सच का सामना करेंगे अब हरियाणा के मंत्री, 2024 लोकसभा विधानसभा चुनाव देख बीजेपी घटा पाएंगी जनता से दूरी? उल्टा पड़ रहा है भाजपा का दांव,मनोहर लाल खट्टर के जनसंवाद कार्यक्रमों में विरोध के बाद बीजेपी ने बदली रणनीति विरोधियों को बैठे-बिठाए मिल रहे मुद्दे, अब संगठन भी सरकार के बचाव में उतरेगा मैदान में अब रात को भी मुख्यमंत्री गांव में रुकेंगे इसकी शुरुआत महेंद्रगढ़ जिले से, 24 से 26 मई तक जनसंवाद करेंगे। अशोक कुमार कौशिक प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से जनसंवाद करने की भाजपा की रणनीति अब सवालों से घिरती जा रही है। इसकी वजह हाल ही में सिरसा में हुए विवाद जिसमें एक महिला सरपंच ने सिर से दुपट्टा निकालकर मुख्यमंत्री के पैरों में डाल दिया था। दूसरे मामले में जनसंवाद में एक आप नेता को सीएम ने मारपीट कर बाहर निकालने को कह दिया। जिला सिरसा में जनसंवाद कार्यक्रम में मनोहर लाल खट्टर के सामने विरोध के बाद अब भाजपा ने रणनीति बदल दी। अब हरियाणा सरकार के मंत्री भी फील्ड में जाकर जनसंवाद करेंगे। मंत्रियों की कारगुजारी का अंजाम सीएम को न भुगतना पड़े इसलिए अब उन्हें भी ‘सच का सामना’ करना पड़ेगा। यही नहीं संगठन भी सरकार के बचाव में मैदान में उतरेगा ।हरियाणा भाजपा अध्यक्ष ओपी धनखड़ के अलावा दूसरे पार्टी पदाधिकारी भी लोगों से मिलकर शिकायतें सुनेंगे ताकि पार्टी के खिलाफ anti-incumbency के माहौल को नहीं बढ़ने दिया जाए। सिरसा में जनसंवाद के बाद अब मुख्यमंत्री जिला महेंद्रगढ़ में जनसंवाद करने के लिए आ रहे हैं। दक्षिण हरियाणा को केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव वाला एरिया माना जाता है। कई बार ऐसे मौके भी आए हैं जब सीएम और राव इंद्रजीत सिंह आमने-सामने भी हुए हैं। अब मुख्यमंत्री ने जनसंवाद के पांचवें कार्यक्रम के लिए उनके प्रभाव वाले महेंद्रगढ़ को चुना है। महेंद्रगढ़ जिला के हलकों के नौ से दस गांवों में जाने का मुख्यमंत्री का कार्यक्रम है। सीएम के अगले जनसंवाद के लिए सीएमओ में तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। महेंद्रगढ़ जिला प्रशासन से उन विकास परियोजनाओं का ब्यौरा तलब किया है, जिनका उदघाटन और शिलान्यास किया जाना है। साथ ही, जिले में अभी तक हुए विकास कार्यों तथा केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों का डाटा तैयार किया जा रहा है ताकि जनसंवाद के दौरान इसे लोगों के बीच रखा जा सके। वहीं महेंद्रगढ़ के नेताओं ने भी सीएम के आयोजन को लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस आलेख में हम महेंद्रगढ़ और सिरसा में राजनीतिक शक्ति यथास्थिति स्पष्ट करने की कोशिश करेंगे। हरियाणा में भाजपा 10 साल से सत्ता में है। राज्य में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं। 2014 में मोदी हवा में भाजपा ने 47 सीटें जीतकर अकेले दम पर सरकार बनाई थी। 2019 में मोदी हवा फीकी पड़ी और विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत नहीं मिला । इसमें कुछ प्रदेश में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की मुखालफत की हवा भी दूसरा कर रही, जिसमें रामविलास शर्मा, ओमप्रकाश धनखड़, सुभाष बराला, कैप्टन अभिमन्यु जैसी तोप धराशाई हो गई। भाजपा 40 सीटों पर सिमट गई नतीजा यह हुआ कि तब 10 महीने पहले बनी जननायक जनता पार्टी से गठबंधन करना पड़ा। इस वक्त यही गठबंधन सरकार चला रहा है। सत्ता की कमान भाजपा के हाथ में है, तो वोटरों की ज्यादा नाराजगी और जीतने की चुनौती भाजपा के लिए ही है। हरियाणा में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। देश में 11 महीने बाद अगले ही साल लोकसभा चुनाव की है। हरियाणा में 10 लोकसभा सीटें हैं। 