शक्ति के मद में रहे दुष्यंत- अजय ने नहीं समझा जनता की भावनाओं को

हरियाणा ने देवीलाल को ‘जननायक’ बनाया फिर ‘फर्श’ पर बैठाया पर वह वास्तव में जननेता थे

देवीलाल को आदर्श मानने वाली पार्टी को क्यों ठुकरा रही है जनता, बने लोकनिंदा का शिकार

लगातार टूट रही जजपा, हरियाणा में जजपा के पांच विधायक भाजपा के संपर्क में

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा के लोग भी बड़े अजीब है। जब वह किसी को ऊंचा उठाते है तो सिर का ‘ताज’ बना लेते है, ओर जब गिराने पर आते है तो ‘रसातल’ में डाल देते है। जननायक ताऊ देवीलाल के बाद उनके बेटे रणजीत चौटाला, पोते अजय चौटाला और पर पोते दुष्यंत की लोक निंदा व विरोध इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। वैसे हरियाणा को आयाराम गयाराम के नाम से भी जाना जाता है।

चुनावी मौसम के साथ ही हरियाणा में ‘आयाराम-गयाराम’ का दौर फिर से शुरू हो गया है। लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार शुरू हो चुका है। लोकसभा चुनावों के नतीजों के करीब चार महीने बाद हरियाणा के विधानसभा चुनावों का बिगुल बज जाएगा। ऐसे में नेताओं में इधर-उधर जाने की भागदौड़ शुरू हो गई है। बदली हुई राजनीतिक हालात के बीच सबसे अधिक राजनीतिक नुकसान करीब साढ़े 4 वर्षों तक सत्तारूढ़ भाजपा के साथ गठबंधन सहयोगी रही जननायक जनता पार्टी  को होता दिख रहा है। पहले भाजपा ने गठबंधन तोड़ा अब उसके विधायक और संगठन के नेता साथ छोड़ रहे हैं। आज भी उनके ऊपर सवाल उठाए जा रहे हैं कि वह भाजपा की ‘बी टीम’ है। राजनेता तो यहां तक आरोप लगा रहे हैं कि वह भाजपा की ‘रिजर्व टीम’ है।

सबसे ज्यादा परेशानी की बात तो यह है कि अब जनता उनकी जगह जगह पर खुलकर मुखालफत कर रही है। साढ़े चार साल सत्ता भोगने वाले दुष्यंत चौटाला का जहां गांवों में इस्तकबाल होता था, वहां आज मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं, उन्हें वापस लौटना पड़ रहा है। उपमुख्यमंत्री रहने के बाद अब जब वह सड़क पर उतरे हैं तो उन्हें पता चल रहा है कि वह क्या गवां चुके हैं। इसका उन्हें कभी सपने में भी आभास नहीं हुआ होगा। भले ही वह बड़ी-बड़ी करोड़ो की गाड़ियों में सफर करते हैं पर इस लोक निंदा ने उनको अंदर तक हिलाकर रख छोड़ा। प्रदेश की राजनीति में जिस तरह उन्होंने उन्नति के शिखरों को छुआ अब अवन्नति पर आ गए।

जजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे सरदार निशान सिंह पार्टी छोड़ चुके हैं। राष्ट्रीय महासचिव कमलेश सैनी पार्टी छोड़ चुकी है। वहीं जजपा के पांच विधायक भाजपा के संपर्क में होने की खबरें में हैं। बरवाला विधायक जोगीराम सिहाग ने जजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है, लेकिन यह बयान देकर कि लोकसभा चुनावों में वे मोदी के लिए वोट मांगेंगे, से स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा के प्रति उनका सॉफ्ट कॉर्नर है। यानी आने वाले दिनों में वे भाजपा का दामन थाम भी सकते हैं।

मनोहर सरकार में जजपा कोटे से विकास एवं पंचायत मंत्री रहे देवेंद्र सिंह बबली के भी लगातार भाजपा के संपर्क में बने रहने की सूचना है। बताते हैं कि पूर्व सीएम मनोहर लाल के साथ उनकी कई बैठकें भी हो चुकी हैं। गुहला से जजपा विधायक ईश्वर सिंह और नरवाना विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा के भी भाजपा में जाने की अटकलें हैं। इन नेताओं की भी भाजपा नेताओं के साथ लगातार बातचीत होने की सूचना है।

रामनिवास सुरजाखेड़ा तो भाजपा-जजपा का गठबंधन रहते हुए ही जजपा के खिलाफ हो गए थे। कई मौकों पर उन्होंने उस समय मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ मंच भी साझा किया। पिछले दिनों जब भाजपा ने सुभाष बराला को राज्यसभा भेजा तो रामनिवास सुरजाखेड़ा ने इसके पोस्टर लगाकर बराला को बधाई दी थी। सुरजाखेड़ा की लोकसभा चुनावों के दौरान ही भाजपा में शामिल होने की संभावना है। इसी तरह से दूसरे विधायकों की भी भाजपा में एंट्री संभव है। 

