पिछले पांच सालों के विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड बताया है यह
हरियाणा में भूपेंद्र यादव को पैराशूट से बनाया जा सकता है सीएम
क्या दक्षिणी हरियाणा की राजनीति में होगा जबरदस्त बदलाव
 एमपी में सिंधिया व तोमर में से किसकी होगी ताजपोशी

अशोक कुमार कौशिक 

आखिर बीजेपी चुनावों से पहले अपने सीएम कैंडिडेट क्यों बदल देती है इसका जवाब मिल गया है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि चुनावों से पहले जिन राज्यों में बीजेपी ने अपने सीएम फेस बदल दिए थे उनमें ज्यादातर में उसको जीत मिली थी। इस बात के पीछे बीते सालों में हुए चुनाव के तथ्य भी हैं कि पार्टी ने जहां पर अपना सीएम बदला उन ज्यादातर जगहों पर उसको जीत मिल गई। अब चर्चा जोरों पर है कि हरियाणा मध्यप्रदेश मैं इसी फार्मूले को अपनाया जाएगा। सूत्र बताते हैं कि भाजपा आने वाले रविवार से इस पर मोहर लगा सकती  है। दोनों राज्यों में चेहरा बदलने बात जोर पकड़ने के बाद यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि दोनों राज्यों में नया सीएम कौन होगा।

आंकड़े कहते हैं कि जिन राज्यों में बीजेपी ने पिछले पांच सालों में सीएम फेस नहीं बदला उन राज्यों में उसको बहुमत नहीं मिला है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी ने सीएम फेस नहीं बदला और इन राज्यों में बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने में नाकाम रही।

‘इन राज्यों में नहीं बदला था सीएम तो हुई थी करारी हार’

उदाहरण के तौर पर 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था जिसमें उसकी हार हो गई थी। इसी तरह 2018 में ही छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में जब रमन सिंह सीएम थे तब हुए चुनाव में रमन सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। यहां भी बीजेपी चुनाव हार गई थी।

इसके अलावा राज्य में 2005 से लेकर 2018 तक सीएम रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी राज्य में करारी हार हुई थी। विशेषज्ञों का कहना था कि भले ही शिवराज की राज्य में पकड़ थी लेकिन 2018 विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां बदली हुईं थी लिहाजा बीजेपी को राज्य में बहुमत नहीं मिल सका। ऐसा ही हाल बीजेपी के साथ 2019 में महाराष्ट्र चुनाव में हुआ था जहां पर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी तो बनी थी लेकिन उसको स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका।

जिन राज्यों में बदला सीएम फेस वहां क्या हुआ?

वहीं अगर बीजेपी की बात करें तो हम पाएंगे कि बीजेपी ने गुजरात से लेकर उत्तराखंड तक जिन राज्यों में भी सीएम बदला उन दोनों ही जगहों पर उसने जीत हासिल की। उदाहरण के तौर पर गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने आनंदीबेन पटेल की जगह विजय रूपाणी को सीएम बनाया था। 

जिस वजह से बीजेपी ने राज्य में चुनाव जीत लिया था और उसके बाद 2022 में हुए चुनाव में रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल राज्य के सीएम बने थे। इसी तरह बीजेपी ने उत्तराखंड में भी चुनाव से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को राज्य की सत्ता सौंपी थी। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है सत्तासीन चेहरे को लेकर जनता में रोष की लहर होती है। एंटी इनकंबेंसी को देखते हुए हरियाणा व एमपी में इस फार्मूले को लागू किया जाएगा? सूत्र बताते हैं कि आने वाले रविवार को भाजपा इस पर मोहर लगा सकती है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हाल ही में दिल्ली तलब किया गया था जिसमें उन्हें इस प्रकार के संकेत दे दिए गए बताए जा रहे हैं। 

मध्य प्रदेश में नया मुख्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया होंगे या नरेन्द्र तोमर अभी से कयास लगने शुरु हो गए। यह दोनों नेता ग्वालियर और गुना क्षेत्र से आते हैं। क्या बीजेपी इस क्षेत्र में वास्तव में धरातल पर चली गई है। यहां एक खतरा भाजपा के सामने मुंह बाए खड़ा है अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान दी जाती है तो नरेंद्र तोमर कही‌ साइलेंट ना हो जाए। कर्नाटक वाली स्थिति भाजपा यहां दोहराना नहीं चाहती। अगर नरेंद्र तोमर को ताज पहनाया जाता है तो सिंधिया की ईगो आहत होगी। ऐसी स्थिति में सिंधिया उत्तेजना में कोई दूसरा निर्णय ना ले ले, इसको लेकर भी भाजपा सचेत है। सुनने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री बदलने के बाद शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। वैसे मध्यप्रदेश में एक बार फिर से व्यापम घोटाला हवा में तैर रहा है। कांग्रेस नित्य प्रति शिवराज सिंह चौहान पर आरोपों की बौछार कर रही है।

