कहा: सुख केवल परमात्मा की भक्ति में

चरखी दादरी/रोहतक जयवीर सिंह फौगाट 

17 दिसंबर, हैरानी की बात है कि जिसने हमें सब कुछ दिया हम उसे ही भूल बैठे। दुख जब दिखता है तो परमात्मा याद आता है लेकिन सुख में सबसे पहले हम परमात्मा को ही भुल जाते हैं। अगर सुख में उसे याद कर ले तो दुख आएगा ही नहीं। सन्त हमें यही चेतावनी देने धरा पर आते हैं। यह सत्संग वाणी राधास्वामी परमसंत सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने रोहतक के गोहाना रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत के समक्ष प्रकट की। हुजूर ने फरमाया कि कहने में सब सुखी लगते हैं लेकिन वास्तविक रूप से अगर देखा जाए तो सब ही दुखी हैं। किसी को शारिरिक दुख है किसी को मानसिक तो किसी को आत्मिक।

इंसान ठोकर लगने पर एक बार तो चेतता है लेकिन फिर गाफिल हो जाता है। इंसान संसार के पदार्थो में खुशी ढूंढता है। कितने ही बड़े धनवानों से सेठ साहूकारों राजाओ से पूछ लो, कितने ही गाड़ी घोड़ो और बड़े परिवार वालो से पूछ लो सब के सब दुखी हैं। प्रश्न उठता है फिर सुख किस में है। सुख है केवल परमात्मा की भक्ति में। उन्होंने कहा कि कितने उधाहरण भरे पड़े हैं कि सच्चे सुख की चाह में कितनो ने अपना राज पाट त्याग दिया। बलख बुखारे के बादशाह ने भी प्रभु की लगन में एक पल में राज पाट त्याग दिया था। बल्ख बुखारे का बादशाह था एक दिन उसे महल की छत पर आवाज सुनाई दी उठ कर जब गया तो एक आदमी ने कहा कि मेरा एक ऊंट गुम हो गया मैं छत पर ऊट डुंढ रहा था। राजा बोला महल की छत पर भी कभी ऊटं हो सकता है क्या? आदमी बोला कि जिस प्रकार महल की छत पर ऊटं नही मिल सकता। उसी प्रकार महल मे परमात्मा नही पाया जा सकता। बादशाह को उसी वक़्त ज्ञान हो गया।

उन्होंने कहा कि जो वस्तु सालों के तप में नहीं है वो आप सत्संग की एक घड़ी में पा सकते हैं लेकिन सत्संग करे कौन। सब काल माया के मोह जाल में उलझे हैं। माया बड़ी लुटेरी है ये किसी को नहीं बख्शती। माया के फेर में केवल सन्त नहीं आते। सन्त तो माया को भी दासी बना कर रखते हैं। कुल, मान बड़ाई,  अभिमान के साथ भक्ति सम्भव नहीं है। भक्ति तो केवल कोई बिरला सुरमा ही कर सकता है जिसने अपने आपे को मार लिया। उन्होंने कहा कि काम क्रोध मोह माया त्यागे बिना भक्ति हो ही नहीं सकती। गुरु महाराज जी ने कहा कि एक बार कोई किसी के साथ दगा कर देता है तो वो जीवन भर आपका सगा नहीं हो सकता। क्यों धोखा करते हो क्यों किसी का बुरा सोचते हो। ऐसे धन की कमाई कोई काम नहीं आएगी। मृत्यु आपके सर पर खड़ी है। ये भी नहीं पता कि हाथ का ग्रास मुँह तक पहुचेगा भी या नहीं। फिर किस बात का अभिमान।

गुरु जी ने कहा कि अपने धर्म से भटके हुए को और कर्तव्यों से विमुख व्यक्ति को त्यागने में एक पल का भी विलम्ब ना करो। प्रह्लाद ने अपने पिता को त्याग दिया था। विभीषण ने अपने भाई को एक पल में छोड़ दिया। भरत ने अपनी माता का त्याग कर दिया। सन्तो की बानी भी कहती है कामी गुरु को निर्मोही माता को औऱ आलसी चेले को त्यागने में कोई बुराई नहीं है। हुजूर ने फरमाया कि जीव गुरु की बात में भी अपना स्वार्थ और मतलब देखते हैं। दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में सुथरा नाम का भोला भाला भक्त था। गुरु महाराज उस से हंसी मजाक करते थे। सुथरा एक दुकानदार को उसका बकाया देने से मना कर गया। दुकानदार गुरु साहेब के पास पहुंचा। गुरु ने भक्त से पूछा तो उसने कहा कि आप ही बानी फरमाते हो कि कितने ले ले मुकर गए तो मैं मुकर गया तो क्या हुआ। उन्होंने कहा कि मतलब ये कि गुरु के वचन को भी हम अपने स्वार्थ में मिथ्या साबित कर देते हैं। गुरु भेदभाव नहीं करता, जीव खुद भेद कर लेता है। गुरु जी ने कहा कि गुरु आपके धन का भूखा नहीं है वो तो आपके ही संसधानों से आपका ही कल्याण करवाते हैं। गुरु तो आपके हृदय रूपी दर्पण से दुनियादारी की काई को हटा कर साफ करते हैं। गुरु आपकी बाधाओं को दूर करके आपकी भक्ति के रास्ते को साफ करते हैं। अगर परमात्मा को खुश करना चाहते हो तो दिल में दया भाव जगाओ, जगत से उदास रह कर अपने जैसा जीव दूसरे को भी मानो। अपने धर्म पर अडिग रहो।

धर्म केवल किसी मत सम्प्रदाय को मानना नहीं है। धर्म तो कर्तव्यों का सही रूप से निर्वहन है। परमात्मा की मौज में रहो। भक्त हमेशा गुरु के भाने में रहता है। भला बुरा जो भी आपके जीवन में घटित हो सब गुरु की मौज जानो। हर पल गुरु के वचन में रहो क्योंकि गुरु अपने स्वार्थ की नहीं आपके भलाई की सोचता है। उन्होंने कहा कि सन्तमत की भक्ति निखालिश भक्ति है क्योंकि इसमें कोई काम नहीं छोड़ना। लखमा माली ने कबीर साहब ने रविदास जी ने कब काम छोड़ा। बस हाथ को काम में लगाये रखो और मन को राम में। गुरु जी ने फरमाया कि घरों में प्यार प्रेम बना कर रखो, बच्चों को अच्छी शिक्षा दो, मात पिता बड़े बुजुर्ग की सेवा करो। बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो।

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