क्या भारत के समस्त विपक्षी दलों को अब चुनाव लड़ने से ही बहिष्कार कर देना चाहिए..? जब चुनाव आयोग निष्पक्ष नही रह गया है तो फिर चुनाव का क्या औचित्य रह गया है…? चुनाव आयोग, क्या भारत मे EVM “अंडा” देती है? या फिर वोट देने पर EVM प्रेग्नेंट हो जाती है? पहले फेज़ के 11 रोज़ बा’द और दूसरे फेज़ के 3 रोज़ बा’द वोट प्रतिशत 6% बढ़ चुका है? अशोक कुमार कौशिक भारत की चुनाव प्रक्रिया को मैं 1987 से बहुत नजदीक से देखता आ रहा हूं। तब ईवीएम नहीं थी और मतदान बैलट पेपर द्वारा किया जाता था। उस समय संचार के साधनों के नाम पर केवल कभी न लगने वाला लैंडलाइन फोन या पुलिस का वायरलैस सिस्टम ही होता था। पोलिंग पार्टियों के यातायात के साधन आरटीओ द्वारा अधिगृहीत ट्रक, बस, प्राइवेट जीपों के साथ ही नावें और ऊंट गाडियां तक होती थी। आज तो उत्तर पूर्व के कुछ दुरूह इलाकों को छोड़कर देश के लगभग सभी गांव कस्बे यातायात और संचार सुविधाओं से लैस हैं किंतु उस दौर में देश के लाखों पोलिंग बूथ इन सुविधाओं से महरूम थे। हर जोन के लिए एक जोनल मजिस्ट्रेट नियुक्त किए जाते थे और शायद आज भी किए जाते हैं। ये जोनल मजिस्ट्रेट पोलिंग खत्म होने के बाद अपनी नॉन एसी खचाड़ा जीपों से घूम घूम कर अपने क्षेत्र के हर पोलिंग स्टेशन का डाटा एकत्र करते थे और नजदीकी पुलिस स्टेशन से जिला कंट्रोल रूम को वायरलैस द्वारा नोट करवाते थे। जिला कंट्रोल रूम से ये डाटा लैंडलाइन फोन द्वारा स्टेट कंट्रोल रूम को भिजवाया जाता था। पोलिंग खत्म होने के अगले दिन राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी राज्य में पड़े कुल मतों की संख्या और प्रतिशत की जानकारी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर या प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दे दिया करते थे। मैंने अनेक लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान यह पाया कि मतदान के दूसरे दिन जारी प्रेस विज्ञप्ति से मतगणना के समय वास्तविक मतों की संख्या में कुछ मामूली अंतर रहता था और एरर का प्रतिशत 0.0.. टाइप कुछ रहता था। इसका कारण संभवतः यह था कि पूरी प्रक्रिया मैनुअल होती थी और वायरलैस तथा दूरभाष से बोलने और समझ कर लिखने में शायद कहीं कोई फर्क रह जाता था तब भी एरर का प्रतिशत नगण्य ही रहता था। आज चुनाव आयोग के पास वायरलैस और लैंडलाइन वाले पुराने दोनों साधनों के अतिरिक्त यातायात और संचार के आधुनिकतम साधन भी उपलब्ध हैं। कहा तो यह भी जाता है कि सॉफ्टवेयर के लिए भी आयोग ने करोड़ों रुपए खर्च किए हैं। देश को डिजिटल इंडिया बनाने की दिशा में सरकार ने भी हजारों करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह सब होने के बाद भी चुनाव आयोग अंतिम डाटा पोलिंग संपन्न होने के ग्यारह दिन बाद जारी करे और वह भी आधा अधूरा तो न तो चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बचेगी और न उसके द्वारा करवाए गए चुनाव की। मतदान के अंतिम आंकड़े जारी करने में विलंब होने से निर्वाचन आयोग पर सवाल उठना स्वाभाविक है,मशीनों के जरिए मतदान कराने के पीछे मकसद यही था कि इससे मतगणना में आसानी होगी, मतदान से संबंधित आंकड़ों को अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाया जा सकेगा…. इस आम चुनाव के पहले और दूसरे चरण में कम मतदान के आंकड़े आए, तो निर्वाचन आयोग पर सवाल उठने शुरू हो गए थे कि उसका मतदाता जागरूकता अभियान कारगर साबित क्यों नहीं हो पा रहा…. अब उसने अंतिम आंकड़े जारी किए हैं, जो पिछले आंकड़ों से पांच से छह फीसद तक अधिक हैं। यानी दोनों चरण में छियासठ फीसद से अधिक मतदान हुए। यह एक संतोषजनक आंकड़ा कहा जा सकता है… मगर विपक्षी दलों ने सवाल उठाया है कि निर्वाचन आयोग ने अंतिम आंकड़े जारी करने में इतना वक्त क्यों लगाया….? ये आंकड़े पहले चरण के ग्यारह दिन और दूसरे