यूं तो हरियाणा में काफी समय से नेतृत्व परिवर्तन की बात हवा में तैर रही है। पर इस बार सुनने में आ रहा है कि हरियाणा में पैराशूट से लैंडिंग कराई जा रही है। इस पैराशूट लैंडिंग में भूपेंद्र यादव का नाम लिया जा रहा है। वह राजस्थान के अजमेर से आते हैं तथा हरियाणा की राजनीति में उनका सीधा दखल नहीं या यूं कहे कि हरियाणा की सक्रिय राजनीति से दूर रहे हैं। उनके पास राजस्थान का प्रभार है। वह पार्टी में महासचिव हैं तथा मोदी अमित शाह के खासम खास है। भाजपा उनकी हरियाणा में ताजपोशी करके यादव वोटों का राजस्थान में फायदा उठाने की चाहत में है। राजस्थान जीतने के लिए उन्हें कुलदीप बिश्नोई दुष्यंत चौटाला के साथ साथ अन्य नेताओं से कोई परहेज नहीं है। भुपेंद्र यादव को पिछले काफी समय से अहीरवाल के दिग्गज राव राजा इंद्रजीत सिंह के मुकाबले में तैयार किया जा रहा है। वैसे भूपेंद्र सिंह यादव ने दक्षिण हरियाणा में अपनी सक्रियता पिछले काफी दिनों से बढ़ा दी है और उन्होंने यहां अपना आवास भी बना लिया है। अगर भूपेंद्र यादव की ताजपोशी होती है तो इसका दक्षिण हरियाणा की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा संभवतः राव इंद्रजीत सिंह भाजपा से छिटक जाए। 

कुछ समय पहले प्रदेश के गृहमंत्री अनिल विज का नाम जोरों से उछला था। प्रदेश की राजनीति में अनिल विज सुपर सीएम की तरह दरबार लगाते हैं। वह खांटी जनसंघी है और जनता में उनकी छवि इमानदार नेता की बरकरार है।

विगत में एक नाम और चला वो चौधरी बिरेंदर सिंह का था । चौधरी बिरेंदर सिंह ने कांग्रेस हुड्डा की मुखालफत में छोड़ी थी। भाजपा को इसी वजह से ज्वाइन किया गया था कि हुड्डा के विरोध के चलते उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। उनकी आज स्थिति यहां तक हो गई कि उन्हे उचाना सीट से अपनी पत्नी प्रेमलता की सीट को लेकर कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। इस सीट को लेकर अब बड़ा विवाद पैदा हो गया। गठबंधन के सहयोगी दुष्यंत चौटाला का भी इस सीट पर दावा है क्योंकि वह यहां से वर्तमान में विधायक है। जाट नेता में प्रदेश प्रभारी ओमप्रकाश धनखड़ का भी नाम चला था लेकिन वह अपने क्षेत्र से चुनाव हार गए थे इसलिए उनका नाम ठंडे बस्ते में चला गया। 

भाजपा गैर जाट की राजनीति करती है। गैर जाट राजनीति में एक ओर नाम है राव इंदरजीत सिंह का। जो कांग्रेस के समय से ही अहीरवाल को प्रदेश का नेतृत्व देने के लिए लड़ाई लड़ते आए हैं। कांग्रेस से भाजपा में उनका आना ही अहीरवाल में चौधर लाने को लेकर था। वह भुपेंद्र यादव के सख्त विरोधी हैं। राव राजा के लिए कहा जाता है कि वह अपने मन की बात कभी जाहिर नहीं होने देते। अगर भूपेंद्र यादव की ताजपोशी होती है तो दक्षिणी हरियाणा की राजनीति में भूचाल आ सकता है और संभवत है जिस फायदे को लेकर भाजपा ताजपोशी कर रही है कहीं उसे ज्यादा उसको दक्षिण हरियाणा में नुकसान न उठाना पड़ जाए।

हालांकि देश की इलेक्टोरल राजनीति को समझने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी राज्य में चुनाव जिताने वाले और हराने वाले कई फैक्टर होते हैं। इन फैक्टर में कई ऐसी होती हैं जिससे कई राज्यों में सत्ता बनती और बिगड़ती है। तो वहीं वोटिंग के दौरान इस बात का भी बहुत महत्व होता है कि आखिर चुनाव जीतने के बाद कौन सा चेहरा सरकार का नेतृत्व करेगा।

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