रामविलास शर्मा ने लिया था जजपा गठबंधन का पक्ष
मुख्यमंत्री और दुष्यंत लगातार गठबंधन के मजबूत होने का दावा करते रहे
दुष्यंत को भाजपा की हां, इनेलो को कांग्रेस की ना, जयंत चौधरी करेंगे संघर्ष
इनेलो नहीं बन पा रही विपक्षी गठबंधन का हिस्सा क्योंकि कांग्रेस के सभी गुटों को इनेलो से परहेज़ 
अब चौ बीरेन्द्र सिंह को सोचना होगा, उनके नए कदम पर रहेगी सबकी निगाह

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन टूटने को लेकर चल रही तमाम अटकलों पर भाजपा हाईकमान ने विराम लगा दिया है। भाजपा ने मंगलवार को दिल्ली में होने वाली एनडीए की बैठक में न्योता देकर साफ कर दिया है कि हरियाणा में भाजपा-जजपा का गठबंधन बरकरार रहेगा। दुष्यंत चौटाला की जजपा और भाजपा के गठबंधन पर एनडीए की मोहर, इसके फायदे किसे होंगे और नुकसान किसको होगा। जयंत चौधरी ने भाजपा के साथ ना जाकर राहुल संग जाने का फैसला लिया है, ये किस तरह का कदम है और इनेलो विपक्षी दलों के संग चाहकर भी नहीं जा पा रही है तो इसमें आगे उसकी क्या संभावनाएं बनती हैं। साथ ही ये भी संकेत हैं कि दोनों पार्टियां 2024 का लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ें। हालांकि, सीटों के बंटवारे आदि को लेकर अभी कुछ तय नहीं हो पाया है। बैठक में गठबंधन और लोकसभा चुनावों की सीटों को लेकर फैसला हो सकता है।

एनडीए की बैठक में शामिल होने का न्योता मिलने से जजपा के नेता उत्साहित हैं। बैठक में पार्टी के संस्थापक डा. अजय सिंह चौटाला और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला हिस्सा लेंगे। उधर, जजपा को न्योता मिलने के बाद से एक बार फिर निर्दलीय विधायकों के चेहरे मुरझा गए हैं। पिछले दिनों हरियाणा भाजपा के प्रभारी बिप्लब देब ने जजपा पर खुलकर तीर छोड़े थे। इतना ही नहीं देब ने सभी निर्दलीय विधायकों के साथ एक-एक करके बैठक की थी और गठबंधन को लेकर फीडबैक लिया था। सभी निर्दलीय विधायकों ने गठबंधन तोड़ने की बात कही थी और खुलकर सरकार का साथ देने का दावा किया था। जिस समय गठबंधन में खटास की खबरें शुरुआती दौर में आनी शुरू हुई थी उसी समय भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा ने जनता के साथ गठबंधन को उचित ठहराया था।

बताया जाता है कि उस समय निर्दलीयों को सरकार में अहम पदों पर समायोजित करने की बात हुई थी। तभी से निर्दलीय विधायक गठबंधन टूटने का इंतजार कर रहे हैं। फिलहाल निर्दलीय विधायकों में से रणजीत सिंह बिजली मंत्री हैं और नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंदर वन विकास निगम के चेयरमैन हैं। शेष विधायकों को एक बार चेयरमैन बनाने के बाद दोबारा से कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया।

हालांकि, मुख्यमंत्री मनोहर लाल और दुष्यंत चौटाला लगातार गठबंधन के मजबूत होने का दावा करते रहे हैं। अब भाजपा हाईकमान की ओर से जजपा नेताओं को बैठक में बुलाए जाने से गठबंधन की चर्चाओं पर विराम लग गया है।

