एडवोकेट ने  भारत के राष्ट्रपति और हरियाणा के राज्यपाल को लिखकर स्पष्टीकरण की मांग की 

हिसार से भाजपा प्रत्याशी रणजीत चौटाला विधायकी छोड़ने बावजूद आज भी हैं हरियाणा सरकार में मंत्री

चंडीगढ़ — हरियाणा में नायब  सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित  सात सप्ताह पुरानी   भाजपा सरकार में ऊर्जा और जेल विभाग के कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह चौटाला द्वारा विधायक पद से अपना इस्तीफा वर्तमान 14वीं हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) ज्ञान चंद गुप्ता को भेजे जाने के एक महीने और एक सप्ताह बाद उसे  अंततः बीते मंगलवार 30 अप्रैल 2024 को स्पीकर  द्वारा स्वीकार कर लिया गया है. 

इस बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि गत 30 अप्रैल  को हरियाणा सरकार के राजपत्र (गजट ) में प्रकाशित एक नोटिफिकेशन में उल्लेख किया गया है  हरियाणा विधानसभा  अध्यक्ष द्वारा विधायक रणजीत सिंह के इस्तीफे को  हालांकि बीती  24 मार्च 2024 (फोर्नून-पूर्वाह्न)  से स्वीकार कर लिया गया है. 

सनद रहे  कि 24 मार्च की शाम को  ही रणजीत सिंह, जो उस दिन तक सिरसा जिले की रानिया विधानसभा सीट से निर्वाचित  निर्दलीय विधायक थे, भाजपा में शामिल हो गये थे जोकि हालांकि  दलबदल विरोधी कानून के तहत प्रतिबंधित है.  अब विधानसभा स्पीकर द्वारा  उसी दिन पूर्वाह्न से विधायक के रूप में उनके इस्तीफे को स्वीकार करने से रणजीत सिंह को  सदन की अयोग्यता की कार्रवाई से बचा लिया गया है. रणजीत  हरियाणा के हिसार संसदीय क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि, यह उल्लेख करना दिलचस्प और महत्वपूर्ण है कि रणजीत  ने अभी तक हरियाणा सरकार में  मंत्रीपद से इस्तीफा नहीं दिया है और वह आज भी  नायब सैनी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल हैं. 

12 मार्च 2024 को जब मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया, उसी दिन हरियाणा के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री की सलाह पर रणजीत  को भी नई सरकार में मंत्री नियुक्त किया था.

इसके बाद  22 मार्च 2024 को मुख्यमंत्री की सलाह पर  राज्यपाल ने रणजीत को दो विभाग/पोर्टफोलियो — ऊर्जा और जेल आबंटित किये. 

जो भी हो, हेमंत ने बीते दिवस  भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को लिखकर एक महत्वपूर्ण कानूनी और संवैधानिक प्रश्न से संबंधित स्पष्टीकरण मांगा है कि चूंकि रणजीत सिंह जो 12 मार्च 2024 को वर्तमान 14वीं हरियाणा विधानसभा के विधायक थे, यानी जिस दिन उन्होंने मंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली और 12 मार्च 2024 से ही अपने कार्यालय के कर्तव्यों का कार्यभार संभाला और उसके बाद  24 मार्च 2024 के पूर्वाह्न (एफ.एन.) से पूर्वव्यापी प्रभाव से, विधायक के रूप में उनका इस्तीफा माननीय विधानसभा  अध्यक्ष द्वारा पूर्वव्यापी रूप से स्वीकार कर लिया गया है, इसलिए 24 मार्च 2024 की दोपहर (आफ्टरनून) से उनकी स्थिति एक पूर्व विधायक या दूसरे शब्दों में एक गैर-विधायक की हो गई है, इसलिए यदि वह वर्तमान हरियाणा सरकार में उस क्षमता (गैर-विधायक पढ़ें) में निर्बाध रूप से (यानी पद एवं गोपनीयता की शपथ जो उनके द्वारा विधायक रहते हुए 12 मार्च 2024 को ली गई) 24 मार्च 2024 की दोपहर से 23 सितंबर 2024 तक अर्थात भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार अधिकतम छह माह के लिए मंत्रीपद पर आसीन रह सकते हैं अथवा  रणजीत सिंह, पूर्व विधायक को हरियाणा के माननीय राज्यपाल द्वारा मंत्री के रूप में नए सिरे से पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई जानी चाहिए, क्योंकि 24 मार्च 2024 की दोपहर  से वे गैर-विधायक हैं और मंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ जो उन्हें 12 मार्च 2024 को दिलाई गई थी, जबकि वे विधायक थे, को इस तरह नहीं बढ़ाया जा सकता कि इसमें गैर-विधायक होने के नाते मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल हो, जो 24 मार्च 2024 की दोपहर (ए.एन.) से प्रभावी हुआ है. 

हेमंत का कहना है  कि जब भी केंद्र सरकार या राज्य सरकार में नियुक्त किसी मंत्री का निर्वाचन (सांसद या विधायक के रूप में, जैसा भी मामला हो) संबंधित उच्च न्यायालय या भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द या अमान्य घोषित कर दिया जाता है, तो ऐसे सांसद या विधायक को तत्काल  केंद्र सरकार  या राज्य सरकार  में  मंत्रीपद से इस्तीफा देना होता है. वह व्यक्ति यह तर्क नहीं दे सकता कि गैर-सांसद या गैर-विधायक के रूप में भी, वह सांसद या विधायक के रूप में अपने अयोग्य होने होने की तिथि से अधिकतम छह महीने तक केंद्र  या राज्य सरकार  में मंत्री के रूप में बना  रह सकता है।

बेशक, यदि अगर देश के  प्रधानमंत्री या राज्य के मुख्यमंत्री ऐसा चाहते हैं, तो ऐसे व्यक्ति को, जिसका   सांसद या विधायक के रूप में निर्वाचन रद्द कर दिया गया हो, उसे केंद्र सरकार  या राज्य सरकार  में नए सिरे , लेकिन केवल एक बार के लिए, गैर-सांसद या गैर-विधायक तौर पर  मंत्री नियुक्त किया जा सकता है और वह भी अधिकतम छह महीने के लिए, हालांकि हेमंत का कानूनी मत है कि इसके लिए ऐसे व्यक्ति को भारत के माननीय राष्ट्रपति या उस प्रदेश  के राज्यपाल द्वारा पद और गोपनीयता की नई शपथ (या प्रतिज्ञान) दिलाई जानी चाहिए.

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