गुरुकुल के 111वें वार्षिक महोत्सव का शानदार आगाज, गुजरात एवं हरियाणा के राज्यपाल बढ़ाएंगे समारोह की शोभा

मानवीय संबंधों की गरिमा को समझें वही सच्ची शिक्षा : डाॅ. विद्यालंकार।
शिक्षा, संस्कृति एवं राष्ट्र रक्षा सम्मेलन में वक्ताओं ने अपने विचार रखे। बच्चों ने विज्ञान प्रदर्शनी, व्यापार मेला तथा अनेक रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 2 नवम्बर : गुरुकुल कुरुक्षेत्र के 111वें वार्षिक महोत्सव का आज ‘शिक्षा संस्कृति एवं राष्ट्र रक्षा सम्मेलन’ के साथ शानदार आगाज हुआ। समारोह में आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री उमेद सिंह मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे। राज्यपाल गुजरात के ओ.एस.डी. डाॅ. राजेन्द्र विद्यालंकार जी समारोह में मुख्य वक्ता रहे।

गुरुकुल में पहुंचने पर प्रधान राजकुमार आर्य, उप प्रधान मास्टर सतपाल जी, निदेशक ब्रिगेडियर डाॅ. प्रवीण कुमार, प्राचार्य सुबे प्रताप एवं व्यवस्थापक रामनिवास आर्य ने सभी अतिथियों का पुष्प-गुच्छ भेंट कर अभिनन्दन किया, विज्ञान-प्रदर्शन के उद्घाटन के साथ कार्यक्रम आरम्भ हुआ। इस अवसर पर आर्य बाल भारती स्कूल पानीपत के प्रधान आर्य रणदीप कादियान, मुख्य संरक्षक संजीव आर्य, आचार्य दयाशंकर शास्त्री व अन्य अध्यापक व संरक्षकवृन्द उपस्थित रहे। बता दें कि दो दिवसीय इस महोत्सव में कल दिनांक 3 नवंबर 2023 को गुजरात के राज्यपाल आचार्य श्री देवव्रत अध्यक्ष और हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय जी मुख्य अतिथि के रूप में पधार रहे हैं।

विज्ञान प्रदर्शनी के भ्रमण के उपरान्त सभी अतिथिगण कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे जहां कोच बलबीर सिंह के नेतृत्व में शूटिंग के छात्रों द्वारा बेहतरीन निशानेबाजी एवं ‘सुर से सुर मिलाकर गाएं’ गीत द्वारा उनका स्वागत किया। ब्रह्मचारी चिराग ने गुरुकुल के संस्थापक स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन-परिचय को संस्कृत भाषा में प्रस्तुत किया। वहीं ब्रह्मचारी अमन, अंशुल व आदित्य ने प्राकृतिक कृषि पर शानदार नाटक प्रस्तुत किया जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। ब्रिगेडियर डाॅ. प्रवीण कुमार ने गुरुकुल की विभिन्न उपलब्धियों का जिक्र करते हुए अभिभावकों को आश्वस्त किया कि गुरुकुल परिसर में उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हैं, यहां से बच्चे एनडीए, आईआईटी, एनआईटी, नीट आदि क्वालिफाई कर अपने सपनों को साकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि युवा इस देश की शक्ति है और युवाओं की ऊर्जा का सही दिशा में उपयोग करना शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी है। शिक्षण संस्थानों का यह तय करना होगा कि वे युवाओं को किस प्रकार की शिक्षा देकर समाज व राष्ट्र के निर्माण में उन्हें सहयोगी बना सकते हैं।

डाॅ. राजेन्द्र विद्यालंकार ने अभिभावकों की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि दुनिया में सबसे कठिन कार्य एक अभिभावक होना है। एक बच्चे का ठीक से पालन-पोषण करना सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि आज समाज में अनेक तरह की कुरीतियां फैली है जिनसे अपने बच्चों को दूर रखना हर अभिभावक के लिए कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल कैम्पस में पढ़ने वाला प्रत्येक छात्र और उसके अभिभावक भाग्यशाली है क्योंकि यहां बच्चों को उस दूषित वातावरण से न केवल बचाया जाता है बल्कि उन्हें अक्षरज्ञान के साथ संस्कारों की ऐसी पूंजी सौंपी जाती है जिससे वे अपने परिवार, समाज व राष्ट्र का गौरव बने। उन्होंने कहा कि मानवीय संबंधों की गरिमा को जो समझे, वही सच्ची शिक्षा है। उन्होंने कहा कि महामहिम राज्यपाल आचार्य श्री देवव्रत गुरुकुलों में पढ़ने वाले छात्रों के भविष्य को लेकर हमेशा विचारशील रहते हैं, वे भले ही शारीरिक रूप से हमारे साथ न हों मगर गुरुकुलों की पल-पल की अपडेट वे लगातार लेते रहते हैं।

इससे पूर्व आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री उमेद सिंह ने गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली और वर्तमान शिक्षा नीति के भेद को समझाते हुए अभिभावकों से अपने बच्चों को गुरुकुलों में भेजकर संस्कारवान् बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति से ही बच्चों को शिक्षित कराने पर बल दिया। उनके मानसपुत्र स्वामी श्रद्धानन्द जी ने ही वर्ष 1912 में इस गुरुकुल की स्थापना की थी जो आज देश-दुनिया में अलग पहचान रखता है। उन्होंने कहा कि केवल रोजगार उपलब्ध कराना शिक्षा का उद्देश्य नहीं होना चाहिए बल्कि संस्कृति और देश की रक्षा व एक उन्नत समाज का निर्माण शिक्षा के मूल में होना आवश्यक है।

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