-कमलेश भारतीय

खुशी है कि हिसार में पच्चीस वर्ष की कुछ यादों पर अनेक तरह की प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिससे यह साबित हुआ कि कितनी गहराई से इसे पढ़ा गया और कितनी जिम्मेदारी है ऐसा लिखना । सबसे पहले मनोज छाबड़ा ने कहा कि पच्चीस साल की यादें और सामान ज्यादा है जबकि लिखा कम गया है। अशोक मोनालिसा की इच्छा है कि इन सालों में मैं जिन लोगों से मिला उनके बारे में मेरे क्या विचार हैं? यह भी लिखूं। ताराचंद ने मुक बथिर स्कूल में पढ़ रहे अपने प्रतिभाशाली बेटे नितिन व उसके अध्यापक दीपक की याद दिलाई। नितिन कराटे और पेंटिंग में अनेक पुरस्कार जीत चुका है। दीपक और नितिन कला प्रदर्शनियों में खूब रंग जमाते हैं। इस भूल को स्वीकार करता हूँ जो तुरंत ध्यान में नहीं आई। इसी प्रकार राकेश मलिक ने एकता भ्याण की याद दिलाई, जो व्हील चेयर पर होने के बावजूद अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हैं और अंग्रेज़ी में कविताएँ भी लिखती हैं जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पच्चीस लाख रूपये देकर हौंसला बढ़ाया । अनिता कुंडू, मनीषा पायल, रीना भट्टी, कविता दूहन व शिवांगी पाठक पर्वतारोहण के लिए उल्लेखनीय नाम हैं। इनकी याद भी आई। एकता भ्याण और अनिता कुंडू मोटिवेशनल व्याख्यान भी देती हैं।

सुशील बुड़ाकोटी ने साहित्य में डा लक्ष्मी नारायण सारस्वत और डा रामकुमार भारद्वाज व उनकी पत्नी के साहित्य में योगदान की भूल की ओर रेखांकित किया। विनोद नागपाल ने रंगकर्मियों अरविंद , गुट्टा, महेश कुकरेजा, सुशीला शर्मा, नरेश भारती व अपने योगदान की ओर ध्यान दिलाया।

सुरेंद्र सिंह संधू ने फतेह चंद महिला महाविद्यालय के योगदान सहित हरजीराम स्कूल, डी ए वी आर्य , वेद स्कूल, ब्लूमिंग डेल्ज,लाहौरिया स्कूल व सी ए वी स्कूल, जाट स्कूल,सूर्य नगर क्षेत्र में राजपाल सिंधु के स्कूल होली चाइल्ड स्कूल सहित कितने ही स्कूलों का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान की ओर संकेत किया । फतेह चंद महिला महाविद्यालय की खिलाड़ी कृष्णा पूनिया राजस्थान में विधायक बनीं और इस बार भी मैदान में हैं। कुछ स्कूल अब भी छूट रहे होंगे जैसे आर्यन स्कूल और तलवंडी राणा का अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल । सुरेंद्र सिंधु का आभार। वैसे पहले आलेख में साहित्य पर मेरा ध्यान केंद्रित था। ये हिसार के स्कूल ही थे जिनमें से विष्णु प्रभाकर व आजकल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित अनेक नामचीन लोग पढ़कर निकले । अब भी डीएन महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य आई जे नाहल का साहित्य में योगदान भूलने जा रहा था । उन्हें आवाज का जादूगर भी कहा गया। दिनेश नागपाल क्रिकेट कमेंट्री करते रहे। बालकृष्ण भारती भी याद आ रहे हैं। रिम्पी लीखा, पूनम मनचंदा, नीरज मनचंदा, सरोज श्योराण और सविता रतिवाल का जिक्र भी कर रहा हूं जो छूट गये थे ।

इसी प्रकार आकाशवाणी के विनोद मेहता, अवतार पाराशर, राकेश पाहवा व रूप चांदनी की याद बेटी रश्मि ने दिलाईं । विनोद मेहता ने उद्घघोषकों के हिंदी उच्चारण पर बहुत ध्यान दिया। रूप चांदनी कुछ वर्ष पहले विदा हो गयीं।

आकाशवाणी केंद्र जब शुरू हुआ तब खूब चहल पहल होती थी। यहीं से रोहित सरदाना निकले जो जीटीवी से आज तक पहुँचने में कामयाब रहे। आजकल पवन कुमार आकाशवाणी के प्रभारी हैं और खूब पौधारोपण करवा कर इसे हरा भरा करने में जुटे हैं।। हिसार में दूरदर्शन भी बना लेकिन इसे चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया है। कुछ संस्थायें इसे वापिस लाने के लिए प्रयासरत हैं और लगातार धरना दे रही हैं । पहले निदेशक एस एस रहमान रहे और यहां जगजीवन राम, जवाहर सिंह, कीमती लाल, कुलदीप खंगारोत, रजत शर्मा भी रहे। कैमरामैन नरेश शुरू के दिन से अंतिम समय तक रहे । विष्णु प्रभाकर व चौ रणबीर सिंह पर दस्तावेजी फिल्में बनाई गयीं। हरियाणावी संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम और कृषि दर्शन आदि भी उल्लेखनीय रहे। समाचार संपादकों के तौर पर अजीत सिंह और बाद में पंकज शर्मा का खूब योगदान रहा। इसे बंद करते समय पवन कुमार ही आकाशवाणी और दूरदर्शन के एकसाथ प्रभारी थे। वैसे तो देश को जीटीवी हिसार के सुभाष गोयंका ने दिया और मीडिया मुगल के रूप में जाने जाते हैं। एक बार हरियाणा से राज्यसभा के लिए भी चुने गये । सिटी केबल न्यूज़ का भी एक समय खूब जलवा रहा। शशि नायर और रोहित न्यूज देख रहे हैं। कुछ समय विवेक कुमार भी रहे। वैसे पत्रकारों के संसार का पूरा जिक्र फिर कभी सही !

कुछ समाजसेवी तुरंत धयान में आ रहे हैं जैसे मोक्षाश्रम की संचालिका श्रीमती पंकज संधीर और उनके सहयोगी भृगु। पंकज संधीर को तो आश्रम में मां कहते हैं। इनसे पहले श्रीमती कृष्णा भार्गव व शांति तायल के नाम रहे ‌।

रक्तदान शिविर लगाने वालों में वेद झंडई व अमरदीप खालसा और विकास लाहौरिया प्रमुख नाम रहे। वेद झंडई कुछ दिन पहले ही अपनी जीवन यात्रा पूरी कर गये। अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने अनेक बार रक्तदान किया। इनमें एक शमीम शर्मा हैं जो पचास बार के आसपास रक्तदान कर चुकी हैं। सुरेंद्र छिंदा बेटी बचाओ के लिए प्रदर्शनियां लगाते रहे हैं। जिनके दो दो बेटियां हैं, उन्हें समय समय पर लायंस क्लब के सुशील खरींटा के साथ मिलकर सम्मानित भी करते रहे। सुशील खरींटा अब हमारा प्यार हिसार चला रहे हैं। त्रिलोक बंसल भी हर क्षेत्र में समाज के लिए जुटे रहते हैं।समाजसेवी संस्थाओं पर भी कभी अलग से लिखने का मन है। कितना कुछ आज भी रह गया होगा। मेरी भूल याद दिलाते रहिये। फिर लिखूँगा ।

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