हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार

प्राचीनकाल से भारतभूमि के अलग-अलग नाम रहे हैं। मसलन जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान भारत और इंडिया सोने की चिड़िया, भारतवर्ष ऐसे ही अनेकानेक नामों से जानते हैं। आदिकाल में विदेशी लोग भारत को उसके उत्तर-पश्चिम में बहने वाले महानदी सिंधु के नाम से जानते थे, जिसे ईरानियो ने हिंदू और यूनानियो ने शब्दों का लोप करके ‘इण्डस’ कहा। भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने ‘हिन्दुस्थान’ नाम दिया था जिसका अपभ्रंश ‘हिन्दुस्तान’ है।

जब अंग्रेज भारत में आए उस समय हमारे देश को हिन्दुस्तान कहा जाता था। हालांकि, ये शब्द बोलने में उन्हें परेशानी होती थी। जब अंग्रेजों को पता चला कि भारत की सभ्यता सिंधु घाटी है। जिसे इंडस वैली भी कहा जाता है। इस शब्द को लैटिन भाषा में इंडिया कहा जाता है तो उन्होंने भारत को इंडिया कहना शुरू कर दिया। हमारे देश के बदलते नाम का एक इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है। कहते हैं कि महाराज भरत ने भारत का संपूर्ण विस्तार किया था और उनके नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा। मध्य काल में जब तुर्क और ईरानी यहां आए तो उन्होंने सिंधु घाटी से प्रवेश किया। वो स का उच्चारण ह करते थे और इस तरह से सिंधु का अपभ्रंश हिंदू हो गया। उन्होंने यहां के निवासियों को हिंदू कहा और हिंदुओं के देश को हिंदुस्तान का नाम मिला।

आगे, आजादी के बाद संविधान सभा में देश के नाम पर सवाल उठा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र बनने की दिशा में बढ़ा ये देश अपना नाम क्या रखेगा। इस दौरान भारत, हिंदुस्तान, हिंद और इंडिया जैसे विकल्पों पर खूब माथापच्ची हुई। 17 सितंबर 1949 को संघ के नाम और राज्यों पर चर्चा शुरु हुई। इस बहस में सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, श्रीराम सहाय, हरगोविंद पंत और हरि विष्णु कामथ जैसे नेताओं ने हिस्सा लिया। हरि विष्णु कामथ ने सुझाव दिया कि इंडिया अर्थात् भारत को भारत या फिर इंडिया में बदल दिया जाए। लेकिन उनके बाद सेठ गोविंद दास ने भारत के ऐतिहासिक संदर्भ का हवाला देकर देश का नाम सिर्फ भारत रखने पर बल दिया। इस पर बीच का रास्ता कमलापति त्रिपाठी ने निकाला, उन्होंने कहा कि इसका नाम इंडिया अर्थात् भारत की जगह भारत अर्थात् इंडिया रख दिया जाए। हरगोविंद पंत ने अपनी राय रखते हुए कहा कि इसका नाम भारतवर्ष होना चाहिए, कुछ और नहीं। 

वहीं भारत या भारतवर्ष नाम का समर्थन करने वाले ये सारे नेता उत्तर भारत या कहें कि हिंदी पट्टी के थे। जबकि भारत का विस्तार उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक है। संविधान सभा में हर क्षेत्र, हर भाषा के लोग बैठे थे। हिंदी को राजभाषा मानने पर पहले ही बहुत घमासान हो चुका था। ऐसे में विदेशों से संबंधों का हवाला और देश में सबको एक सूत्र में जोड़ने की कोशिश करते हुए संविधान के अनुच्छेद एक में लिखा गया कि इंडिया अर्थात् भारत राज्यों का संघ होगा। उल्लेखनीय आजादी के बाद देश का नाम भारत तय हुआ। संविधान में राष्ट्रगान और तिरंगा पहले ही निश्चित हो गया था, और तय हो गया था कि अब इस देश में भारत माता की जय का नारा लगाया जाएगा। आजादी के आंदोलन में देश को एक जुट करने के लिए देश भारत माता की जय ही बोलता था। यशोगान ऐसे चली हिन्दुस्थान से हिन्दुस्तान तक भारत देश के नामकरण की गाथा। 

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