शीर्ष नेतृत्व करेगा लोकसभा चुनावों को लेकर फैसला : दुष्यंत

एनडीए की बैठक में जजपा को बुलाया गया है, ये अच्छी बात है। डॉ. अजय चौटाला इसमें हिस्सा लेंगे और दूसरा सदस्य साथ में कौन होगा, इसका फैसला भी वह खुद लेंगे। जहां तक गठबंधन की बात है तो मैं पहले भी कहता रहा हूं कि मजबूत है। हम दोनों दल सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। न तो हमारे मन में कोई शंका है और न मनभेद-मतभेद हैं। 2024 में लोकसभा चुनाव हैं। दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व इस पर फैसला करेगा कि चुनाव में कैसे गठबंधन आगे बढ़ेगा। सीटों की बंटवारे आदि को लेकर बातें भविष्य की हैं।

पहले बात करते हैं जजपा और भाजपा के गठबंधन टूटने की कई दिन से चली आ रही खबरों पर आज पूरी तरह से विराम लगने पर। दोस्तों, राजनीति में कई बार स्थिति होलिका दहन के समय प्रह्लाद जैसी हो जाती है। यही हालात भाजपा में से जजपा को निकालने वालों की हो गई है और आज उस बात पर हमेशा के लिए विराम लग गया है कि भाजपा- जजपा गठबंधन कब टूटेगा क्योंकि कांग्रेस के झंडे तले देशभर की विपक्षी पार्टियों के सामने भाजपा के साथ ज्यादा से ज्यादा पार्टियां दिखाने की मजबूरी में भाजपा ने जननायक जनता पार्टी को एनडीए का हिस्सा बना लिया है। जजपा के नेता और दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला एनडीए की बैठक में हिस्सा ले रहे हैं।

इसी के साथ भारतीय जनता पार्टी में हरियाणा ईकाई में जो लोग हर हाल में जजपा से पीछा छुड़ाना चाहते थे उनको शांत बैठना होगा या कांग्रेस के साथ मिलकर कुछ नया खेल खेलना होगा क्योंकि एनडीए का हिस्सा बनने के बाद भले ही लोकसभा में जजपा को एक या दो सीट मिले फायदे में वही रहने वाली है और ये सीटें भी संभावना इसी बात की है कि भिवानी महेंद्रगढ और हिसार या सिरसा में से ही एक हों। इसी तरह विधानसभा में भी जजपा सीटें बांटेंगी तो निश्चित ही जितने टिकटें भाजपा उसको देगी उतनी ही जगहों पर भाजपा के प्रत्याशी लावारिश हो जाएंगे और दूसरी पार्टियों में जाना उनकी मजबूरी हो जाएगा। चौधरी बीरेंद्र सिंह जो जजपा के खिलाफ अभियान की अगुवाई कर रहे थे उनको सोचना पड़ेगा कि अब उन्हें क्या करना है? वैसे उन्होंने संकेत देने शुरू कर दिए गए वह कुछ नया करने वाले हैं। उनकी भाभी घोषणा को लेकर सबकी निगाहें उनके ऊपर लगी हुई है। बिप्लब देब या धनखड वगैरह तो रातों रात अपनी स्टेटमेंट बदल लेंगे उन्हें कोई दिक्कत नहीं है कि ये कहने में कि केंद्रीय नेतृत्व ने जो किया है सोच समझकर ही किया होगा।

वहीं अगर देश की देखें तो कुल मिलाकर पूरे देश में सूरत ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा के साथ 29 दल तो राहुल गांधी की कांग्रेस के साथ 26 दल दिखाई दे रहे हैं। अभी जैसे जैसे मीटिंगें होगी वैसे वैसे देश की तमाम राजनीतिक पार्टियां दो धडों में बंट जाएंगी। एक धडा वो होगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना चाहता है और एक धडा वो होगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सत्ता में लाना चाहता है। 

