पार्टियां दे रहीं अजब-गजब जानकारी; किसी को दरवाजे पर मिले, कोई बोला डाक से आए चुनावी बॉन्ड अशोक कुमार कौशिक नई दिल्ली। देश में इन दिनों चुनावी बांड को लेकर सियासत तेज है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग ने रविवार को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा सौंपे गए सैकड़ों सीलबंद लिफाफों का खुलासा किया। इस खुलासे में चुना आयोग ने बताया कि किस पार्टी ने कितने चुनावी बांड भुनाए हैं और ये उन्हें किस-कंपनी या व्यक्ति ने दिए थे। हालांकि रविवार को जो जानकारी सामने आई वो भी बड़ी रोचक है। कई दलों ने बताया कि कोई उनके कार्यालय में बांड रख गया तो कई दलों ने बताया कि उन्हें डाक द्वारा बिना किसी नाम के चुनावी बांड मिले। वहीं कई दलों ने तो तमाम कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए चुनावी बांड देने वालों की जानकारी देने से ही इनकार कर दिया। जदयू ने दी हैरान करने वाली जानकारी इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाले चुनावी चंदे के बारे में रोचक जानकारी सामने आई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी का दावा है कि उनके कार्यालय में लिफाफे में बंद 10 करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड अज्ञात स्रोत से आए। पार्टी ने कहा कि इस बॉन्ड को भुनाने के बाद पूरे पैसे चंदे के तौर पर जदयू के खजाने में जमा हुए। इस दिलचस्प फाइलिंग में पार्टी के बिहार कार्यालय ने बताया कि उसे 3 अप्रैल, 2019 को अपने पटना कार्यालय में प्राप्त बांड के दाताओं के विवरण के बारे में जानकारी नहीं थी, और न ही उसने जानने की कोशिश की क्योंकि उस समय उस समय सुप्रीम कोर्ट से कोई आदेश नहीं था। डीएमके ने यह बताया चुनावी बांड को लेकर तमिलनाडु की पार्टी डीएमके ने बताया कि उसे सर्वाधिक चंदा एक लॉटरी फार्म के जरिए मिला। तमिलनाडु की पार्टी को फंड का लगभग 77 प्रतिशत लॉटरी किंग सैंटियागो मार्टिन के फ्यूचर गेमिंग से प्राप्त हुआ। डीएमके के अपनी फाइलिंग में बताया कि चुनावी बांड के लिए दान प्राप्तकर्ता को दानकर्ता का विवरण देने की भी आवश्यकता नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए हमने अपने दानदाताओं से संपर्क किया है। भाजपा ने कानून बताते हुए झाड़ा पल्ला वहीं, भाजपा ने विभिन्न कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए इस बात की जानकारी नहीं दी कि उसे किससे चुनावी बांड मिले। देश की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम और आयकर अधिनियम के संबंधित हिस्सों का हवाला दिया। भाजपा ने चुनावी बांड को लिखे अपने पत्र में कहा कि यह विधिवत बताया गया है कि चुनावी बांड को केवल राजनीतिक फंडिंग में धन का हिसाब-किताब लाने और दानदाताओं को किसी भी परिणाम से बचाने के उद्देश्य से पेश किया गया था। समाजवादी पार्टी बोली हमें बिना नाम के मिला चंदा वहीं, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने भी अपनी फाइलिंग में गजब की कहानी सुनाई है। सपा ने एक लाख रुपये और 10 लाख रुपये की राशि वाले बांड की जानकारी तो दी है, लेकिन बड़ी रकम वाले बांड को लेकर कहा कि उसे एक करोड़ रुपये ते 10 बांड डाक के जरिए मिले हैं। ये बांड किसने भेजे हैं इसकी जानकारी उसके पास नहीं है क्योंकि ये बिना नाम के भेजे गए थे। टीएमसी बोली-चुनावी बांड कोई हमारे ड्रॉप बॉक्स में डाल गया कुछ ऐसी ही जानकारी टीएमसी ने भी दी है। तृणमूल कांग्रेस ने अपनी फाइलिंग में बताया है कि चुनावी बांड उसके कार्यालय में भेजे गए थे। पार्टी कार्यालय के ड्रॉप बॉक्स में कोई चुनावी बांड डाल गया था। इसके अलावा टीएमसी ने यह