सूत्रों का कहना है कि कुछ तकनीकी कारणों के चलते अभी जजपा विधायकों को ज्वाइन नहीं करवाया जा रहा है। 18 अप्रैल के बाद कभी भी ज्वाइनिंग का दौर शुरू हो सकता है। गुहला विधायक ईश्वर सिंह की पुत्रवधू डॉ़ रेखा रानी चीका नगर पालिका की चेयरपर्सन हैं। इसी तरह से बरवाला विधायक जोगीराम सिहाग के साथ भी भाजपा नेताओं का लगातार संवाद होने की खबरें हैं। हालांकि सिहाग कई मुद्दों पर विधानसभा में भाजपा की नीतियों पर सवाल भी उठाते रहे हैं।

जजपा के चार विधायक – देवेंद्र बबली, जोगीराम सिहाग, रामनिवास सुरजाखेड़ा और ईश्वर सिंह के बीच भी कई बार बैठकें हो चुकी हैं। नारनौंद विधायक रामकुमार गौतम भी पूरी तरह से पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के खिलाफ हैं। उनके भी भाजपा के संपर्क में होने की जानकारी है, लेकिन गौतम ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। गौतम अपने बेटे रजत गौतम के भविष्य को लेकर ही फैसला करेंगे। उनके साथ भी आने वाले कुछ दिनों में ही बातचीत सैट हो सकती है।

सतविंद्र राणा ने भी छोड़ा साथ

पूर्व विधायक सतविंद्र सिंह राणा ने भी जजपा का साथ छोड़ दिया है। जजपा में साढ़े चार वर्षों से भी अधिक समय तक एक्टिव रहे राणा लम्बे समय तक कांग्रेस में भी रह चुके हैं। सतविंद्र राणा के अलावा जजपा के और भी कई नेताओं ने पार्टी छोड़ी है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जजपा के और भी कई पदाधिकारी पार्टी छोड़ सकते हैं।

दुविधा में रामकरण काला

शाहाबाद से जजपा विधायक रामकुमार काला अभी भी दुविधा में फंसे हुए हैं। 2019 में काला कांग्रेस की टिकट के प्रबल दावेदार थे लेकिन उनकी टिकट कट गई। ऐसे में उन्होंने जजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और उस समय मनोहर सरकार के राज्य मंत्री कृष्ण बेदी को शिकस्त दी। बेदी की पूर्व सीएम मनोहर लाल के साथ नजदीकियां हैं और वे पुराने भाजपाई हैं। ऐसे में काला को यहां टिकट का रास्ता आसान नहीं लगता। कांग्रेस में भी पूर्व विधायक अनिल धन्तौड़ी की फिर से वापसी होने के चलते यहां भी टिकट को लेकर बड़ी दुविधा है। इसी वजह से रामकरण काला को लेकर बड़ा सस्पेंस बना हुआ है।

निशान सिंह ने भेजा इस्तीफा

जजपा सुप्रीमो डॉ़ अजय सिंह चौटाला को टेलीफोन पर मौखिक रूप से इस्तीफा देने के बाद मंगलवार को सरदार निशान सिंह ने लिखित में भी अपना इस्तीफा अजय चौटाला को भेज दिया। वे लगभग साढ़े चार वर्षों तक जजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद पर बने रहे। अजय चौटाला ने निशान सिंह के इस्तीफे की पुष्टि करते हुए कहा, उनसे बात की जाएगी कि उन्होंने अचानक यह फैसला क्यों लिया। अजय चौटाला ने कहा, वे समझदार आदमी हैं। मेरे सामने उन्होंने कभी ऐसा कोई गिला नहीं किया। अब मिलेंगे तो उनसे पूछूंगा।

नारनौल से नगर परिषद की चेयरपर्सन व राष्ट्रीय महासचिव कमलेश सैनी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। रतिया और फतेहाबाद से भी इस्तीफे हुए। चौटाला परिवार के विश्वास पात्र एक के बाद एक लगातार पार्टी को छोड़ रहे हैं।

जंग अगर अपनों से हो तो हार जाना चाहिए… 

जजपा छोड़कर जा रहे नेताओं की भागदौड़ के बीच पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने सोशल मीडिया पर पोस्ट के जरिये सुबह कहा – जिंदगी में ये हुनर भी आजमाना चाहिए, जंग अगर अपनों से हो तो हार जाना चाहिए। वहीं पांच बजे के करीब उन्होंने एक और पोस्ट में कहा – गलियों के निशां हमारे पांव में मिलेंगे, हम तो फिर भी खड़े हमेशा गांव में मिलेंगे। साथ ही, उन्होंने उचाना हलके में ट्रैक्टर की सवारी करते हुए की फोटो भी एक्स पर शेयर की है।

