बोले कोर्ट की आड़ लेने वाले अधिकारी व राजनेता पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करवा कर बनवाएं एस. वाई. एल. नहर

बोले, स्कूलों को राहत देने की बजाय उन्हें परेशान करने की नीति छोड़े अधिकारी

सभी अस्थाई एवं गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को नियमों में राहत देकर बचाव का रास्ता तलाशे सरकार

चेयरमैन नरेश सेलपाड़ ने दोहराया है यदि प्रदेश के सात हजार स्कूल बंद हुए तो 60 हजार से अधिक लोग हो जाएंगे बेरोजगार एवं पांच लाख विद्यार्थियों को कौन देगा शिक्षा

हिसार। सामाजिक संस्था राह ग्रुप फाउंडेशन के चेयरमैन व केश कलां एवं कौशल विकास बोर्ड के निदेशक नरेश सेलपाड़ ने कहा है कि सरकार का काम स्कूल खोलना है ना की स्कूलों को बंद करवाना। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेशों की आड़ लेकर कुछ अधिकारियों की हठधर्मिता व मनमानी के कारण आज प्रदेश के 7000 से अधिक स्कूल संचालक परेशान है। मजबूरन स्कूल संचालक विद्यार्थियों को दाखिला करने या विद्यार्थियों को पढ़ाने उनकी बजाय अपने स्कूलों को बचाने की जुगत में इधर-उधर भटक रहे हैं।

चेयरमैन नरेश सेलपाड़ ने कहा है कि हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट का हवाला देकर प्रदेश के छोटे व मध्यम स्कूलों को बंद करवाने पर तुले अधिकारी व राजनेता यदि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के सालों बाद भी आज एस.वाई.एल. नहर का निर्माण करवा देते हैं तो प्रदेश के सभी स्कूलों को वो परसों से ही स्वयं ही बंद करवा देंगे। उन्होंने कहा कि कोर्ट या सरकार के दर्जनों ऐसे फैसले हैं, सालों से लंबित है, मगर सरकार या अधिकारी स्कूलों को बंद करने पर तूले हैं। चेयरमैन नरेश सेलपाड़ ने कहा है कि सभी अस्थाई एवं गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को बंद करने की बजाय इन स्कूलों को राहत, ऋ ण एवं नियमों में छूट देकर निश्चित मापदंड पूरे करने में सहयोग करना चाहिए। जिससे कि इन स्कूलों को एकमुश्त मान्यता प्रदान की जा सके।

प्रेस में जारी एक ब्यान में निदेशक श्री सेलपाड़ ने कहा कि सरकार के पास ऐसे कई विकल्प हैं, जिन्हें अपना कर इन स्कूलों को बंद होने से बचाया जा सकता है, मगर अधिकारी इस दिशा में कुछ भी सुनने एवं करने को तैयार ही नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ये सभी प्राइवेट स्कूल संचालक गरीबों बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ युवाओं को रोजगार व सरकार को टैक्स दे रहें हैं, उसके बावजूद भी स्कूल संचालकों को परेशान किया जा रहा है। निदेशक श्री सेलपाड़ ने कहा कि कुछ अधिकारी नियमों का हवाला देकर ग्रामीण एवं दूर-दराज क्षेत्रों के स्कूलों बंद करने पर तुले हैं, जबकि शहरों में उनकी नाक के तले ही दर्जनों ऐसे सरकारी स्कूल है, जिनमें न तो बच्चों के खेलने के लिए मैदान हैं और ना ही निश्चित मापदंड के अनुसार पूरी जगह। इसके अलावा अधिकांश सरकारी स्कूलों में सुख सहायक एवं अध्यापकों के पद रिक्त पड़े हैं। ऐसे में अधिकारियों एवं सरकार को प्राइवेट स्कूलों को बंद करने की बजाय अपने स्कूलों की स्थिति सुधारने पर जोर देना चाहिए।

उन्होंने कहा है कि सरकार एवं अधिकारियों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ये सभी स्कूल वो पहली संस्थाएं है, जिन्होंने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपने स्कूल भवनों, स्टाफ व स्कूली वाहनों के प्रयोग करके सरकार, समाज एवं मानवता की मदद की थी। ये स्कूल संचालक वाहन टैक्स एवं दूसरे प्रकार के तमाम टैक्स अदा करने के साथ-साथ साठ हजार से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान कर रखा है। इन स्कूलों में अध्यापकों के साथ-साथ ड्राइवर, क्लर्क, चपरासी एवं सफाई कर्मी इत्यादि नौकरी करते हैं। इसलिए इन स्कूलों को बंद करने का अर्थ होगा, इन सभी 60 हजार से अधिक लोगों के घरों के चूल्हे की आग बुझाना। इन स्कूलों को बंद करने का अर्थ होगा, छह लाख से अधिक विद्यार्थियों को उनके शिक्षा के अधिकारों से वंचित करना। इससे भी आगे श्री सेलपाड़ ने कहा है कि उन्होंने कहा कि स्कूल संचालक और इनमें कार्यरत अध्यापक या दूसरा स्टाफ भी हमारे देश एवं प्रदेश के ही नागरिक हैं। ऐसे में सरकार को उनकी स्थिति एवं जरूरतों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

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