भी बताया कि कुछ लोगों ने भी उन्हें कुछ बांड भेजे थे, इनमें से कई गुमनाम रहना पसंद करते हैं। इन क्षेत्रीय दलों नें यह बताया इसी तरह तेलुगु देशम पार्टी और बिहार की राजद ने दानदाताओं के नाम नहीं बताए हैं। दोनों ने कहा है कि उसके पास इसकी तत्काल कोई जानकारी नहीं है। वहीं, शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने भी दानदाताओं का विवरण देने में असमर्थता जताई। पार्टी ने कहा, पार्टी ने दान का विवरण नहीं रखा है। एनसीपी द्वारा चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा गया है कि उसके कई पदाधिकारी चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। ऐसे में जहां भी संभव हुआ हमने उस व्यक्ति का नाम बताया है जिसके माध्यम से पार्टी को बांड प्राप्त हुए थे। 500 पार्टियों ने कहा कि उन्हें कोई चंदा नहीं मिला देश में एक ओर जहां कई राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से करोड़ों रुपये का चंदा मिला, वहीं कई दल ऐसे भी रहे जिन्हें इस योजना के माध्यम से कोई पैसा नहीं मिला।पांच सौ से अधिक मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए सीलबंद लिफाफे में चुनावी बॉण्ड का विवरण साझा किया। निर्वाचन आयोग ने शीर्ष कोर्ट में डेटा पेश किया था और उसी ने रविवार को इसे सार्वजनिक किया। मायावती की मान्यता प्राप्त बहुजन समाज पार्टी ने आयोग को बताया है कि योजना की शुरुआत के बाद से उसे चुनावी बॉण्ड के माध्यम से कोई पैसा नहीं मिला है। मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी एक और ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है जिसे चुनावी बॉण्ड के माध्यम से कोई चंदा नहीं मिला। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में मान्यता प्राप्त राज्य स्तरीय पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने चुनावी बॉण्ड के माध्यम से भारती ग्रुप से 50 लाख रुपये प्राप्त करने का खुलासा किया है। सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) ने खुलासा किया कि उसे अलम्बिक फार्मा से चुनावी बॉण्ड के माध्यम से 50 लाख रुपये मिले। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), ऑल-इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी लेनिनिवादी (भाकपा-माले) समेत वामपंथी दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से कोई चंदा नहीं मिला। वामपंथी दलों का कहना है कि उन्होंने सैद्धांतिक तौर पर इस रास्ते से चंदा लेने से इनकार कर दिया। कुछ पंजीकृत, गैर-मान्यता प्राप्त दलों ने सादे कागज पर हाथ से लिखे नोट्स में यह घोषणा की कि उन्हें चुनावी बॉण्ड के माध्यम से कोई धन नहीं मिल रहा है। राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, एआईएमआईएम, आईएयूडीएफ, जोरम पीपल्स मूवमेंट, असम गण परिषद, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, केरल कांग्रेस (मणि), दिवंगत विजयकांत की डीएमडीके, इनेलो, तमिल मनीला कांग्रेस समेत राज्यों में सक्रिय कई दलों ने भी चुनावी बॉण्ड के माध्यम से कोई चंदा नहीं लिया है। दूसरी ओर, कुछ अन्य छोटे क्षेत्रीय दलों जैसे गोवा फॉरवर्ड पार्टी और एमजीपी को क्रमशः 36 लाख रुपये व 55 लाख रुपये के चुनावी बॉण्ड प्राप्त हुए. गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2018 से जनवरी 2024 तक 16,518 करोड़ रुपये के चुनावी बॉण्ड बेचे गए थे। Post navigation निर्वाचन आयोग डाटा में खुलासा……किस कंपनी ने खरीदे सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड? इस पार्टी को दिया दिल खोलकर चंदा आज हो सकता है नायब मंत्रिमंडल का विस्तार …….