चरण के चार दिन बाद आए हैं… सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग से सवाल किया है कि : ‘ आंकड़े प्रस्तुत करने मे इतने दिन क्यों लगे…? साथ ही वेबसाइट पर मतदाताओं की संख्या को क्यों नहीं डाला गया…? अभी तक मतदान के चौबीस घंटों में अंतिम आंकड़े जारी कर दिए जाते थे। फिर, विपक्षी दलों ने यह भी पूछा है कि आयोग ने मतदाताओं की संख्या क्यों नहीं बताई है…. इस तरह चुनाव नतीजों में गड़बड़ी की शंका जाहिर की जाने लगी है… पहले ही विपक्षी दल और कई सामाजिक संगठन मतदान मशीनों में गड़बड़ी की आशंका जताते रहे हैं। निर्वाचन आयोग के चुनाव प्रक्रिया और परंपराओं का उचित निर्वाह न करने से उनका संदेह स्वाभाविक रूप से और गहरा होगा… यह समझना मुश्किल है कि निर्वाचन आयोग ने मतदान के अंतिम आंकड़े जारी करने में इतना वक्त क्यों लगाया… मतदान मशीनों की केंद्रीय इकाई में हर मतदान केंद्र पर पड़े मतों की संख्या दर्ज होती है। इस तरह हर घंटे मतदान के आंकड़े जारी किए जाते हैं। हालांकि अंतिम आंकड़ा मतदान अधिकारियों के रजिस्टर में दर्ज संख्या से मिलान करने के बाद ही तय होते हैं…. इसलिए मान कर चला जाता है कि मतदान मशीनों की केंद्रीय इकाई से मिले आंकड़ों में कुछ फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है। मगर मतदान अधिकारियों के रजिस्टर में दर्ज संख्या की गणना करने में भी इतना वक्त नहीं लगता…. जब इससे पहले मतदान समाप्त होने के अगले दिन अंतिम आंकड़े जारी कर दिए जाते थे, तो इस बार ऐसी क्या अड़चन आ गई कि ग्यारह दिन लग गए। फिर मतदाताओं की संख्या वेबसाइट पर बताने में क्या दिक्कत है। वह तो मतदाता सूची में दर्ज ही होती है। आज के डिजिटल युग में ऐसी सूचनाएं जारी करने में ज्यादा समय नहीं लगता…. निर्वाचन आयोग का दायित्व है कि वह न केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए, बल्कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता भी बनाए रखे। अगर किसी विषय या बिंदु पर आम लोगों या राजनीतिक दलों को किसी प्रकार का संदेह या प्रश्न है, तो उसका निराकरण भी करे। पहले ही आम मतदाता के मन में यह धारणा बैठी हुई है कि मशीनों में गड़बड़ी करके मतों को इधर से उधर किया जा सकता है…. फिर राजनेताओं के आपत्तिजनक बयानों और आचार संहिता के उल्लंघन संबंधी शिकायतों पर पक्षपातपूर्ण रवैए के आरोप भी निर्वाचन आयोग पर लगते रहे हैं… चुनाव की तारीखों का ऐलान करते हुए आयोग ने बढ़-चढ़ कर दावा किया था कि वह नियम-कायदों की किसी भी प्रकार की अनदेखी बर्दाश्त नहीं करेगा… मगर उसके इस दावे पर आज देश का हर वोटर नही कर पा रहा जिस तरह वह केंद्र सरकार का कठपुतली बन चुका है, उसके द्वारा लिये जा रहे हर एक्शन, री-एक्शन, डिसीजन पर सवालिया निशान है…. चुनाव आयोग, क्या भारत मे EVM “अंडा” देती है? या फिर वोट देने पर EVM प्रेग्नेंट हो जाती है? पहले फेज़ के 11 रोज़ बा’द और दूसरे फेज़ के 3 रोज़ बा’द वोट प्रतिशत 6% बढ़ चुका है? ~ ये कैसे मुमकिन है? ~ कैसा कैलकुलेशन है? ~ बढ़ा हुआ वोट किसे गया? ~ EVM ने “वोट बच्चा” कैसे पैदा किया? जब EVM नहीं थी तब चुनाव आयोग 24 घन्टो के दरम्यान वोट परसेंटेज बता देता था..और आज डिजिटल ज़माने में 11 रोज़ लगते है? हम क्यों ना कहें कि यह “वोट चोरी” है? एक और ख़तरनाक बात : चुनाव आयोग हर लोकसभा में वोटर की ता’दाद और वोट का परसेंटेज भी नहीं बता रही है.. जब देश को वोटर की संख्या और वोट परसेंटेज ही नहीं मा’लूम है तो वोट का मतलब क्या बचा? अब तो गोदिमीडिया भी सवाल पूछ रहा है कि ऐसे कैसे वोट परसेंटेज बढ़ सकता है? परसेंटेज गिनने में 11 रोज़ कैसे लग सकते है? Post navigation कांग्रेस झूठी घोषणाएं करती है, हम संकल्प के साथ विकास करते हैं : नायब सैनी कांग्रेस की सरकार आने पर किसानों का सारा कर्जा माफ किया जाएगा: कुमारी सैलजा