शिक्षा राज्यमंत्री सीमा त्रिखा चेयरपर्सन जबकि परिवहन राज्यमंत्री असीम गोयल सदस्य विधानसभा प्रक्रिया नियमावली अनुसार केवल कार्य सलाहकार समिति और सेलेक्ट कमेटी में ही मंत्री हो सकते हैं शामिल — एडवोकेट चंडीगढ़ – मंगलवार 23 अप्रैल को हरियाणा विधानसभा सचिवालय द्वारा प्रदेश सरकार के गजट में प्रकाशित एक अधिसूचना मार्फ़त विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के आदेशनुसार गत वर्ष 22 दिसम्बर को गठित एक तथ्य-जांच समिति (फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) में प्रदेश की नायब सिंह सैनी सरकार के दो राज्यमंत्रियों को शामिल किया गया है जिसमें शिक्षा राज्यमंत्री सीमा त्रिखा चेयरपर्सन जबकि परिवहन राज्यमंत्री असीम गोयल नन्योला को सदस्य नामित किया गया है जिस पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं. ज्ञात रहे कि हरियाणा विधानसभा के गत वर्ष दिसम्बर, 2023 के शीतकालीन सत्र दौरान सदन में जींद जिले के उचाना मंडी के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के तत्कालीन प्रिंसिपल करतार सिंह द्वारा वर्ष 2005 से 2023 के मध्य कई स्कूली छात्राओं से तथाकथित यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर, जिस पर सदन में 15 दिसम्बर और 18 दिसम्बर पर चर्चा की गयी, के विषय पर स्पीकर द्वारा तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री कँवर पाल की अध्यक्षता में एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया गया था जिसमें उनके अतिरिक्त अम्बाला शहर से भाजपा विधायक असीम गोयल, रोहतक से कांग्रेस विधायक भारत भूषण बतरा, जुलाना से जजपा विधायक अमरजीत ढांडा एवं हरियाणा के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल ) बलदेव राज महाजन को उक्त कमेटी में विशेष आमंत्री (स्पेशल इनवाईटी बनाया गया. अब चूँकि गत माह तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के हटने के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए नायब सिंह सैनी की सरकार में स्कूली शिक्षा विभाग सीमा त्रिखा को आबंटित किया है जिससे गत 23 अप्रैल को उपरोक्त गठित तथ्य-जांच समिति में कँवर पाल के स्थान पर सीमा त्रिखा को उपरोक्त तथ्य-जांच कमेटी की नई चेयरपर्सन बनाया गया है. वहीं पहले से कमेटी के सदस्य भाजपा विधायक असीम गोयल अब हालांकि नायब सैनी सरकार में परिवहन राज्यमंत्री हैं, परन्तु उन्हें समिति में कायम रखा गया है. इसलिए अब उक्त समिति में सीमा त्रिखा और असीम गोयल अर्थात प्रदेश सरकार के दो राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हो गये है. बहरहाल, इस विषय पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने हरियाणा विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली का अध्ययन कर बताया कि नियम संख्या 204 (1 ) जैसा आज तक संशोधित है एवं जो नियम सदन की कमेटियों (समितियों ) के सामान्य नियमों से सम्बंधित है के अनुसार सदन द्वारा गठित की जाने वाली विभिन्न कमेटियों में बिज़नेस एडवाइजरी कमेटी (कार्य सलाहकार समिति ) और सेलेक्ट कमेटी (प्रवर समिति) को छोड़कर किसी अन्य कमेटी में मंत्री को सदस्य के रूप में नामित नहीं किया जाएगा. वहीँ अगर किसी कमेटी में शामिल सदस्य को मंत्री के तौर पर नियुक्त किया जाता है, तो वह मंत्रीपद पर नियुक्ति की तिथि से उस कमेटी का सदस्य ही नहीं रहेगा. बहरहाल, अब क्या विधानसभा सदन के प्रस्ताव पर स्पीकर द्वारा किसी विशेष मामले पर गठित तथ्य-जांच समिति को भी सदन की प्रवर समिति कहा जा सकता है, इस पर सवाल उठना स्वाभाविक है क्योंकि मुख्यतः सेलेक्ट कमेटी को सदन के पटल पर रखे गये किसी विधेयक (बिल) के प्रावधानों का अवलोकन कर उस पर विचार-विमर्श कर सदन में उस पर रिपोर्ट प्रस्तुत के लिए किया जाता है किसी अन्य विषय पर (जैसे उपरोक्त केस) में बनायी गयी फैक्ट फाइंडिंग कमेटी को सेलेक्ट कमेटी नहीं कहा जा सकता है. हेमंत ने बताया कि वह बीते कईं वर्षों से भारतीय संसद में विभिन्न संसदीय समितियों के गठन एवं संरचना का अवलोकन करते रहे हैं एवं जब भी लोक सभा स्पीकर या राज्य सभा के सभापति द्वारा अपने अपने सदन हेतु या संयुक्त सदनों के लिए निर्धारित उद्देश्य के लिए किसी भी प्रकार की कमेटी का गठन किया जाता है, तो उसमें क्रमश: सम्बंधित सदन या दोनों सदनों के सदस्य (सांसद) ही शामिल किये जाते हैं एवं कभी भी किसी संसदीय समिति में केंद्रीय मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य, चाहे वो केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हो या राज्य मंत्री या राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हो को शामिल नहीं किया जाता है. भारतीय संसद में केवल राज्यसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली में ही विधेयकों पर सेलेक्ट कमेटी के गठन का प्रावधान है. हेमंत ने बताया कि विशेष तौर पर अगर विधानसभा सदन के प्रस्ताव पर स्पीकर द्वारा गठित तथ्य-जांच कमेटी के कार्य-क्षेत्र में प्रदेश सरकार के किसी राजकीय विभाग (वर्तमान मामले में स्कूली शिक्षा विभाग) के अधीन नियमित सेवा में नियुक्त किसी आरोपी अधिकारी/कर्मचारी के आचार-व्यवहार की जांच आदि का विषय हो, तो उसी विभाग के राज्यमंत्री (सीमा त्रिखा) को ऐसी गठित विधायी कमेटी का चेयरपर्सन बनाना न्यायोचित नहीं है क्योंकि जब कमेटी की फाइनल रिपोर्ट राज्य सरकार के पास जायेगी तो बतौर शिक्षा राज्यमंत्री को ही उस पर अपनी आधिकारिक कमैंट्स (टिप्पणी) देकर कर उसे आगे मुख्यमंत्री को फाइनल निर्णय के लिए भेजेगा. अब अगर शिक्षा राज्यमंत्री ही उस कमेटी का अध्यक्ष रहा हो, तो कमेटी की रिपोर्ट पर बाद में मंत्री के तौर पर उससे संबद्ध होना शासनिक और प्रशासनिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं है. हालांकि मुख्यमंत्री के आदेशों द्वारा गठित किसी कैबिनेट सब-कमेटी या किसी सरकारी कमेटी, जो विधानसभा सदन से बाहर राज्य सरकार द्वारा गठित की जाती है, उसमें सम्बन्धित विभाग के मंत्री बतौर चेयरमैन बन सकते हैं क्योंकि उस समिति का दर्जा विधायी कमेटी का नहीं होगा. हेमंत का स्पष्ट मत है कि संसदीय कार्यप्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका के कार्य क्षेत्रों में स्पष्ट अंतर एवं एक विभाजन रेखा होती है. 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