2019 के चुनाव में सभी सीटें बीजेपी ने जीती। इस बार बीजेपी के आगे सभी सीटें बचाने की चुनौती है। सीट हारे तो हाईकमान की नजर ने सरकार से लेकर संगठन तक का कद घटेगा । ऐसे में उनके भाजपा में राजनीतिक कैरियर को खतरा होगा। पिछली बार हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा लगातार रणनीति बदल रही है। हिमाचल और कर्नाटक में मिली पराजय के बाद वह बड़ा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल भिवानी, पलवल,कुरुक्षेत्र व सिरसा में जनसंवाद कर चुके है । यहां वह दिन में लोगों की मुश्किलें सुनते थे । अब रणनीति बदली गई है, इसे सरकारी कार्यक्रम से आगे बढ़ाकर लोगों से नजदीकी की तरफ ले जाया जाएगा। इसके लिए अब रात को भी मुख्यमंत्री गांव में रुकेंगे। इसकी शुरुआत महेंद्रगढ़ जिले से होगी, जहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल 24 से 26 मई तक जनसंवाद करेंगे। मंत्रियों के लिए तय किया गया है कि वह 1 दिन में 4 से 5 गांव में जाएंगे। जहां ग्रामीणों से मिलेंगे, इनकी शिकायत और सुझाव सुनेंगे फिर उसे सरकारी अफसरों से दूर करवाएंगे ।विधायकों को भी यह टास्क सौंपा गया है कि वह भी अगली बार जीतना चाहते हैं तो फील्ड में निकले और जनता से दूरियों को कम करें ताकि इसका फायदा पार्टी को मिल सके। भाजपा का शहरी इलाकों से अच्छा जोर रहता है लेकिन चुनौती ग्रामीण क्षेत्र है। हरियाणा में भाजपा इसे मजबूत करना चाहती है। खासकर कृषि कानूनों के विरोध में हुए किसान आंदोलन के बाद भाजपा किसानों से नाराजगी दूर करना चाहती है। किसान अभी भाजपा से विमुख हो रहे हैं। यही वजह रही है कि जिला परिषद चुनाव में भाजपा पार्टी के सिंबल पर नई लड़ सकी। वैसे पार्टी के लिए प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, परिवार पहचान पत्र में त्रुटियां, गरीबी रेखा का राशन कार्ड से नाम कटना तथा वृद्धावस्था पेंशन में आ रही परेशानियों के कोई मायने नहीं। उसे इस बात की भी चिंता नहीं की इस बार किसानों की सरसों इतने अल्पसमय में ही क्यों सरकारी खरीद की गई। हरियाणा सरकार के मंत्रियों की जनता से डायरेक्ट संवाद की बात करें तो गृह मंत्री अनिल विज को छोड़ यह लगभग न के बराबर था। मंत्री सिर्फ ग्रीवेंस कमेटियों की मीटिंग में आते थे। बंद कमरे में अफसरों के साथ मीटिंग के बाद चंडीगढ़ चले जाते थे। मंत्री सिर्फ अपने नेताओं और वर्करों तक ही सीमित थे। माना कि अनिल विज अंबाला में पूरे राज्य के लिए खुला दरबार लगाते थे। मगर जब मुख्यमंत्री मनोहर ने जनसंवाद शुरू किया तो विज ने इसे बंद कर दिया । अब उनके घर पर ही फरियादी पहुंच जाते हैं जिनका वह निपटारा करते हैं। हमारी नजर में उपरोक्त मुद्दों को लेकर ही असल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के जनसंवाद में खुला विरोध हो रहा है। कहीं उनकी जज के बारे में टिप्पणी से बवाल मचा, तो कहीं महिला सरपंच ने सिर की चुन्नी पैरों में फेंक दी। भाजपा जनसंवाद कार्यक्रम को चुनाव से पहले गेमचेंजर मान रही थी लेकिन उल्टे इससे विरोधियों को हमलावर होने का मौका मिल गया ।