क्लासिक किरदार ……… निरीह पति जगपति

क्लासिक किरदार ……… निरीह पति जगपति किरदार : दैनिक ट्रिब्यून का एक ऐसा काॅलम जिसमें अनेक किरदार लिखे । इनमें से एक जगपति भी जो कमलेश्वर की कहानी ‘राजा निरबंसिया’ का निरीह नायक है । शारदा राणा को भी याद कर रहा हूं जो मेरे पीछे की प्रेरणा रही ऐसे किरदारों पर लिखवाने की। यदि सारे किरदार मिल गये खोजने पर तो एक अलग तरह की पुस्तक बन पायेगी । ऐसा मेरा विश्वास है ।

कमलेश भारतीय

कमलेश्वर की बहुचर्चित , सशक्त कहानी ‘राजा निरबंसिया’ का निरीह मगर यादगार किरदार जगपति । कर्ज और शर्म से मर खपने वाला जगपति । आर्थिक लाचारी से पैदा हुई जगपति की बेचारगी , फिर दरके और टूटे वैवाहिक रिश्ते और उस पर पुत्र की प्राप्ति और पुत्र के पैदा होने पर हुई जगहंसाई । जगपति के जख्म कहानी के हर तरफ से रिसते दिखाई देते हैं । लाचारी से बोझिल कमलेश्वर का यह किरदार अंतर्द्वंद्व से जूझता थक हार कर आत्महत्या कर लेता है ।

चंदा , मुझे किसी ने नहीं मारा । मैं तो उसी दिन मर गया था जिस दिन बचन सिंह से कर्ज लिया था । यह कहना है प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर की बहुचर्चित कहानी ‘ राजा निरबंसिया’ के नायक जगपति का । कमलेश्वर ‘नयी कहानी’ की त्रयी के महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं । उनकी अनेक कहानियां चर्चित हैं लेकिन ‘मेरी प्रिय कहानियां’ की सीरीज में कमलेश्वर ने ‘राजा निरबंसिया’ को सबसे पहली कहानी के रूप में चुना है और प्रस्तुत किया है । इससे आप यह समझ लीजिए कि यह कहानी कमलेश्वर के दिल के कितनी करीब होगी । कमलेश्वर को ‘कस्बे का कहानीकार’ कहा जाता है और यह कहानी भी एक छोटे से कस्बे के व्यक्ति जगपति को ही नायक बना कर लिखी गयी है ।

जगपति की ये पंक्तियां उसकी कातरता , विवशता और लाचारगी को सहज ही बयान कर जाती हैं । जगपति जैसे पात्र की राजा के साथ तुलना इसलिए की गयी है कि जो कुछ किसी गरीब के साथ होता है उसकी तो जगहंसाई होती है लेकिन वही बात यदि राजा या किसी बड़े आदमी के साथ होती है तो उनकी जयजयकार होती है । इसी फर्क को दिखाने के लिए कमलेश्वर ने दोहरे शिल्प का चुनाव किया । एक तरफ दादी मां बच्चों को राजा निरबंसिया की कहानी सुनाती है और दूसरी तरफ कथाकार जगपति की कहानी सुनाता जाता है ।

जगपति अपने दोस्त की शादी में जाता है और उसके घर में अचानक घुस आए डकैतों से भिड़ जाता है । घायल होने पर उसे अस्पताल में भर्ती करवा कर दोस्त अपना पीछा छुड़वा लेते हैं । इसी प्रकार दादी की कहानी में राजा जंगल में शिकार के लिए जाता है और कई दिन तक लौटता नहीं । जगपति की पत्नी चंदा उसे ढूंढते आखिरकार अस्पताल पहुंच जाती है ।

यहीं से जगपति की कहानी शुरू होती है । बीमार जगपति का इलाज करवाते करवाते चंदा व पति की जमा पूंजी खत्म हो जाती है । स्वाभिमानी जगपति बिना इलाज के ही घर लौट जाना चाहता है लेकिन चंदा कम्पाउंडर बचन सिंह की बातों में आ जाती है । चंदा जगपति को बताती नहीं बल्कि यही कहती है कि वह अपने कंगन बेच कर इलाज करवा रही है । मुफ्त दवाई और अहसान नहीं ले रही । जगपति मुंह हाथ धोते रूमाल में लिपटे कंगन देखकर हैरान हो जाता है और उसको अपनी लाचारी का यह पहला अहसास होता है । इस झूठ को भी वह चंदा से छिपा लेता है ।

घर लौटता है तो रोशनी के लिए घर में तेल न होने पर जगपति का गुस्सा ही नहीं बल्कि बेबसी भी सामने आ जाती है । वह कहता है -तेरे से कुछ नहीं होगा ,,,,! जगपति यह कह कर एक प्रकार से चंदा के बांझ होने का उलाहना देता है । पड़ोस वाले भी जगपति को निरबंसिया ही पुकारते और उसका सुबह सुबह मुंह देखना भी अशुभ मानते हैं । जगपति यह सब कुछ सहता है और अपनी पीठ पीछे झेलता है । जगपति जैसे पात्र की कातरता और बढ़ जाती है जब बचन सिंह की ट्रांस्फर उसी के कस्बे में हो जाती है । जब तब बचन सिंह की साइकिल जगपति के घर की दीवार के सहारे लगी मिलती है । जगपति छुछ कर नहीं पाता । बचन सिंह से कर्ज लेकर चंदा जगपति को लकड़ी का टाल खुलवा देती है पर पति की संवेदनाएं कब लक्कड़ बन गयीं , यह जान नहीं पाती या जानना नहीं चाहती । वहीं जगपति शर्म के मारे सिर झुकाये गली तक को कितनी मुश्किल से पार करता है , यह चंदे को अहसास तक नहीं होता ।

चंदा के बच्चा होने की बात से जगपति पड़ोस में होने वाली बातों से आहत हो जाता है । अंदर ही अंदर टूटता जाता है । एक बेचारा पति , लकड़ी के टाल पर ही रात को सोने लग जाता है । चंदा इसका जवाब देने की बजाय कि यह बच्चा दुनिया में कैसे आ रहा है , चुपचाप अपने मायके घर चली जाती है । हारा हुआ जगपति उसे रोकता भी नहीं । क्या करे रोककर ? सब कुछ तो लुट गया ।

लोककथा में राजा लौटता है तो उसके दो बच्चे खेल रहे होते हैं और वह जश्न मनाता है जबकि जगपति एक गरीब आदमी के दोष को सब देखते हैं , लेकिन राजा के दोष को कोई नहीं देखता । इसलिए जगपति शर्म के मारे आत्महत्या की राह चुन लेता है । आह! समर्थ को नहीं दोष गुसाईं , जैसे चरितार्थ हो जाता है । दादी की कहानी खत्म होती है तो बच्चे फूल अर्पित करते हैं जबकि कथाकार कमलेश्वर की कहानी खत्म होती है तो पाठक जगपति की बेबसी , लाचारगी और जगहंसाई के डर से आत्महत्या करने पर आंसू बहाते हैं ।

सच , राजा निरबंसिया कमलेश्वर की नहीं बल्कि पाठकों की भी प्रिय कहानी है । जगपति एक निरीह पति के रूप में पाठकों का पीछा करता रहता है ।

पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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