कहते हैं समाज में सबसे बड़ा डर होता है लोक निंदा का। लोक निंदा जिस व्यक्ति की होनी शुरू हो जाए भले ही उसके घर में कुबेर का खजाना पड़ा हो पर समाज में जिसकी प्रतिष्ठा कम होनी शुरू हो जाती है तो शैन: शैन: वह अंदर ही अंदर घुटता रहता है। कोई भी आदमी नहीं चाहता कि समाज में उसकी निंदा हो। हरियाणा की राजनीति में लोकनायक चौधरी देवीलाल ऐसे व्यक्ति हुए जिन्होंने राजनीति को जनता से जोड़ा। उन्होंने ‘लोकराज में राज लोकलाज’ से चलता है का नारा दिया और चलाया। उन्होंने आम आदमी को यह एहसास कराया कि वही सरकार के मालिक है। इसलिए उनको जननायक की संज्ञा दी गई। इसी जननायक शब्द को अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला ने अपनी पार्टी के नाम के साथ अपनाया। पर वह पार्टी को जननायक बनाने में असफल रहे। ताऊ देवीलाल के पोते अजय चौटाला व पड़पोते दुष्यंत चौटाला लोक निंदा का शिकार हो गए। 

सबसे ज्यादा भुंडी स्थिति जजपा के साथ क्यों हो रही है। पहले परिवार में दोफाड़ हुआ फिर नई पार्टी बनाई और भाजपा को जी भरकर कोसा। जनता को दुष्यंत चौटाला में ताऊ देवीलाल की छवि दिखाई दी तो उन्होंने 10 सीट में उनकी झोली में डाल दी। भाजपा को कोसने वाले सत्ता के लालच में होने की झोली में जा बैठे। किसान आंदोलन के समय अजय चौटाला ने किसानों को गलत ठहराया था और जब भी समय मिला वह हमला करने में पीछे नहीं रहे। जनता की अपेक्षाओं पर करना उतरने वाली यह पार्टी की ऐसी दुर्गति होगी ऐसा किसी राजनीतिक विशेषज्ञ नहीं सोचा होगा। पहले भाजपा ने गठबंधन तोड़ा अब जनता उनको सुनने के लिए तैयार नहीं, जगह-जगह विरोध कर रही है। विरोध भी इतना प्रबल हो रहा है कि काले झंडे तक दिखाए जा रहे हैं।

यहां बता दे हरियाणा ने ताऊ देवीलाल को देश का जननायक बनाया। यह सच है कि ताऊ देवीलाल जनता से ज्यादा जुड़े रहते थे। जनता की भावनाओं को उनकी पकड़ थी। पर एक गलती ने उनके सारे राजनीतिक संघर्ष को खत्म कर दिया। उन्होंने लोकसभा चुनाव में रोहतक और सीकर से चुनाव लड़ा था दोनों जगह जीतने के बाद उन्होंने रोहतक सीट को छोड़ दिया। यह बात हरियाणवियों को अखर गई और उन्होंने विधानसभा चुनाव में उनको पटकनी दे दी। हरियाणा में ही उनका राजनीतिक अभ्युदय हुआ और हरियाणा नहीं उनका राजनीतिक अंत कर दिया।

एक समय पत्रकार प्रभु चावला ने अजय चौटाला से इंटरव्यू करते समय सवाल पूछा था कि ऐसा कहा जा रहा है कि चौटाला परिवार कारों की चाबी छीन लेता है तब अजय चौटाला ने कहा था कि वह तो कारों के साथ पैदा हुआ है। ताऊ देवीलाल के पास यह सुविधा नहीं थी और वह जनता से सीधे जुड़े रहते थे यहां तक कि वह साधारण बसों में भी सफर करते थे। यह स्थिति उनके पुत्र रणजीत सिंह व ओम प्रकाश चौटाला के समय भी नहीं रही। तीसरी पीढ़ी में तो ताऊ देवीलाल स्टाईली जनता से जुड़ाव धीरे-धीरे खत्म हो गया। 

इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण किसान आंदोलन में देखने को मिला जब किसान आंदोलन का रणजीत सिंह चौटाला तथा अजय चौटाला ने विरोध किया। वहीं दूसरी तरफ अभय चौटाला ने किसान आंदोलन का समर्थन किया और इस्तीफा देकर दोबारा विधायक बनकर आए। रंजीत चौटाला, अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला की तरह वह लोक निंदा का शिकार नहीं बने पर परिवार के लोगों का असर अभय चौटाला पर भी आया।

समय दोहराता है और शायद समय एक बार फिर चौधरी देवीलाल के परिवार उस स्थिति पर आकर खड़ा हो गया जो ‘ताऊ’ के साथ हुई थी।

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