-कमलेश भारतीय

देश विदेश में प्रसिद्ध मुक्ति धाम मुकाम में हूं । अमावस्या की रात यहां माथा नवाने बड़ी संख्या में लोग आते हैं और हमें हमारी बेटी रश्मि यहां ले आई । वह कई बार आ चुकी है । हम ही पहली बार आये है । आज की सुबह अमावस्या के बाद की सुबह है । यानी मिटी धुंध जग उजियारा हुआ ! सभी धार्मिक स्थल मन का अंधियारा ही तो मिटाते हैं ! पर हम अज्ञानी फिर से अंधकार और अहंकार में डूबकर सब कुछ भूल जाते हैं ! अंधविश्वास में खो जाते हैं ।

मुकाम और बिश्नोई समाज को हरियाणा में चर्चा मिली चौ भजनलाल के राजनीति में उभरने के बाद ! तब लोगों को बिश्नोई समाज में दिलचस्पी बढ़ती चली गयी और चौ भजनलाल ने भी बिश्नोई समाज के लिये खूब काम किया । जहां तक कि महिलाओं की पर्दा प्रथा को भी दूर करने के संदेश दिये । पर्यावरण के लिये संसद में जो भाषण दिया वह श्रेष्ठ भाषणों में एक है जिसे पुस्तक रूप में प्रकाशित मुझे गद्गदू होकर कभी खुद चौ भजनलाल ने ही अपने हिसार स्थित आवास पर दिखाया था ! चौ भजनलाल ने हिसार में मुख्यमंत्री रहते अपने कार्यकाल के दौरान हिसार में गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय बना कर अपने गुरु को नमन् किया । मुकाम में ही अपनी धर्मपत्नी जसमा देवी के नाम पर एक भव्य धर्मशाला भी बनवाई है । संयोगवश इसी में हमें रहने का अवसर मिला क्योंकि किसी अन्य धर्मशाला में इसलिये स्थान नहीं मिला क्योंकि सभी गांवों की अपनी अपनी धर्मशालाएं हैं जिनमें अपने ही गांव के लोगों को रहने दिया जाता है । सोचता हूं यदि यहां भी जगह न मिलती तो रात कैसे और कहां गुजारी होती !

वैसे मुकाम में मूल निवासी बहुत कम हैं । सब तरफ धर्मशालाएं ही धर्मशालाएं दिखाई हैं । कोई बाजार तक नहीं । सिर्फ फड़ियां ही बाजार हैं । एक ही जगह लंगर की व्यवस्था है । हर अमावस्या की रात कम से कम बीस पच्चीस हजार श्रद्धालु आते हैं । लंगर पर प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपए से ऊपर का खर्च लंगर बांटने वाले अपने अनुमान से बता रहे हैं ।

दूर तक भजन ही सुनाई देते हैं और टूरिस्ट बसों का जमावड़ा या निजी कारों के काफिले ! सब अमावस्या की रात को माथा नवाने आये हैं ! पिछले छब्बीस साल से मुकाम के इतने निकट हिसार में रहते हुए भी यहां आना संभव न हुआ । मुकाम बिश्नोई समाज के गुरु जम्भेश्वर का पावन स्थान है । वही जम्भेश्वर जिन्हें इनके श्रद्धालु प्यार से जाम्भो जी कहते हैं और भजनों में इसी नाम से गुणगान करते हैं । इन्हें विष्णु भगवान् का ही रूप माना जाता है और इनको भी जन्माष्टमी पर भव्य ढंग से स्मरण किया जाता है । हिसार के बिश्नोई मंदि में भी जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है ।

मुकाम में नीचे वाला मंदिर भी देखा और ऊपर वालो तपस्थली भी । जहां जाम्भो ने बिश्नोई धर्म बनाया । पर गुरु जम्भेश्वर को सिर्फ बिश्नोई समाज से जोड़ना बहुत बड़ी भूल होगी । ये तो आज के समाज को पांच सौ साल से भी ऊपर समय से पर्यावरण का संदेश दे गये , वह सभी समाज और देशकाल के लिये बहुत ही उपयोगी है । उन्होंने 29 नियम बनाये जिनको मानने वाले बिश्नोई कहलाते हैं ! नियमों में क्या करना है और क्या नहीं , यह स्पष्ट बताया गया है !

कैसा जादू था इनके संदेश का कितनी महिलायें तक पेड़ों को बचाने के लिये इनसे चिपक कर अपने प्राण देने को तत्पर हो गयीं जैसे कोई मां अपने बच्चे के प्राणों की रक्षा के लिये सब कुछ दांव पर लगा देती है । इसी प्रकार जीव रक्षा का संदेश भी दिया । यह वही बिश्नोई समाज है जिसने काले हिरण के शिकार के बाद एक्टर सलमान खान को कोर्ट के कठघरे से लेकर जेल की सलाखों तक खींचा और आज तक उन्हें धमकियां मिल रही है । यही वह पर्यावरण संदेश है जिसे बाद में उत्तराखंड के चिपको आंदोलन के रूप में सुंदर लाल बहुगुणा ने नये रूप में प्रस्तुत किया ।

ज्यादा जानकारी तो नहीं लेकिन जितनी बात समझ आई उतनी ही लिख दी । कोई भूल चूक हो तो माफी ! मैं सिर्फ एक जिज्ञासु की भावना से गया था और जैसा ग्रहण कर पाया उतना समर्पित कर दिया ।
पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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