बढ़ती जनसंख्या की चुनौती को अवसर बनाने के लिए ज़रूरी हैं – शिक्षा, रोजगार एवं निवेश -धर्म पाल ढुल

हिसार, 1 जून । विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बनने जा रहे भारत में युवाओं को यदि नियोजित ढंग से प्रशिक्षित कर रोजगार नहीं दिया जाता तो “युवा राष्ट्र” के उपनाम (टैग) का कोई अर्थ नहीं है ।

ये शब्द आज यहां सीनियर सिटीजन क्लब में वानप्रस्थ संस्था द्वारा “भारत में बढ़ती जनसंख्या, चुनौती या अवसर” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम से सेवानिवृत्त चीफ कम्युनिकेशनस आफिसर धर्मपाल ढुल ने कहे।

उन्होंने कहा कि भारत की 68 प्रतिशत आबादी श्रम-शक्ति की श्रेणी (15-64 वर्ष आयु वर्ग) में आती है जो विश्व में सबसे अधिक है। अगले 25 वर्षों में दस करोड़ से ज्यादा और युवा इस श्रेणी में जुड़ जाएंगे ।

देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग युवा है जो देश की अर्थव्यवस्था को बहुत तेज गति दे सकता है , किंतु वह नियोजित तरीके से शिक्षित नहीं है। भारत की बहुत बड़ी युवा आबादी दिशाहीन है और उसके पास रोजगार के पर्याप्त अवसर भी नहीं हैं। युवाओं की बढ़ती संख्या के द्रष्टिगत अगले 25 वर्ष के दौरान देश में 23 करोड़ से अधिक अतिरिक्त रोजगार सृजित करने की जरूरत है। किंतु वर्तमान में ही एक ओर देश के आधे से ज्यादा युवाओं के पास रोजगार के लिए वांछित योग्यताएं नहीं हैं और दूसरी और रोजगार के लिए आवश्यकता से कहीं अधिक योग्यता वाले युवा रोजगार के लिए लम्बी पंक्तियों में खड़े हैं।

ढुल ने कहा कि देश की सम्पूर्ण श्रम-शक्ति को काम में लगाना बहुत बड़ी चुनौती है और यदि ऐसा नहीं होता है तो भारत की आबादी एक चुनौती है और आगे भी रहेगी। इस चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है, यदि उसका नियोजन सही तरह किया जाए।

युवा आबादी के जो लाभ गिनाए जा रहे हैं, उनसे इन्कार नहीं, लेकिन इस आबादी के समुचित उपयोग के लिए जो योजनाएं बनाई जा रही हैं, उन्हें जमीन पर सही तरह उतारना एक चुनौती बना हुआ है। इसके लिए वांछित कौशल और वांछित निवेश के लिए धन जुटाना बहुत बड़ी चुनौती है।

श्री धर्म पाल ढुल ने कहा कि भारत की जितनी आबादी कृषि क्षेत्र में पर निर्भर है, वह बहुत अधिक है। इतनी अधिक आबादी की कृषि क्षेत्र पर निर्भरता ठीक नहीं। चूंकि कृषि की उत्पादकता कम है, इसलिए गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है।
इस अवसर पर बोलते हुए पूर्व प्रोफेसर सुदामा अग्रवाल ने कहा कि भले ही भारतीयों की मेधा की बात विश्व स्तर पर होती हो, लेकिन कुछ चुनिंदा मेधावी और सफल भारतीयों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि हमारे सभी युवा मेधावी हैं और उनकी मेधा का सही उपयोग हो रहा है। इस पर ध्यान देना होगा कि नौकरियों की आस में गांवों से शहर आ रहे युवा किस तरह अपने को इतना सक्षम बनाएं कि वे आसानी से रोजगार पा सकें।

पूर्व प्रोफेसर डॉ जे के डांग ने कहा कि बढ़ती आबादी की चुनौती के बीच ऐसी सशक्त योजना की जरूरत है जिससे उद्योग-धंधों का तेजी से विकास हो सके और वे रोजगार के अवसर पैदा कर सकें। पिछले कुछ समय से यह विमर्श सामने आया है कि देश की युवा आबादी का सही तरीके से नियोजन किया जाए तो भारत आर्थिक तौर पर एक महाशक्ति बन सकता है।
कौशल योजना में पूर्व निदेशक जयपाल मल्हान ने कहा कि कौशल विकास के जो कार्यक्रम चल रहे हैं, वे अभी प्रभावी नहीं सिद्ध हो पा रहे हैं। कौशल विकास के मामले में अभी हम बहुत पीछे हैं।

डॉ आर के राणा ने डेमोग्राफी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला, डा पुष्पा सतीजा ने समस्याओं के समाधान में सामाजिक भागीदारी पर बल दिया, सुरजीत जैन ने युवाओं में मेधा सुधार के लिए विशेष कार्यक्रम की जरूरत बताई , इसके अलावा श्रीमती शालिनी गोसाईं, उम्मेद सिंह , डा आर पी ऐस खरब, सहित 40- से अधिक सदस्यों ने इस ज्ञान वर्धक गोष्ठी में भाग लिया । क्लब के महा सचिव डा जे. के. डाँग ने गोष्ठी का संचालन किया।

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