संस्थाओं ने समलैंगिक विवाह को वैध घोषित न किए जाने की मांग की।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुरुक्षेत्र, 1 मई : संत महापुरुषों के बाद अब विभिन्न सामाजिक संगठनों ने समलैंगिक विवाह को भारतीय परम्पराओं एवं समाज के अनुकूल नहीं बताया है। सोमवार को जीजा माता सेवा न्यास समिति से चंद्रिका, प्राची सिंगला, बबली शर्मा, प्रेरणा वृद्धाश्रम से रेणु खुंगर, आरोग्य भारती से डा. श्याम लाल, शिव शक्ति सेवा संगठन से राजेश इंटरनैशनल, महिला जागरण मंच से राजकुमारी, नीलम, गायत्री परिवार से जयंती, प्रोमिला, संकल्पित फाउंडेशन से ममता सूद, षड्दर्शन साधु समाज से वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, आर्य निर्मात्री सभा से सुलेखा, आर्य समाज से मलकीत एवं सर्वहित पार्टी मंजू कुमारी सहित विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों एवं प्रतिनिधियों ने कुरुक्षेत्र सचिवालय पर तहसीलदार के माध्यम से अनुरोध पत्र दिया।

विभिन्न संस्थाओं ने दिए अनुरोध पत्र में कहा कि ने कहा कि भारतीय हिन्दू सनातन संस्कृति में संस्कारों की महती महिमा है। संस्कार भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। हमारा जीवन संस्कारों से ओतप्रोत है तथा सम्पूर्ण जीवन इस पर आधारित है। प्रायः सभी धर्मग्रंथों में संस्कारों की संख्या भिन्न है। परन्तु कुछ प्रमुख संस्कार प्रायः सभी धर्मग्रन्थों में विद्यमान हैं, उन समस्त संस्कारों की श्रृंखला में विवाह संस्कार का भी एक विशिष्ट स्थान है। विवाह संस्कार विषयक वर्णन प्रायः सभी धर्म ग्रन्थों में विद्यमान है। उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह न केवल धर्म व नीति विरुद्ध, बल्कि प्रकृति विरुद्ध भी है।

error: Content is protected !!