चौधरी चरण सिंह के पोते और चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी के भाजपा के साथ जाने की अफवाहों और अटकलों पर भी आज विराम लग गया है क्योंकि जयंत चौधरी ने विपक्षी दलों के साथ जाने का रास्ता चुना है और वो बेंगलुरु पहुंच गए हैं। ये बहुत ही मुश्किल रास्ता है। काफी समय से उनके भाजपा में जाने और उत्तर प्रदेश मे उप मुख्यमंत्री तक बनाने की बात हो रही थी लेकिन जयंत चौधरी ने आज सारे कयासों को खत्म कर दिया है विपक्षी दलों की बैठक में पहुंचकर। अगर वो एनडीए का हिस्सा बनना चुनते तो आज सत्ता उनके कदमों में होती लेकिन कुछ लोगों को संघर्ष के रास्ते पंसद आते हैं और शायद जयंत अभी संघर्ष के रास्ते पर हैं। दरअसल पिछले दिनों जयंत चौधरी ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा था चावल खाने ही हैं तो खीर खाओ। इसके बाद लोग ये अनुमान लगाने लगे थे कि वो भाजपा में जाने वाले हैं लेकिन अब जयंत ने साफ कर दिया है कि वो खीर अपने घर की बनी हुई ही खाना पसंद करेंगे।

हरियाणा की इंडियन नेशनल लोकदल की तो तमाम तैयारियों के बावजूद भी उसे को अभी इंतजार करना होगा। कहा जा रहा है कि केसी त्यागी और नीतीश कुमार की सलाह पर ओमप्रकाश चौटाला ने बेंगलुरु जाने का कार्यक्रम टाल दिया है। इनेलो के बेंगलुरु जाने में दो तरह की दिक्कतें थी, पहली तो ये कि विपक्षी दलों की पहली बैठक का आयोजन पटना में सीएम नीतीश कुमार ने किया था। लेकिन बेंगलुरु की बैठक का आयोजक कांग्रेस पार्टी है । इसलिए नीतीश कुमार ये नहीं चाहते थे कि इनेलो बैठक में बिना बुलाए हुए शामिल हो। यह दीगर बात है कि इनेलो पार्टी विपक्षी दलों का हिस्सा तभी बन सकती है जब राहुल गांधी इसकी इजाजत दें। राहुल गांधी हरियाणा को उन प्रदेशों में देखते हैं जहां कांग्रेस से मानकर चल रही है हरियाणा में जब भी भाजपा का विकल्प जनता देखेगी तो वो कांग्रेस ही होगी, इसलिए किसी और पार्टी का साथ लेने से पहले वो सौ बार सोचेंगे। ये उनकी रणनीति का भी ये हिस्सा है। इसलिए इनेलो को फिलहाल दूसरी बैठक से अलग रख ही दिया है। तीसरी मीटिंग दिल्ली में होगी और तब इनेलो के लिए अंतिम चांस होगा। फिलहाल तो इनेलो- जजपा को एनडीए का हिस्सा बनते और विपक्षी दलों की बैठक को दूर से ही देखने में मजबूर रहेगी। लेकिन यह भी तय है की जिस ओर दुष्यंत चौटाला होंगे उस ओर अभय सिंह और ओम प्रकाश चौटाला नहीं जा सकते।

कांग्रेस के हरियाणा के नेताओं की तो इनेलो के शामिल करने के मसले पर करीबन सारे गुट जिनमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी समेत सारे एकजुट हैं कि कांग्रेस को प्रदेश में किसी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए तो ऐसे में इनेलो की विपक्षी दलों के साथ शामिल होने की मुहिम सिरे चढ़ने की संभावनाएं अब ना के ही बराबर हो गई है। दीपेंद्र हुड्डा ने कल ही एक बयान दिया है कि अभय चौटाला तो भाजपा से हाथ मिलाने में छह मिनट भी नहीं लगाते ये उसी रणनीति का हिस्सा है कि इनेलो यूपीए में शामिल ना हो पाए। हालांकि राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं है अगर नीतीश कुमार पुरानी दोस्ती निभाएंगे तो लेकिन नीतीश की अपनी प्राथमिकताएं पहले रहेंगी। पहले हर कोई अपने बारे में सोचता है।