विरोधियों ने सीधे मुख्यमंत्री पर अटैक करना शुरू कर दिया मुख्यमंत्री की भाषा पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। अब भाजपा विरोधियों को पटखनी देने के लिए मंत्रियों से जनसंवाद करवा कर सिर्फ मुख्यमंत्री को भी फोकस से हटाना चाहती है। दक्षिणी हरियाणा की राजनीति हमेशा उत्तरी हरियाणा से विपरीत रहती है। अहीर राजनीति अतीत से जाट राजनीति की मुखालफत में रही है। जिस भाजपा को उत्तरी हरियाणा ने कोई मजबूती नहीं दी उसी भाजपा को 2014 और उसके बाद 2019 के चुनाव में अहीरवाल में मजबूती मिलती रही। दक्षिणी हरियाणा में रामपुरा हाउस की राजनीति में गहरी पैठ है । भाजपा के रणनीतिकार गुरुग्राम के सांसद एवं केंद्रीय मंत्री राव राजा इंद्रजीत को पटकनी दे अपने बलबूते पर सरकार बनाने की फिराक में है। राव राजा के विरोध में भाजपा ने सुधा यादव, भूपेंद्र यादव, संतोष यादव, नरवीर सिंह व डॉ अभय सिंह यादव को तवज्जों देना शुरू कर रखा है। इसका परिणाम यह हुआ अहीरों में नाराजगी पनपना शुरू हो गई। अब बात करें जिला महेंद्रगढ़ के राजनीतिक परिदृश्य की। महेंद्रगढ़ की सीट इस समय कांग्रेस के पास है। कांग्रेस के विधायक राव दान सिंह ने अभी जनता पर अपनी पकड़ मजबूत बना रखी है। रामविलास शर्मा वर्तमान हालात में मजबूत दिखाई नहीं दे रहे। दूसरी सीट नारनौल की है, जहां से लगातार दूसरी बार जीते ओमप्रकाश यादव को प्रदेश राज्य मंत्री बनाया हुआ है। ओम प्रकाश यादव की छवि सॉफ्ट राजनेता वाली मानी जाती है। वह प्रशासन और जनता के बीच मुलायम छवि लेकर चल रहे हैं। उन्हें जीत राव राजा इंदरजीत सिंह के आशीर्वाद से मिली और भाजपा के लोगों ने मन मार कर उन्हें वोट दिया। शहरी क्षेत्र होने के बावजूद भाजपा पहले की अपेक्षा यहां कमजोर हुई है। आज ओम प्रकाश यादव के अलावा भाजपा का दूसरा कोई प्रत्याशी नजर नहीं आ रहा। कुछ दावेदारी जताते इससे पहले ही जिलाअध्यक्ष के रूप में पूर्व विधायक पंडित कैलाश चंद शर्मा के पुत्र राकेश शर्मा को अब प्रदेश कार्यकारिणी में ले लिया गया। तीसरी सीट नांगल चौधरी विधानसभा क्षेत्र की है, जिसमें डॉ अभय सिंह यादव लगातार दूसरी बार विजेता बने हैं। पहली बार डेरा सच्चा सौदा और राव इंदरजीत सिंह के सारे विजेता बने डॉ अभय सिंह यादव के तेवर अब उनसे विमुख है। राजनीति में आने से पहले वह प्रशासनिक क्षेत्र में थे जिनका वह भरपूर फायदा उठा रहे हैं। यहां भाजपा से दयाराम यादव ने सिर उठाया था जिसे एक रणनीति के तहत अब भाजपा का जिला अध्यक्ष बना दिया गया। डॉ अभय सिंह यादव के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीति में कायम रहने के लिए छोटे से छोटे नुक्ते को आजमाने में गुरेज नहीं करते। अब उन उनके विरोधी आरोप लगाते है कि उन्होंने गांव गांव में जबरदस्त गुटबाजी करवा कर भाजपा को कमजोर किया है। चौथी सीट अटेली की है जहां से भाजपा काडर के सीताराम यादव है। जिन्हें भाजपा के साथ-साथ राव राजा इंदरजीत सिंह का भी वरदहस्त मिला था। इस सीट पर उनके अलावा पूर्व विधायक एवं पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष संतोष यादव भी टिकट के लिए भागदौड़ कर रही है। इस सीट पर भाजपा की टिकट के लिए मनीष राव तथा स्वाती