सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है. राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है. नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है. चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी साल में अंसवैधानिक करार देना, केंद्र सरकार को बड़ा झटका है. कोर्ट ने कहा, “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है. चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है. राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है.” प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. मामले की सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “हम सर्वसम्मत निर्णय पर पहुंचे हैं. मेरे फैसले का समर्थन जस्टिस गवई, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा द्वारा किया गया है. इसमें दो राय हैं, एक मेरी खुद की और दूसरी जस्टिस संजीव खन्ना की… दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, हालांकि, तर्कों में थोड़ा अंतर है.” काले धन पर अंकुश लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा, “काले धन को रोकने के लिए इलेक्ट्रोल बॉन्ड के अलावा भी दूसरे तरीके हैं. हमारी राय है कि कम से कम प्रतिबंधात्मक साधनों से परीक्षण संतुष्ट नहीं होता. उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चुनावी बॉन्ड के अलावा अन्य साधन भी हैं. इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण और चुनावी ट्रस्ट के अन्य माध्यमों से योगदान अन्य प्रतिबंधात्मक साधन हैं. इस प्रकार काले धन पर अंकुश लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं है. काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन करना उचित नहीं है. संविधान इस मामले में आंखे बंद कर के नहीं रख सकता, केवल इस आधार पर की इसका गलत उपयोग हो सकता है.” फैसला सुनाते हुए CJI ने कहा… – निजता के मौलिक अधिकार में एक नागरिक की राजनीतिक गोपनीयता और राजनीतिक संबद्धता का अधिकार शामिल है.– किसी नागरिक की राजनीतिक संबद्धता के बारे में जानकारी से किसी नागरिक पर अंकुश लगाया जा सकता है या उसे ट्रोल किया जा सकता है.– इसका उपयोग मतदाता निगरानी के माध्यम से मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने के लिए किया जा सकता है.– इतिहास से पता चलता है कि वैचारिक झुकाव आदि से राजनीतिक संबद्धता का आकलन किया जा सकता है.– राजनीतिक दलों को वित्तीय योगदान आम तौर पर पार्टी के समर्थन के लिए या बदले में दिया जाता है.– अब तक कानून निगमों और व्यक्तियों द्वारा इसकी अनुमति देता है.– जब कानून राजनीतिक समर्थन दिखाने वाले राजनीतिक योगदान की अनुमति देता है तो उनकी रक्षा करना संविधान का कर्तव्य है.– कुछ योगदान गैर प्रमुख दलों का भी होता है और आम तौर पर यह समर्थन दिखाने के लिए होता है. याचिकाएं निम्नलिखित मुद्दे उठाती हैं A- क्या संशोधन अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है?B- क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है?मुद्दे 1 पर अदालतों ने माना है कि नागरिकों को सरकार को जिम्मेदार ठहराने का अधिकार है. सूचना के अधिकार के विस्तार का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सहभागी लोकतंत्र के लिए आवश्यक जानकारी भी शामिल है. राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं. चुनावी चुनावों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी जरूरी है. कोई भी व्यक्ति खरीद सकता है चुनावी बॉन्ड बांड योजना को सरकार ने दो जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया था. इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था. योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बांड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है. किसने उठाए थे चुनावी बॉन्ड योजना पर सवाल संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल रहा. पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी. Post navigation “हम वार्ता को तैयार तो आंसू गैस-रबड़ बुलेट क्यों…” : किसानों ने सरकार से पूछा वो किसान नेता जिन्होंने इंदिरा गांधी की रैली में छोड़ा था शेर, जनसभा में मच गई थी भगदड़