समझिए पंजाब में इस आंदोलन का सियासी समीकरण

गांवों से आ रहा लंगर, मोर्चे ने नहीं चढ़ाया चूल्हा

बिना वारंट… किसान आंदोलन के बीच सीएम योगी ने लागू किया कानून

अशोक कुमार कौशिक 

किसान आंदोलन के 5वें दिन भी पुलिस और किसानों के बीच शंभू बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन जारी रहा। किसानों के दिल्ली कूच करने के अभियान में शंभू बॉर्डर एक बड़ा रोड़ा बन गया है। इसके चलते आज किसानों बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं के घरों का घेराव किया है। एमएसपी की मांग और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागी करने के मुद्दे पर किसान ठंड में आदोलन कर रहे हैं। गुरनाम सिंह चढ़ूनी के नेतृत्व वाले किसान संगठनों ने भी मार्च निकाला। वहीं दूसरी ओर बात पंजाब की सियासत की करें तो किसान आंदोलन का इस पर भी सीधा असर पड़ रहा है।

मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में जब साल 2021 में किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन किया था तो उसमें आम आदमी पार्टी शासित अरविंद केजरीवाल सरकार ने भी उनका समर्थन किया था। इसके चलते ही पंजाब में आप के लिए एक खास माहौल बना था और इसका बड़ा फायदा उसे 2022 के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला। आप की एकतरफा जीत हुई थी और भगवंत मान सीएम बने थे। कुछ ऐसा ही एक बार फिर हो रहा है। पंजाब सरकार किसानों के इस आंदोलन में उन्हें समर्थन दे रही है और उनकी मांगों को वाजिब भी ठहरा रही है।

पिछले आंदोलन से तुलना करें तो इसमें पहचान की राजनीति का असर देखने को मिल रहा है। जगजीत सिंह दल्लेवाल और सरवन सिहं पंढेर की लीडरशिप में दो किसान यूनियट धरना प्रदर्शन करक रही है और आंदोलन पहले से ज्यादा संगठित लग रहा है लेकिन इसमें इस बार ताकत की कमी लग रही है। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर किसान संगठनों ने इससे खुद को अलग कर लिया है। बलबीर सिंह राजेवाल, राकेश टिकैत गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे नेताओं ने किसानों को समर्थन तो दिया है लेकिन वे मार्च में सीधे शामिल नहीं हो रहे हैं। पिछली बार किसानों को अलग-अलग क्षेत्र के लोगों का समर्थन भी नहीं मिल रहा है।

बीजेपी के खिलाफ पहले दिखा था गुस्सा?

किसान आंदोलन का असर पिछली बार बीजेपी के खिलाफ लोगों के गुस्से के तौर पर देखने को मिला था। पंजाब में बीजेपी जो कभी 30 प्रतिशत तक वोट ले आती थी, उसे 2022 विधानसभा चुनावों के दौरान 18 प्रतिशत ही वोट मिले थे, जबकि आप ने 42 प्रतिशत से ज्यादा वोट पाकर सत्ता हासिल की थी। बीजेपी की हालत इतनी खराब थी कि वह पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को साथ लाकर भी महज दो ही सीटें जीत पाई थी, कैप्टन साहब खुद अपनी सीट गंवा बैठे थे।

बीजेपी अकाली गठबंधन को झटका

बीजेपी और अकाली दल के बीच तीन कृषि कानून एक बड़ा मुद्दा बने थे और इसके चलते ही उनका लंबे अरसे से चला आ रहा गठबंधन टूट गया था। माना जा रहा है कि किसान आंदोलन के फिर शुरू होने के चलते ही अकाली और बीजेपी गठबंधन होने की संभावनाएं एक बार फिर खत्म होती दिख रही है। हालांकि गठबंधन होगा या नहीं, इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है।

खराब होती छवि और डैमेज कंट्रोल की कोशिश

बीजेपी ने गांव गरीब किसानों को लाभ पहुंचाने वाली अपनी छवि बनाने की काफी कोशिशें की लेकिन किसान आंदोलन ने इसको बड़ा झटका लगा है। बीजेपी लगातार डैमेज कंट्रोल की कोशिश कर रही है और इसीलिए केंद्रीय मंत्रियों की लगातार किसानों के साथ बातचीत भी हो रही है। देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस पर सहमति बन पाती है या नहीं, क्योंकि किसान आंदोलन 2024 लोकसभा चुनावों पंजाब की सियासत में अहम हो सकता है। 

वहीं दूसरी ओर शंभू सीमा पर किसानों ने डेरा जमाया है। यहां पर सुबह से लेकर रात्रि तक लगातार लंगर चल रहा है। मगर खास बात यह है कि पंजाब हरियाणा की सीमा के गांवों से किसानों के आंदोलन को इतना समर्थन मिल रहा है कि अब लंगर बहुतायत में हो गया है। लोग इतनी सेवा कर रहे हैं कि किसान मोर्चे को अभी तक अपना चूल्हा जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ी है। किसानों का सामान जिस प्रकार आया था उसी प्रकार रखा है। वहीं कुछ गांवों के लोगों ने भी मौके पर ही चूल्हा लगाकर लंगर बनाना शुरू कर दिया है। कोई खीर वितरित कर रहा है, कोई दूध पिला रहा है, कोई कड़ी चावल, वेज पुलाव तो कोई रोटी सब्जी खिला रहा है। रोटी सब्जी में भी कोई गाजर आलू मटर की सब्जी तो कोई गोभी मटर आलू तो कोई मटर पनीर खिला रहा है। 

