-कमलेश भारतीय

आज चार राज्यों के जो चुनाव नतीजे आये वे बिलकुल वैसे ही हैं जैसे हाल ही में क्रिकेट के विश्व कप में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच खेले गये फाइनल मैच में हुआ । भारत न तो गेंदबाजी में और न ही बल्लेबाजी में कोई कमाल दिखा सका था । बिल्कुल यही हाल चार राज्यों के चुनाव परिणाम में कांग्रेस का हुआ लगता है। एक तेलंगाना को छोड़कर मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का बिल्कुल वही हश्र हुआ क्योंकि कांग्रेस का न हाईकमान प्रभावशाली रहा औरों न ही इन राज्यों में संगठन ही मजबूत हैं। सुबह आठ बजे से लेकर ग्यारह बजे तक ही रूझान स्पष्ट होने लगे थे। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच छत्तीस के आंकड़े ने यानी गुटबाजी ने भी आग में घी का काम किया ।

हालांकि राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस में सिर्फ एक प्रतिशत का ही अंतर बताया गया लेकिन इस मामूली से अंतर ने भाजपा को सत्ता में वापसी दिला दी और हर बार सरकार बदलने का रिवाज भी बनाये रखा जनता ने। सबने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादू नहीं चल पाया । राजस्थान में कुछ दिग्गज नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा। कुछ मंत्री भी हार गये।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बड़ी आशायें थीं लेकिन वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी । पिछले चुनाव में कांग्रेस बहुमत बेशक पा गयी थी लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के भीतरघात ने सरकार गिराने का काम किया था। इस बार तो कांग्रेस सौ का आंकड़ा भी नहीं छू पाई। राजस्थान में भी सौ से नीचे ही फिसल गयी । मध्यप्रदेश में भाजपा के विरूद्ध हवा का रुख नज़र नहीं आया । यही कहा जाता रहा कि मध्यप्रदेश मोदी के दिल में है और मोदी के दिल में मध्यप्रदेश! मुख्यमंत्री पद के दावेदार कमलनाथ के छिंदवाड़ा क्षेत्र में ही सिर्फ बाइस सीटें मिलीं यानी भाजपा से सिर्फ दो सीटें ज्यादा! छत्तीसगढ़ में कुछ घंटे तक भाजपा व कांग्रेस में बराबरी का मुकाबला चलता रहा लेकिन आखिरकार बाजी भाजपा के हाथ ही लगी । वह भी काफी अंतर से। वहाँ कहते हैं कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह बघेल का अतिविश्वास हार का बड़ा कारण माना जा रहा है। वहां भी एक प्रकार से रिवाज ही रहा।

राजस्थान व छत्तीसगढ़ः में रिवाज कायम रहा यानी हर बार सरकार बदलने का रिवाज। इन चार राज्यों में कांग्रेस के लिये राहत व खुशी की खबर तेलंगाना ही लेकर आया जहां इसे बहुमत मिला। वहाँ जरूर मौजूदा सरकार के विरुद्ध हवा ने कांग्रेस का साथ दिया। जब से तेलंगाना बना तब से मेरे ख्याल में पहली बार कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर मिला है। तेलंगाना का गठन कांग्रेस ने ही किया था। इस तरह यदि इन राज्यों के चुनावों को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जाये तो इसमें कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के हाथ हार ही लगी है। बेशक छह दिसम्बर को बैठक बुलाई गयी है। हार पर विचार व मंथन किया जायेगा।

कांग्रेस के लिए हरियाणा में भी ये चुनाव परिणाम खतरे की घंटी से कम नहीँ हैं क्योंकि यहां भी शीर्ष नेताओं में गुटबाजी की कमी नहीं बल्कि एक दूसरे के खिलाफ खुलकर बयानबाजी आम सी बात हो गयी है।

कहा जा रहा है कि ये चुनाव परिणाम तीन के मुकाबले एक से बुरी तरह कांग्रेस हारी है। कांग्रेस को गंभीर मंथन की जरूरत है। जिन दिनों राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे थे तब यही बात विपक्षी नेता बार बार कह रहे थे कि भारत जोड़ो से पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा करनी चाहिए। यह बात इन चुनाव परिणामों से सामने आ गयी है कि पहले कांग्रेस के भीतर गुटबाजी खत्म करो तब चुनाव जीतने की रणनीति बनाओ। अभी हरियाणा की ओर ही समय पर ध्यान देने की जरूरत है। अगले साल चुनाव हैं। कांग्रेस हाईकमान को नज़र रखनी पड़ेगी। विपक्ष को भी एकजुट होने पर सोचना होगा नहीं तो चुनावों से पहले ही परिणाम सामने है। कांग्रेस सिर्फ तेलंगाना की जीत की खुशी मना सकती है। शेष तीन राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा और छत्तीसगढ़ में तो जीतते जीतते लुढ़क गयी। क्या इन चुनाव परिणामों से कांग्रेस और विपक्ष कोई सबक लेगा या वही ढाक के तीन पात की तरह रहेगा? कहिये क्रिकेट के फाइनल जैसा हाल रहा या नहीं? कांग्रेस सीरीज तीन एक से बुरी तरह हार गयी।

error: Content is protected !!