-कमलेश भारतीय

कल रात्रि हमारे पड़ोस में रह रहे यादव परिवार के प्रदीप यादव के बेटे प्रशांत को शादी का आशीर्वाद देने आये हरियाणा के पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली से बातचीत करने का अवसर बन गया । जब हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में नवनिर्वाचित सरपंचों से मिलने आये थे तब उन्होंने बताया था कि उनका जन्म हमारे अर्बन एस्टेट का ही है लेकिन पालन पोषण और पढ़ाई लिखाई सारी टोहाना में ही हुई । मिडल तक डांगरा गांव में शिक्षा और फिर मैट्रिक टोहाना ! इसी शहर के इंदिरा गांधी काॅलेज से ग्रेजुएशन पूरी न कर सका । तृतीय वर्ष का आखिरी पेपर छोड़कर बिजनेस संभाल लिया । इनका बिजनेस गुरुग्राम में है और राजनीति की कर्मस्थली टोहना ! रात्रिभोज करने से पहले मेरे सवालों के जवाब दिये । कुछ देर तक प्रो के एल रिणवा भी साथ रहे । तो लीजिये सवाल जवाब प्रस्तुत हैं :

-राजनीति में कब और कैसे आना हुआ ?
-अपने दादा कैप्टन गुलाब सिंह की स्मृति में जनसंगठन बना कर क्षेत्र की समस्याओं को उठाना शुरू किया सन् 2007 से । यह संगठन अब भी चला रहा हूं ।

-जनसंगठन क्यों बनाना पड़ा?
-टोहाना में एक परिवार द्वारा दबाब की राजनीति की जा रही थी और लोग चाहते थे कि कोई आगे आये । जात पात की राजनीति से भी छुटकारा चाहते थे ।

-आप ही आगे क्यों आये या किये गये ?
-हमारे परिवार ने यह मंत्र दिया कि जो गलत हो रहा है , उसे देखते न रहो बल्कि उसका विरोध करो । बस । इसीलिये मैं आगे आया जनसंगठन बना कर !

-राजनीति में अब तक का सफर ?
-मैंने अपने समर्थकों से कहा था कि हार जीत से दूर मै तीन चुनाव लड़ूंगा । पहला चुनाव सन् 2014 में निर्दलीय ही लड़ लिया । हार गया लेकिन 40000 वोट ले गया । हार के चार पांच महीने बाद सन् 2015 में गांव गांव निकला समर्थकों से सलाह ली और सबने कहा कि कोई पार्टी ज्वाइन कर लो । उन दिनों अशोक तंवर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे उनके माध्यम से राहुल गांधी को मिलीं काग्रेस ज्वाइन कर ली ।

-पर चुनाव तो आप जननायक जनता पार्टी से लड़े ? ऐसा कैसे और क्यों हुआ ?
-अशोक तंवर कांग्रेस छोड़कर चले गये । मुझे लगता है कि उनका यह कदम कोई बहुत सराहनीय नहीं था । मुझे कांग्रेस से टिकट का आश्वासन था और मैं गांव गांव प्रचार कर चुका था । पैम्फलट और बैज तक बांट चुका था कांग्रेस के । नामांकन भरने के आखिरी दिन से पहले मुझे टिकट नहीं मिली और मुझे जजपा की ओर से दुष्यंत चौटाला मिलने आये । पूरा सम्मान देने की बात कही । मैंने आखिरी दिन जजपा से नामांकन भर दिया और जीत गया । वैसे वोटर को यह समझाने में बहुत मेहनत करनी पड़ी कि मैं कांग्रेस से चुनाव नहीं जजपा से लड़ रहा हूं ।

-फिर कांग्रेस छोड़कर कैसा लगा ?
-बहुत बढ़िया । कांग्रेस में टिकट मिलती जीत भी जाता तो विधायक ही रह जाता जबकि जजपा से जीतकर मंत्री भी बन गया । कुबड़े के लात पड़ने वाली बन गयी मेरे साथ !

-नवनिर्वाचित सरपंचों से क्या चल रहा है ?
-पंचायत मंत्री के रूप में सरपंचों को दी जाने वाले अनुदान के प्रति सरपंचों को जवाबदेह बनाना चाहता हूं । जिसका विरोध सहना पड़ रहा है ।

-आपको इससे कोई फिक्र नहीं भविष्य की ?
-कोई भय नहीं । मैं अपने पद की गरिमा के अनुसार ही फैसला करता हूं !

-जजपा के नारनौंद से विधायक रामकुमार गौतम पहले दिन से ही जजपा से ही नाराज चल रहे हैं । क्यों ?
-देखिये सौ प्रतिशत तो किसी को भी संतुष्ट नहीं किया जा सकता ।

-जजपा भाजपा गठबंधन होगा ?
-यह समय से पहले की बात है । अभी दोनों दल सर्वेक्षण करवा रहे हैं और फिर भी लगता है कि इस गठबंधन की जरूरत महसूस की जायेगी तो हो जायेगा ।

-महिला पहलवानों को यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन करना पड़ा। क्या कहेंगे ?
-हरियाणा खिलाड़ियों की नर्सरी है । इन पहलवानों ने नि:संदेह देश का नाम रोशन किया और हमें इन पर गर्व है लेकिन इनके आंदोलन में राजनीति घुस गयी । यह दुखद है ।

-हिसार दूरदर्शन केंद्र इस वर्ष के शुरू में ही बंद कर दिया गया । कर्मचारी और जनसंगठन धरने पर हैं । क्या प्रतिक्रिया आपकी ?
-मुझे इस मुद्दे की जानकारी नहीं ।

-पहले हरियाणा में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आई और आजकल इनेलो की परिवर्तन यात्रा चल रही है । क्या प्रभाव मानते हैं इन यात्राओं का हरियाणा की राजनीति पर ?

-ये यात्रायें पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिये कई गयीं । हरियाणा की राजनीति पर इनका प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

-आपके परिवार के बारे में ?
-पत्नी सुनीता जो गृहिणी हैं और बेटा सूरज जो कारोबार में मेरा हाथ बंटा रहा है । बेटी सपना जो दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रही है ।

-क्या शौक हैं ?
-सुबह की सैर और अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना ।

-कोई हरियाणवी फिल्म देखी इन दिनों ।
-नहीं । हिंदी फिल्म कभी कभी देख लेता हूं

-चंद्रावल देखी थी कि नहीं ?
-वह तो देखी थी ।

-दादा लखमी ?
-नहीं ।

-फिर तो यशपाल को कह कर आपको दिखाते हैं एक दिन !
देर काफी हो गयी थी और देवेंद्र बबली को टोहाना जाना था । इसलिये विदा ली फिर कभी बातचीत करने के वादे का साथ ।

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