चाय-कॉफी और उसके साथ टोस्ट व बिस्किट भी परोसे जा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि समोसे और जूस के ब्रांडेड पैकेटों को वितरित कर सेवा की जा रही है। पानी भी ब्रांडेड कंपनियों का पिलाया जा रहा है। यह लंगर दिनभर चल रहा है, एक मिनट के भी रुकता दिखाई नहीं दे रहा है। 

सेवा करने वाले स्थानी ग्रामीणों के पास जो संसाधन हैं, किसी के पास जुगाड़ गाड़ी तो कोई रेहड़ी पर बड़े बड़े पतीले रखकर ला रहा है। वहीं अपने परिवार के साथ लोग आ रहे हैं और आंदोलन में शामिल सभी लोगों को बुलाकर प्रेम से लंगर चखने का आग्रह करते दिख रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि अब इतना लंगर हो गया है कि किसान नेता अपील कर रहे हैं कि अभी दो तीन दिन बार सेवा करने आएं। सिर्फ यह नहीं बल्कि लंगर पूरा करने के बाद सफाई भी की ज रही है।

किसान आंदोलन के बीच सीएम योगी ने लागू किया ये कानून

किसानों के इस प्रदर्शन में पंजाब हरियाणा के साथ अब उत्‍तर प्रदेश के किसान भी जुड़ चुके हैं। किसानों के इस आंदोलन के बीच यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ जो अपने सख्‍त कानून व्‍यवस्‍था के लिए जाने जाते हैं उन्‍होंने राज्‍य में छह महीने के लिए हड़ताल पर रोक लगा दी है। योगी सरकार ने यूपी में जिस कानून के तहत राज्‍य में छह माह के लिए हड़ताल पर रोक लगा दी है, वो एसेंशियल सर्विसेस मेंटेनेंस एक्ट (ESMA)है। हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब यूपी की योगी सरकार ने इस एक्‍ट को लागू कर हड़ताल पर रोक लगाई है।

इससे पहले बीते साल 2023 में जब बिजली विभाग के कर्मचारी हड़ताल पर गए थे तब योगी सरकार ने ठीक ऐसे ही हड़ताल पर रोक लगा दी थी। ये कानून यूपी के अंतर्गत आने वाले सभी निगमों, विभागों और कॉरपोरेशन पर लागू होता है।

कब लागू हुआ ये कानून

वर्ष 1968 में ये एसेंशियल सर्विसेस मेंटेनेंस एक्ट (एस्मा) कानून संसद में पास हुआ थे, इस एक्‍ट का इस्‍तेमाल करके कोई भी राज्य जरूरत पड़ने पर हड़ताल पर छह महीने तक रोक लगा सकता है।

ये कानून क्‍यों है जरूरी

अब ये सवाल उठता है कि आखिर ऐसी क्‍या जरूरत पड़ी कि वर्षों पहले सरकार को ये एक्‍ट लागू करना पड़ा। इस सवाल का जवाब ये है कि इस एक्‍ट को लाने का उद्देश्‍य देश में ट्रांसपोर्ट, मेडिकल सर्विस, बिजली आपूर्ति समेत आम जनता से जुड़ी तमाम आवश्‍य सेवाओं को जारी रखना सुनिश्चत करना था।

जानें कितना सख्‍त है ये कानून

छह महीने तक हड़ताल पर रोक लगाने के आदेश के बाद अगर कोई हड़ताल करता है तो राज्‍य सरकारें जरूरी सेवाओं को बाधित करने वालों के खिलाफ अरेस्‍ट और मुकदमा चलाने समेत ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्‍त से सख्‍त कार्रवाई कर सकती हैं।

इस कानून के लागू होते ही कर्मचारियों पर लग जाती है पाबंदी

राज्‍य सरकार द्वारा एसेंशियल सर्विसेस मेंटेनेंस एक्ट (ESMA)लागू किए जाने के बाद सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों पर विभिन्‍न तरह की पाबंदियां लग जाती है।इतना ही नहीं आवश्‍यकता पड़ने पर राज्‍य सरकार के कर्मचारी ओवरटाइम करने से भी इनकार नहीं कर सकते हैं।

कानून को तोड़ने पर मिलती है सजा

एसेंशियल सर्विसेस मेंटेनेंस एक्ट (एस्मा) कानून लागू होने के बाद अगर कोई भी सरकारी कर्मचार अग नियमों का उलंघन करता पाया जाता है तो एक साल की जेल की सजा और 1 हजार रुपये का जुर्माना सरकार लगा सकती है। इतना ही नहीं पुलिस बिना वारंट के आरोपी को अरेस्‍ट कर जेल की सलाखों के पीछे डाल सकती है।

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