यादव भी प्रयास कर रही है। वैसे यहां राव राजा इंद्रजीत सिंह की सुपुत्री आरती राव के मैदान में उतरने के भी कयास लगाए जा रहे हैं। इस सीट पर भाजपा का भाजपा से आपसी द्वंद ज्यादा है। लोगों से सीधे संवाद के मकसद के बजाय सीएम जनसंवाद से विरोधियों को हमलावर होने के मौके मिल रहे हैं। सिरसा जिला वैसे भी भाजपा के लिए हमेशा चुनौती भरा रहा है। सियासी जमीन तलाशने की कोशिश में अब मुख्यमंत्री के जनसंवाद में हुए विवाद के बाद राजनीतिक परेशानी और बढ़ती जा रही है मुख्यमंत्री की मंशा और पार्टी की रणनीति के उलट भाजपा आलोचनाओं से घिरती जा रही है। -13 मई को खैरेका में सीएम के जनसंवाद के दौरान आप नेताओं ने मुख्यमंत्री को मांग पत्र सौंपना चाहा। मगर अधिकारियों द्वारा सीएम से मुलाकात न करवाने पर उन्होंने नारेबाजी कर दी तो पुलिस ने उन्हें जबरदस्ती जनसंवाद कार्यक्रम से उठाकर हिरासत में ले लिया। इस दौरान पुलिस ने डंडे भी मारे। नशे पर बोलने पर एक महिला को सीएम ने ही चुप करवा दिया और कहा की सीखी सिखाइ हो आ जाते हो, चुप करके बैठ जाओ। -14 मई डबवाली में जनसंवाद के दौरान किसान मुख्यमंत्री से मिलना चाहते थे। पिछले हंगामे को देखते हुए पुलिस ने रोक लिया। विवाद बढ़ने पर पुलिस ने किसानों को लाठी भांजी। इस विवाद में कुछ किसानों को चोटें भी आई। आप नेता कुलदीप गगराना जनसंवाद में बोलने लगे तो सीएम ने कहा कि यह आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है, इसे उठाकर ले जाओ पीटों यह राजनीति करने आया है। -15 मई बनी गांव की सरपंच नैना झोरड़ मंच पर पहुंची वह पूर्व सरपंच के साथ झगड़े की शिकायत देने गई थी। अचानक नैना ने अपना दुपट्टा निकाला और मुख्यमंत्री के पैरों में फेंक दिया ।यह देख वहां तैनात महिला पुलिस ने नैना को पकड़ कर जबरन स्टेज से नीचे उतार दिया। सिरसा जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं, इनमें भाजपा का एक भी विधायक नहीं। डबवाली में कांग्रेसी ऐलानाबाद से इनेलो, सिरसा में हलोपा, कांलावाली में कांग्रेस और रानियां से निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला है। रणजीत सिंह चौटाला सरकार में शामिल हैं और मंत्री भी हैं लेकिन इसका भाजपा को ज्यादा फायदा नहीं है। सिरसा के विधायक गोपाल कांडा ने भी भाजपा सरकार को समर्थन दे रखा है लेकिन उससे भी भाजपा सिरसा शहर में कहीं उठती दिखाई नहीं दे रही। 2019 के चुनाव के बाद से भाजपा सिरसा में निरंतर कमजोर होती चली गई है । विधानसभा चुनाव में कुछ महीनों पहले सेतिया परिवार के भाजपा छोड़ने के बाद सिरसा विधानसभा सीट में पार्टी के पास कोई जनाधार वाला नेता नहीं रहा। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में लहर के बावजूद पार्टी के उम्मीदवार प्रदीप रातूसरिया तीसरे स्थान पर रहे जबकि निर्दलीय उम्मीदवार गोकुल सेतिया दूसरे स्थान पर रहे और हलोपा विधायक गोपाल कांडा ने मात्र 600 वोट से जीत हासिल की।