्वक साधुओं का प्रतापी रूधिर बह रहा था। परशुराम ने विश्वमित्र और जमदग्नि की गोद में सरस्वती जीवन की सफलता प्राप्त की। जहां पर वाणी की शुद्धि के समान जीवन की संस्कारिता की प्रिय समझी जाती थी।जहां साम्राज्यों के सिंहासन के सन्मुख ऋषित्व ऊंचा समझा जाता था और जहां आर्य संस्कारों की रक्षा जीवन की सफलता थी।

परशुराम महर्षि थे। उच्च संस्कृति के प्रतिनिधि थे। बली,भयंकर, दुर्जेय, प्रतापी और दृढ़ विजेता थे।

आर्य- संस्कृति का उष:काल ही था, जब भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि-पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म हुआ। यह वह समय था जब सरस्वती और हषदव्ती नदियों के बीच फैले आर्यावर्त में युद्ध और पुरूष, भरत और तृत्सु, तवरसु और अनु, दरहाऊ और जन्हू तथा भृगु जैसी आर्य जातियां निलंबित थी और जहां वशिष्ठ, जमदग्नि, अंगिरा, गौतम और कण्व आदि महापुरुषों के आश्रमो से गुंजारित दिव्य ऋचाएं आर्य धर्म का संस्कार- संस्थापन कर रही थी। लेकिन दूसरी ओर संपूर्ण आर्यावर्त, नर्मदा से मथुरा तक शासन कर रहे हैं तराजू सहस्त्रारजुन के लोमहर्षक अत्याचारों से त्रस्त था। ऐसे में युवावस्था में प्रवेश कर रहे परशुराम ने आर्य-संस्कृति को ध्वस्त करने वाले हैहयराज की प्रचंडता को चुनौती दी और अपनी आर्यनिष्ठा , तेजस्विता, संगठन- क्षमता,साहस और अपरिमित शौर्य के बल पर विजयी हुए। भगवान परशुराम जी एक ऐसी शौर्य गाथा है जो किसी भी युग में अन्याय और दमन के सक्रिय प्रतिरोध की प्रेरणा देती हैं।

आर्यों की कल्पनाशक्ति इस वीर जामदग्रेय से इतनी प्रभावित हुई कि अनेक गुण, लक्षण और पराक्रम के पर्यायवाची परशुराम बन गए। वह विश्वामित्र के बहन के पोते थे। इक्ष्वाकु राजा के दोहित्र। परशुराम ऋषि के रक्षक और अजेय सहस्त्रार्जुन के काल बने। उन्होंने पृथ्वी को 21 बार राक्षसीवृत्ति के राजाओं से विहीन किया और समस्त वसुंधरा यज्ञ के समय में दान में दे दी।

धर्म की रक्षा के लिए प्रेरणास्रोत भगवान परशुराम की पावन जयंती पर हरियाणा में विशेष धूम रहती है। उनका स्मरण कर यहां का ब्राह्मण वर्ग अपने आपको गौरवांवित अनुभव करता है। परंतु क्या अपने प्रेरणास्रोत भगवान परशुराम जैसा तेज और त्याग आज इनमें कहीं है ? क्या अपने बच्चों में ऐसे संस्कार पल्लवित करते हैं। जो उस ऋषिकुल परंपरा में हो ? हम यज्ञ और अनुष्ठान भूल गए हैं।यज्ञोपवित की तेजस्विता हमसे लुप्त हो गई है। हो भी क्यों नहीं। न हम यज्ञोपवित धारण ही नहीं करते। शनै शनै दूर भाग रहे हैं हम अपने तेजस्वी धार्मिक कृतियों से।

भारत वर्ष में हर वर्ष एक मास तक ब्राह्मण संगठनों द्वारा भगवान श्री परशुराम जयंती समारोह,कार्यक्रम व शोभायात्राएं बड़ी धूमधाम से आयोजित की जाती हैं।

💐जय श्री परशुराम💐

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