-कमलेश भारतीय अभी महिला कोच , पहलवान विनेश फौगाट और स्वाति मालिवाल की बात चल ही रही है । चर्चाओं में है कि करनाल में कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज की बीएससी ओटी टेक्निशियन की छात्राओं ने भी यौन शोषण का आरोप लगा दिया है । इनके अनुसार ओटी मास्टर कहता है कि ऐसे कपड़े पहनो जिनसे तुम्हारी खूबसूरती सामने आये न कि बंद गले के सूट पहन कर आओ । अनेक बातें जो एकांत में कहता है , वे लिखी नहीं जा सकतीं ! यहां तक कि कातिल लग रही हो , कहना आम बात थी ! ये हमारी बेटियां क्या क्या सुन रही थीं , बर्दाश्त कर रही थीं , सहती आ रही थीं । आखिर यहां भी हद पार हुई तो लडकियां सामने आने को मजबूर हो गयीं । अब ओटी मास्टर को एक माह की छुट्टी पर भेज दिया गया है । जांच पंद्रह दिन के भीतर मांगी गयी है । जांच , लम्बी छुट्टी , निलम्बन और दोषी होने से पहले कोई कार्यवाही नहीं जैसी मासूम सी चालाकियां यहां भी आजमाई जा रही हैं और आजमाई जाती रहेंगी । यह भी सच है कि तुरंत कोई न दोषी करार दिया जा सकता है , न कोई सजा सुनाई जा सकती है । फिर भी जैसे महिला कोच के मामले को अब तक लटकाया जा रहा है , वह भी कितना न्यायोचित कहा जा सकता है ? जिस तरह विनेश फौगाट को तीन दिन जंतर-मंतर पर अपनी बात कहनी पड़ी और तब जाकर कुछ कार्यवाही हुई , क्या इससे सरकार की बेटियों के सम्मान कि रक्षा के प्रति गंभीरता नजर आती है या इसे लम्बी खींचने की पुरानी परंपरा कही जा सकती है ? अंग्रेजों के समय से यह जांच , कमेटी और आश्वासन दिये जाने की प्रशासन की परंपरा चली आ रही है । सबसे मजेदार बात जो बृज भूषण शरण ने कही , वह यह कि महिला पहलवानों को हरियाणा के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा भड़का रहे हैं ! लो सारी बात ही खत्म ! बेटियों के सम्मान की बात जड़ से खत्म । किस्सा खत्म ! क्या बेटियां अपने सम्मान के लिए आगे न आयें ? उन्हें किसी के बहकावे में अपना करियर दांव पर लगाने की क्या जरूरत है ? क्या भड़काना इतना आसान है ? क्या इसे राजनीति से जोड़कर बृज भूषण शरण बच जायेंगे ? क्या इनकी सारी बातें इससे ढंक जायेंगी ? किसी पर बात डाल कर क्या इस पूरे प्रकरण को हल किया जा सकता है । यहां सिर्फ सहायक सचिव विनोद तोमर को ही सस्पेंड किया गया है । इसके बावजूद यह कहा जा रहा है कि पहलवानों का धरना कुश्ती संघ को बदनाम करने की कोशिश है । हालांकि विनोद तोमर पर पैसे लेकर कुश्ती कैंप में शामिल करने के आरोप भी हैं ! सवाल उठता है कि कार्यवाही इतनी धीमी क्यों ? निर्भया के मां-बाप को कितनी लम्बी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी और अम्बाला की टेनिस खिलाड़ी के पारिवारिक मित्रों ने लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी तब कहीं जाकर इंसाफ मिला ! अब महिला कोच को पता नहीं कितनी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़े या वह थिसारस कर खामोश हो जाये या समझौता कर ले ! छत्रपति के परिवार ने कहां तक लड़ाई लड़ी तब कहीं जाकर तथाकथित बाबा को जेल तक पहुंचाया । अब तथाकथित बाबा पर सरकार की इतनी कृपा बरसती है कि नेकचलनी बता कर जब चाहे पैरोल मिल जाती है । ये सब उदाहरण सत्ता के घिनौने चेहरे दिखाने के लिए कम हैं क्या ? हम तो दुष्यंत कुमार के शब्दों में कहेंगे :कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैंगाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं !-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation ग्रामीण चौपालों को लील गई राजनीति……….. क्या वर्चस्व की लड़ाई है भारतीय कुश्ती महासंघ का विवाद ?