विधायक गोपाल कांडा पार्टी को बाहर से समर्थन दे रहे हैं। कांडा अपने अवसरवादी राजनीति के लिए जाने जाते हैं कभी हुड्डा सरकार में गृह मंत्री भी रहे हैं। किसान आंदोलन के समय ऐलनाबाद हल्के से दो बार चुनाव लड़ चुके पवन बेनीवाल ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। सिरसा के हलोपा विधायक गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा पार्टी में शामिल हुए और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे। हरियाणा में लोकसभा चुनाव में 1 साल शेष रह गया विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल में होने वाले हैं । भाजपा संगठन और खट्टर सरकार के साथ-साथ उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी जाते हैं कि प्रदेश में चुनाव लोकसभा के साथ ताकि उसका फायदा उठाया जा सके। जहां से भाजपा के विधायक है वहां एंटी इनकंबेंसी का डर है। इसकी भरपाई भाजपा नई सीटों से करना चाहती है । सिरसा में भाजपा का कोई एमएलए नहीं है, इसलिए वहां दांव खेलने की कोशिश की थी। यहां भाजपा के आगे नेतृत्व संकट भी है। मौजूदा समय में डबवाली सीट पर केवल भाजपा के जिला अध्यक्ष आदित्य चौटाला ही एक ऐसे उम्मीदवार हैं जिनका अपना राजनीतिक वजूद है। वही यहां से अभी सुनीता दुग्गल भाजपा की सांसद है मगर लोकसभा उम्मीदवार पर सांसद की कारगुजारी के अलावा राज्य सरकार व केंद्र सरकार की एंटी इनकंबेंसी का असर पड़ सकता है। सिरसा में सीएम के जनसंवाद कार्यक्रम में भाजपा के पुराने नेताओं को भी तवज्जो नहीं मिली। मुख्यमंत्री ने नए युवा और अपने विश्वासपात्र नेताओं को इन कार्यक्रमों की कमान सौंपी। फलस्वरुप सीएम के हवाई अड्डे पर स्वागत कार्यक्रम में यह नेता नाराज होकर शामिल नहीं हुए। नाराजगी जताने के लिए उन्होंने शहर के एक पूर्व महिला चेयरमैन के घर पर बैठक भी की। जिसमें कि नाराज भाजपा नेताओं ने कार्यक्रम में न पहुंचने की शपथ भी दिलाई। जिस कारण 3 दिनों तक किसी भी नेता ने सीएम से मुलाकात नहीं की। वहीं मुख्यमंत्री के नजदीकियों के मुताबिक इन नेताओं के राजनीतिक वजूद का पता 2019 के विधानसभा चुनाव में ही पार्टी की हार से मिल चुका है, इसी वजह से सीएम उन्हें तवज्जो नहीं दे रहे। इस जिले में जनसंवाद का सबसे पहला फायदा इनेलो को नजर आता है। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके विधायक बेटे अभय चौटाला का यह गढ़ है। सिरसा की 24 में से 10 जिला परिषद सीटें और चेयरमैन पद उनके पास है। हालांकि हरियाणा में इनेलो के सिर्फ एक ही विधायक अभय चौटाला हैं। ऐसे में 2024 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इनेलो यहां पूरी ताकत से आगे बढ़ना चाहती हैं। दूसरा फायदा कांग्रेस को होगा हरियाणा में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है । कांग्रेस ने प्रदेश में 2014 में 15 सीटों के मुकाबले 2019 में 31 सीटें जीती। ऐसे में एंटी इनकंबेंसी के चलते सबसे बड़े दल के रूप में उन्हें फायदा मिल सकता है।तीसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी है। सिरसा की 24 जिला परिषद में से आप ने 6 सीटें जीती। ऐसे में विधानसभा चुनाव में वह सिरसा से बड़ी मौजूदगी दर्ज करवा सकती हैं। चौथे नंबर पर जननायक जनता पार्टी भी पीछे नहीं रहेगी। वह भाजपा के साथ सरकार में है । लेकिन अगर वह सिरसा में अलग होकर चुनाव लड़ती है तो चौटाला परिवार होने की वजह से अजय चौटाला और उनके डिप्टी सीएम बेटे दुष्यंत चौटाला के दबदबे का फायदा मिलेगा। Post navigation हरियाणा सरकार बेटियों के उत्थान के लिए संकल्पबद्ध खुद सुनिये क्या कहा….. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गुरुग्राम सेक्टर 79 में रविवार को आयोजित राहगिरी कार्यक्रम में